अपनी बात

महिलाओं के प्रति आत्मचिन्तन और सुविचार मंथन का त्योहार भी है नवरात्र व दशहरा का यह पर्व, इस पर विचार करने की भी जरुरत

सर्वप्रथम हम आपको बता दें कि यह आर्टिकल विद्रोही24 की नहीं, बल्कि गणेश दीवान वर्मा की है। जो झारखण्ड राज्य के रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के राज्य सचिव है। चूंकि नवरात्र चल रहा है। उनकी यह सोच हमें अच्छी लगी। अपने भाव को इन्होंने मेरे सोशल साइट पर प्रकट किया था। अतः मैंने उनसे अनुमति लेकर आप के समक्ष रख दी। कृपया इसे अवश्य पढ़ें।

पूरे देश में नवरात्र का त्योहार एवं दशहरा का यह पर्व बड़ें ही हर्षोंउलास के साथ मनाया जा रहा है। माँ अंबे की पूजा-अर्चना भी बड़ें ही भावविह्वल होकर लोग मना रहें हैं। दसवें दिन में हम पाप रूपी रावण-दहन कर रहे हैं। जबकि पूरे त्योहार के दौरान हम शक्ति-स्वरूपा माँ अंबे की पूजा-अर्चना में मग्न रहे। इस नारी शक्ति की आराधना के त्योहार के दौरान हमें आत्मचिंतन और सुविचार मंथन करने की बेहद आवश्यकताएँ भी हैं। वर्तमान समय में मूलतः यह आवश्यकताएँ इसलिए भी महसूस की जा रही है कि क्या हम सचमुच नारी यानी देवी लड़कियों, बच्चियों का सम्मान करते हैं।

आज की तारीख में महिलाओं और लड़कियों और मासूम बच्चियों के प्रति अपराध की बढ़ती हुई स्थिति समाज को इस बारे में और खास तौर पर सोंचने के लिए विवश एवं अभिशप्त है। महिला शक्ति का सम्मान कियें बिना यह समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। इस बात की सच्चाई को स्वीकार करना भी बेहद जरुरी हो गया है। जिस तरीके से यह समाज के अंदरखाने अपराध बढ़तें जा रहा है। महिलाऐं और बच्चियाँ असुरक्षित हो रही हैं।

उन सबके बीच हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम महिलाओं और इन मासूम बच्चियों को सुरक्षा और उसके सम्मान को लेकर पूरी तरह से अपनी ईमानदारी के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाऐंगें। समाज में रहने वाले दरिंदे और राक्षसों को चिन्हित करते हुए हम महिलाओं और इन मासूम बच्चियों को सुरक्षित रखने को लेकर अपना योगदान देंगें। समाज के अंदरखाने महिलाओं और इन मासूम बच्चियों का सुरक्षा प्रत्येक सभ्य नागरिक का कर्तव्य एवं दायित्वों बनता है।

नारी शक्ति को उसका पूरा हक और सम्मान दिलाना भी हमारा दायित्व है। एक महिला ना सिर्फ एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी बल्कि वह एक माँ भी होती है। वह परिवार का आधार स्तंभ भी होती है। इसके सहारे पूरा परिवार खड़ा होता है। एक महिला दो परिवारों को संभालती है। परिवारोंके बीच बेहतर समन्वय स्थापित करती है। सब कुछ सहन करने के बावजूद वह अपने परिवार और अपनों के बारे में समर्पित और संकल्पित रहती है।

महिलाओं के इस त्याग और समर्पण को हमें समझने और उसका सम्मान करने की जरूरत है। महिलाओं की सुरक्षा और उसके सम्मान को लेकर हम जितना भी योगदान दे सकें, वह कम है। समाज में व्याप्त अपराध को तभी रोका जा सकता है, जब हम ऐसे लोगों पहचानने में मदद करें, जो महिलाओं की सुरक्षा और उसके सम्मान को लेकर आपराधिक सोच रखतें हैं।