अपनी बात

वाह रे रांची DTO, खुद बिना इंश्योरेंस के वाहन पर घुमेंगे और जनता से इसी जूर्म के लिए जूर्माना भरवायेंगे

जनता ट्रैफिक रुल्स को तोड़े तो उसके कॉलर पकड़ लो, इज्जत उतार लो, और नेता/अधिकारी करें तो उनके सम्मान में बिछ जाओ, क्योंकि कानून तो जनता के लिए बना होता है, अधिकारियों के लिए थोड़े ही होता है, और रही बात सरकार की, तो सरकार भी तो अपनी ही हैं, हम ही तो सरकार है, जितना भी शोषण करना है, करो, कोई नहीं बोलेगा।

इस प्रकार झारखण्ड में चल रही ट्रैफिक रुल्स को जमीन पर उतारने की योजना, हालांकि विपक्षी दलों ने इस ट्रैफिक आतंकवाद के खिलाफ बोलना शुरु किया है, लेकिन उसका प्रभाव झारखण्ड के वरीय प्रशासनिक अधिकारियों पर नहीं पड़ रहा, अब तो ये खुद भी धड़ल्ले से ट्रैफिक रुल्स का उल्लंघन कर रहे हैं, पर राज्य सरकार इन सारी चीजों पर आंखें मूंद कर बैठी हुई है, शायद उसे लगता है कि चुनाव के समय अधिकारी ही उन्हें बेड़ा पार लगायेंगे, जनता को तो हिन्दू-मुसलमान में उलझा कर वोट ले ही लेंगे।

इन अधिकारियों की शर्मनाक हरकतों के बारे में जानना है  तो आप रांची से प्रकाशित 7 सितम्बर 2019 का दैनिक जागरण, पृष्ठ संख्या 6 देखिये। यहां का डीटीओ संजीव कुमार कहता है कि पन्द्रह दिनों के अंदर जुर्माने की राशि का करें भुगतान, भुगतान नहीं करने पर भेजा जायेगा कोर्ट नोटिस, उसके बाद जुर्माने की राशि का भुगतान कोर्ट में ही करना होगा।

जबकि यहीं अखबार लिखता है कि जहां जिला परिवहन कार्यालय स्थित हैं, वहीं पर 6 सितम्बर को बिना नंबर प्लेट के सात वाहन यानी उपायुक्त कार्यालय पहुंच गये। इनमें से तीन वाहन नामकुम सीओ, बेड़ो सीओ व हेहल सीओ के नेम प्लेट भी लगे हुए थे। अखबार लिखता है कि वाहनों के इस कतार में कुछ वाहन ऐसे भी मिले, जिस पर जिला प्रशासन व झारखण्ड सरकार लिखा हुआ था, इन वाहनों के आगे व पीछे भी नंबर प्लेट नहीं थे।

अखबार लिखता है कि बिना प्रदुषण सर्टिफिकेट के ही थानों की गाड़ियां धड़ल्ले से चल रही है। अखबार यह भी लिखता है कि जिन पर ट्रैफिक रुल्स को जमीन पर उतारने का अधिकार है, वे जनाब यानी डीटीओ, रांची खुद बिना इंश्योरेंस के वाहन पर चल रहे हैं, बिना इंश्योंरेंस के वाहन चलानेवालों में एसएसपी रांची, उपनगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त, कार्यपालक मजिस्ट्रेट, एडीएमएसओआर, अंचलाधिकारी इटकी, रिम्स निदेशक और रिम्स अधीक्षक भी शामिल है, तो सवाल उठता है कि अब तक चालान काटनेवालों की नजर इन पर क्यों नहीं पड़ी, आखिर इनका चालान कौन काटेगा, आखिर जनता के इस प्रश्न का जवाब कौन देगा? इस सवाल का जवाब न तो मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास हैं और न ही परिवहन मंत्री सीपी सिंह के पास है।

हर बात में मुंह खोलने के लिए प्रसिद्ध, जयश्रीराम बोलने में सबसे आगे और फिलहाल राज्य में चल रहे ट्रैफिक आतंकवाद पर परिवहन मंत्री जनाब सी पी सिंह का लगता है कि अनिश्चितकालीन मौन व्रत चल रहा हैं, कहीं पर उनकी प्रतिक्रिया नहीं दिख रही, थोड़ा सा इनके कार्यकर्ता मुन्ना ठाकुर पर ट्रैफिक रुल्स का डंडा चला था, तो जनाब दनदनाते हुए घटनास्थल पर पहुंच गये थे, उनके साथ उस वक्त भाजपा महानगर के अध्यक्ष मनोज कुमार मिश्र भी पहुंच गये थे, पर आज जनता पीस रही हैं तो न तो सीपी सिंह का मुख मंडल दिखाई पड़ रहा हैं और न ही उनके बयान।

सवाल उठता है कि क्या ये ट्रैफिक जूर्माना भरने का काम सिर्फ जनता का है, और जिन पर कानून को पालन करवाने का जिम्मा हैं, वे सिर्फ जनता को रौंदने के लिए बने हैं, तो फिर काहे कि सरकार और कैसी डबल इंजन की सरकार और काहे की भाजपा सरकार। अरे यहां तो भाजपा का बड़ा नेता ही बिना हेलमेट के बाइक पर सवार होकर चल देता हैं, पर किसी पुलिस अधिकारी की हिम्मत नहीं कि उक्त नेता गणेश मिश्र का चालान काट दे। राज्य में चल रही इस प्रकार की शासन व्यवस्था राज्य में अराजकता की स्थिति को परिलक्षित कर रही हैं, पर कोई बोलनेवाला नहीं, कोई संज्ञान लेनेवाला नहीं, लोग चले जा रहे हैं, मार खाये जा रहे हैं, शोषित हुए जा रहे है, जैसे लगता है कि वे शोषण के लिए ही बने हैं।