अपनी बात

ये तो “बिरसा का गांडीव” के संपादक का “संपादकीय पाप” है, जिसका कोई प्रायश्चित ही नहीं

दिनांक 09 जून 2020, पूरा झारखण्ड भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस मना रहा था, आशा की जा रही थी कि रांची से प्रकाशित वे अखबार जो भगवान बिरसा के नाम का खुलकर अपने अखबार के हित में सदुपयोग करते हैं, कम से कम इस दिन भगवान बिरसा का मान रखेंगे, उनके मूल्यों को आत्मसात करेंगे और वहीं करेंगे, जो भगवान बिरसा ने सिखाया।

अरे आम दिनों में जो करते हैं, सो करिये न, कौन मना कर रहा हैं, पर भगवान बिरसा के शहादत दिवस को तो छोड़ देते, क्योंकि आप तो खुद, अपने अखबार का नाम “बिरसा का गांडीव” रखा है। तो संपादक जी आप ही बताइये कि भगवान बिरसा ने कब धन को प्रधान मानते हुए अपने हाथों में तीर-धनुष उठाया? यह मैं इसलिए पूछ रहा हूं कि आपने अखबार का नाम ही “बिरसा का गांडीव” रखा है।

जरा देखिये, अखबार ने इस दिन किया क्या है? फ्रंट पेज पर फ्रंट न्यूज है – “छोटे शहर की बड़ी उपलब्धि, भारत इलेक्ट्रानिक्स” और उसके ठीक नीचे कर्मशियल डिस्पले भारत इलेक्ट्रानिक्स का रंग-बिरंगा विज्ञापन, क्या रांची की जनता या बुद्धिजीवी इतने मूर्ख है, वे नहीं जानते कि ये सब कैसे हो गया? क्या ये “ले” और “दे” संस्कृति का परिचायक नहीं हैं? भाई हम तुम्हारा समाचार छाप देते हैं और तुम हमें एक अच्छा सा विज्ञापन दे दो, और दोनों खुश।

क्या अब पत्रकारिता ऐसे चलेगी? अरे पाप भी करेंगे, तो सीना ठोक कर, ये कौन सी विचारधारा, आप जनता पर थोप रहे हैं, पूर्व में ऐसा नहीं चलता था, चलता तो आज भी नहीं है, अगर छापना ही था तो एडविटोरियल के रुप में चला देते, लेकिन एडिविटोरियल के जगह पर ताल ठोक कर, वह भी भगवान बिरसा के शहादत दिवस के दिन यह पाप शोभा नहीं देता, क्योंकि इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं, यह पूर्णतः संपादकीय पाप है, जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता।