अपनी बात

सत्य हुई विद्रोही 24.कॉम की बात, जनता ने तीनों राज्यों से BJP को बाहर किया, राहुल ने सर्वश्रेष्ठता सिद्ध की

कहा जाता है कि घमंड रावण का नहीं रहा, तो आपका कैसे रहेगा? घमंड आजकल भाजपाइयों के शीर्षस्थ नेताओं के सर चढ़कर बोल रहा है, यहीं घमंड कभी बिहार में लालू प्रसाद यादव को था, आज लालू यादव की क्या स्थिति है? सभी के सामने है। खुद को सुपीरियर मानना, और अपने सामनेवाले को महामूर्ख और वाहियात बताना, जिसने भी शुरु किया, जनता ने उसके अहं पर समय मिलने पर जबर्दस्त चोट की।

एक समय था, जब कांग्रेसवाले और अन्य दल सत्ता में थे, तब नरेन्द्र मोदी को देखना पसंद नहीं करते थे, कोई ऐसा मौका नहीं रहता, जब वे उनकी कटु आलोचना करना नहीं भूलते, 2014 में क्या हुआ? भारत की जनता ने कांग्रेस और अन्य दलों को धूल चटाया और नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत दे दी, और हमे लगता है कि नरेन्द्र मोदी एंड कंपनी यही भूल कर बैठी, वह जनता के इस सीख को नहीं जान पाई और न ही समझ पाई कि भारत की जनता किसी भी नेता के घमंड को बर्दाश्त नहीं करती।

समय आने पर उसे ब्याज के साथ लौटा देती और इन्होंने वहीं गलती दोहरानी शुरु की, जो कभी कांग्रेस और अन्य दलों ने की थी, इन्होंने हर बात के लिए कांग्रेसियों को कोसना शुरु किया पर ये नहीं बताया कि इन बीते साढ़े चार सालों में उन्होंने जनता के लिए क्या किया? क्या उन्होंने जो वायदे किये थे, पूरे किये, बेरोजगारी दूर किये, अच्छे दिन लाये, अगर नहीं तो फिर आम जनता आपके भाषणों पर विश्वास क्यों करें?

हमें याद है कि जब 1977 में उत्तर भारत की जनता ने श्रीमती इंदिरा गांधी को सत्ता से दूर किया, तब श्रीमती इंदिरा गांधी को ऐहसास हुआ था कि उनसे कहां गलती हुई और शायद इस भूल को उन्होंने स्वीकार किया और नतीजा सामने था, मात्र ढाई साल के बाद हुए मध्यावधि चुनाव में यहां की जनता ने उन्हें सत्ता सौंप दी। आज भाजपा में क्या हो रहा है? भाजपा के नेताओं को यह ऐहसास ही नहीं हो रहा कि उन्होंने कहां-कहां गलतियां की हैं और न ही वे इन गलतियों को सुधारने का काम कर रहे हैं।

उन्हें लगता है कि बस जैसे 2014 में बड़े-बड़े उदयोगपतियों-पूंजीपतियों के आशीर्वाद, इवेन्ट्स और सोशल साइट के माध्यम की कलाबाजी से चुनाव जीत ली, इस बार भी वैसा ही कर लेंगे, पर उन्हें पता नहीं कि एक ही दांव, बार-बार नहीं फलता, समय-समय पर दांव बदलने भी पड़ते हैं, और ये तभी होता है, जब आप जनता की नजरों में नायक बनकर उभरे हो। जनता तो देख रही है, कि आपने कैसे उनके आंखों में धूल झोंका है?

2014 का चुनाव भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा गया था, आज भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है? जिस कॉमनवेल्थ घोटाले का बार-बार नाम लिया जा रहा था, न्यायालय ने उसमें कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को क्लीन चिट दे दी, यहीं नहीं आपकी हिम्मत नहीं कि रावर्ट वाड्रा के उपर हाथ डाल दें, क्योंकि राफेल ने आपके हलक भी सुखा दिये है, और नीरव मोदी-मेहुल चौकसी तथा कई अन्य भगोड़ों ने तो आपके सेहत पर ही अच्छा खासा वार कर, आपकी नींव हिला दी।

ऐसे तो देखा जाये तो भाजपा की हार का मूल कारण न तो भ्रष्टाचार है और न ही बड़बोलापन, क्योंकि जनता जानती है कि किसी की भी सरकार बनें, ये दूध के धुले लोग नहीं हैं, भ्रष्टाचार करेंगे ही, बड़बोलापन दिखायेंगे ही, क्योंकि ये संत प्रवृत्ति के नहीं है, विशुद्ध राजनीतिबाज है, पर यहां हार का मूल कारण भाजपा के उन पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं-समर्थकों का अपमान है, जिसे वर्तमान भाजपा के मठाधीशों ने सम्मान देना उचित नहीं समझा, उलटे क्या किया कि अन्य दलों के भ्रष्ट नेताओं-भ्रष्ट कार्यकर्ताओं को अपने माथे बिठाया तथा इन्हीं के इशारे पर संघ और भाजपा समर्थित नेताओं-कार्यकर्ताओं को अपमानित ही नहीं किया, बल्कि उन्हें मरने पर मजबूर किया।

उन्हें झूठे मुकदमें में फंसाकर उनका जीना तबाह कर दिया, ऐसे में ये भाजपा कार्यकर्ताओं या संघ के स्वयंसेवक करते क्या?  उनके सामने विकल्प क्या था?  इन सारे भाजपा में शामिल ऐसे लोगों के गर्दन दबोचने के लिए स्वयं को संगठित किया और मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में अपनी औकात ऐसी दिखाई, कि भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को पता ही नहीं चल पाया कि उनकी ऐसी मिट्टी पलीद होगी।

हालांकि इस बार भी इवीएम तकनीक को अपनी ओर करने में भाजपा ने कम दिमाग नहीं लगाया, मध्यप्रदेश-राजस्थान के चुनाव परिणाम साफ संकेत देते हैं, पर कहा जाता है कि किस्मत खराब होती है तो हाथी पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। अभी भाजपा के लिए स्थिति यहीं है। विद्रोही24.क़ॉम ने तो पहले ही ऐलान कर दिया था कि इस बार छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा की विदाई तय है, चुनाव परिणाम को देखिये तो साफ पता लग रहा है कि भाजपा की इन तीनों प्रमुख प्रांतों में क्या हालत हुई है?

इनके लोग मुंह छिपाते फिर रहे हैं, कल तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को हर बात में पप्पू कहनेवाले लोगों के मुंह सील गये है, कई प्रदेशों के भाजपा कार्यालय में मुर्दन्नी छाई हुई है, यहीं हाल दिल्ली स्थिति भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय का है, हद तो ये भी हो गई कि 16 अगस्त को दिवंगत हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अस्थिकलश को इन भाजपाइयों ने खुब इन चुनावी प्रदेशों में घुमाया था, उसका भी लाज यहां की जनता ने नहीं रखा, बस यही याद रखा कि इस बार केन्द्र और राज्य के सत्ता में बौराए भाजपा नेताओं को सबक सिखाना है, और जनता ने सबक सिखा दी।

जो इनके शत प्रतिशत वोट बैंक थे, उन्हें भी भाजपा ने चिढ़ाया, जिस सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी एक्ट पर सही निर्णय दिये, उस निर्णय को भी उलट दिया और ऐसा अध्यादेश ला दिया, जिससे इनके वोट बैंक ऐसे बिगड़े कि अब ये कभी भाजपा में शिफ्ट भी होंगे, कहा नहीं जा सकता। यानी जो भाजपा सत्ता सेवा का साधन मानती है, उसने सत्ता को ही सर्वोपरि मान लिया और वे सारे हथकंडे अपनाये, जो पूर्व में कांग्रेस अपनाया करती थी, दूसरी ओर केन्द्रीय और राज्य की सेवाओं में कार्यरत नौकरीपेशा लोगों को यह याद करते देर नहीं लगी कि ये वहीं भाजपा है, जिसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें एनपीएस में लाकर पटक दिया और खुद के लिए ओपीएस रखा, ऐसे में भला नौकरीपेशा लोग भाजपा को वोट क्यों करें?

यानी मौका भी था और दस्तूर भी था, आम जनता ने भाजपा की खूब खातिरदारी की और इन तीनों प्रदेशों से इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब चूंकि इन तीनों प्रदेशों से भाजपा बाहर हो चुकी है, अब क्लियर हो गया है कि अब कांग्रेस धीरे-धीरे पूरे देश में मजबूत होगी, उनके कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को इस चुनाव परिणाम ने संजीवनी प्रदान किया है और आनेवाले समय में जब कभी किसी प्रदेश या लोकसभा के चुनाव होंगे, कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा और भाजपा हर जगह से सिमटती नजर आयेगी।

बिहार में अब नीतीश कुमार और शक्तिशाली बनेंगे तथा भाजपा के नेताओं को अपने आगे नाक रगड़वायेंगे और ये लोग नाक रगड़ने के लिए तैयार भी रहेंगे, क्योंकि इनके पास कोई विकल्प नहीं होगा, ऐसे भी वर्तमान में जो भी भाजपा के शीर्षस्थ नेता है, उन शीर्षस्थ नेताओं को भाजपा ने इतना अपमानित कर दिया है, कि वे फिर भाजपा के लिए कुछ करेंगे या वोट मांगेंगे, असंभव सा दीखता है, लाल कृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी की तो बात ही छोड़ दीजिये।

सुषमा स्वराज ने पहले ही खुद को किनारा करने का मन बना लिया है, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और भाजपा के नरेन्द्र मोदी को चेहरा अब लोगों को पसंद नहीं आ रहा है, ये वे भी जान रहे हैं, जो भाजपा की ओर, अन्य दलों को छोड़कर भागे थे, ये सारे दल-बदलू नेता एक बार फिर भाजपा पर तोहमत लगाकर, भागने का तिकड़म आज से ही लगाना शुरु करेंगे और देखते-देखते भाजपा की हालत, लोकसभा चुनाव आते-आते पस्त, ठीक उसी प्रकार, जैसे नोटबंदी के कारण किसानों और छोटे-छोटे कारोबारियों की जिंदगी तबाह हो गई, उन बेटियों की शादी तबाह हो गई, जिसके पिता एक बड़ी रकम, अपनी बेटी की शादी के लिए रखे थे, उन के सपने तबाह हो गये, जिन्होंने अपने घर बनाने के लिए धन रखे थे।

सर्वाधिक चोट तो नरेन्द्र मोदी एंड कम्पनी ने भारत की उन महिलाओं के हृदय पर चोट किया, जो अपने पति-बेटों से छुपाकर कुछ धन अपने पास रखती है, ताकि जरुरत पड़ने पर अपने पति और बेटों को उन छुपा कर रखे धन से मदद कर सकें, उस धन पर भी नरेन्द्र मोदी ने डाके डलवा दिये, अब बताइये भले ही अच्छे होंगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूसरों के लिए, पर भारतीय नारियों के हृदय में ये विलेन से ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे में मध्यपद्रेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तो ट्रेलर है, पूरी फिल्म 2019 के लोकसभा चुनाव में लोग नरेन्द्र मोदी एंड कंपनी को दिखा ही देंगे, जब भाजपा की नजरों में पप्पू कहलानेवाला व्यक्ति सत्ता का प्रबल दावेदार होगा।