जो काम भाजपाई ताउम्र नहीं कर सकें, वो काम CM हेमन्त सोरेन ने कुछ दिनों में ही करके दिखा दिया

सीखों भाजपाइयों, सीखिये हाथी उड़ानेवाले राज्य के पूर्व होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास। सीखने में कोई बुराई नहीं, देश और राज्य सेवा के नाम पर आप लोगों ने कितनी नौटंकी की हैं, कितने हाथी उड़ाए हैं, कितने विदेशी टूर किये हैं, कहां-कहां शंघाई टावर बनाया, वह किसी से छुपा नहीं, और इतनी नौटंकी के बावजूद भी झारखण्डवासियों को जीवन जीने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े हैं, वो भी किसी से छुपा नहीं हैं, पर हेमन्त ने क्या किया?

इस युवा मुख्यमंत्री ने अपने लोगों की वेदनाओं को महसूस किया, जब विभिन्न स्थानों, उसमें भी खासकर लेह-लद्दाख से लौटे श्रमिकों ने, रांची एयरपोर्ट पर अपने दुखड़े रोए। तभी हेमन्त ने संकल्प लिया कि वे इनका खोया सम्मान और हक दिलवाकर रहेगे। हेमन्त सोरेन ने तुरन्त श्रम विभाग को सक्रिय किया और सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों से सवाल पूछने को कहा, जिन सवालों को विद्रोही 24 ने सर्वप्रथम अपने वेवसाइट पर दिनांक 6 जून को उठाया था।

अगर आप विद्रोही24 के नियमित पाठक हैं, तो आपने यह शीर्षक “हेमन्त सरकार ने कहा पहले झारखण्ड के आदिवासी मजदूरों को सम्मान और उन्हें जीने का हक तो दीजिये, फिर आप देखिये क्या होता है?” से संबंधित समाचार जरुर पढ़ा होगा, और अगर आपने अभी भी नहीं पढ़ा हैं तो जाकर उसे देखिये, आपको बहुत कुछ पता चल जायेगा कि हेमन्त सोरेन ने मजदूरों को हक दिलाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किये?

आज प्रयत्न रंग लाया हैं, सीमा सड़क संगठन ने इन श्रमिकों के देखभाल और उनके सम्मान की रक्षा की जिम्मेदारी ली है और ये सब संभव हुआ है, राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के भागीरथी प्रयास से। हालांकि जब मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन इन बिन्दुओं पर विचार कर रहे थे, तभी राजद कोटे से बने एक मंत्री ने कुछ ऐसा बयान दे दिया था, जिससे लोगों में निराशा के भाव उत्पन्न हुए थे, पर जैसे ही बात की गहराई का पता चला, सब कुछ क्लियर हो गया कि राज्य सरकार चाहती है कि देश सेवा में लगे उनके श्रमिकों के साथ जो अब तक होता आया हैं, वो बंद हो, और उन्हें भी उचित पारिश्रमिक और श्रमिकों को मिलनेवाली वो सारी सुविधाएं मिले, जिन पर उनका अधिकार है।

आज एक बार फिर श्रमिकों का चेहरा चमका है, वे भारत-चीन सीमा पर जाने के लिए रांची से ट्रेन द्वारा निकल चुके हैं, वे सीमा सड़क संगठन द्वारा बनाये जा रहे सड़कों के निर्माण में लगेंगे, अब उनके साथ कोई गलत नहीं होगा, क्योंकि हेमन्त सरकार ने सीमा सड़क संगठन के साथ कुछ मसौदों पर बातचीत की हैं, और उन बातचीत में उठे मुद्दों को सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों ने स्वीकार किया है, माहौल बदल रहा हैं, इसका सभी को स्वागत करना चाहिए, आज स्वयं मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन अपने श्रमिकों को विदा करने के लिए रेलवे प्लेटफार्म तक पहुंचे और विदाई दी।

अब सवाल, पूर्व के भाजपाई सरकारों से कि सीमा सड़क संगठन तो पूर्व में भी झारखण्ड के श्रमिकों की सेवा लिया करता था, पर क्या वो इस बात के लिए गंभीर था कि श्रमिकों को भी वो सम्मान और वो पारिश्रमिक मिले, जिसके वे हकदार थे, आखिर देश-सेवा में लगे इस झारखण्ड के मजदूरों की बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा,  रघुवर दास जैसे पूर्व भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने अब तक सुध क्यों नहीं ली? जरा दिमाग पर जोर लगाइयेगा, सब कुछ क्लियर हो जायेगा, फिलहाल इन भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों में से तो एक केन्द्र में मंत्री बनकर परम आनन्द की प्राप्ति भी कर रहे हैं, क्या उन्होंने भी इनकी सुध ली, सुध लेंगे भी कैसे? इन्हें अपनों से समय मिलेगा तभी न।