अपनी बात

रांची का रिम्सः बीमार पे जो न तरस खाये, वो नर्स-डाक्टर-सरकार, इंसानियत के दुश्मन-जल्लाद हैं

खुशी की खबर है, रिम्स में हड़ताल समाप्त हो गई है, पर कल जिस प्रकार से रिम्स के नर्सों व जूनियर डाक्टरों ने अपने क्रूर चेहरे दिखाये, उससे इतना तो साबित हो गया कि रिम्स में कार्यरत नर्सों व जूनियर डाक्टरों में इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं हैं, तथा उनके माता-पिता ने उन्हें मानवीय मूल्यों की सीख नहीं दी और न ही उन शिक्षकों ने इन्हें मर्यादा सिखाई, जिनसे ये अब तक शिक्षा ग्रहण करते आये हैं। इधर रिम्स के नर्सों-जूनियर डाक्टरों द्वारा किये गये अमानवीय हरकतों को लेकर लोग सड़कों पर उतरे हैं, इनका गुस्सा राज्य सरकार और स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी पर भी उतरा है, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने जमकर अपना आक्रोश व्यक्त किया है।

मैं कई बार कहते आया हूं कि आप सब कुछ बन सकते हैं, पर जब तक आप अच्छे इंसान नहीं बन जाते, आपको कुछ भी बनना कोई मायने नहीं रखता, उदाहरण भारत में कई लोग प्रधानमंत्री बन गये, पर इनमें से बहुत कम ही प्रधानमंत्री हुए, जिनको लोग याद रखे हुए हैं, आखिर क्यों, यकीनन वे अच्छे इन्सान होंगे, तभी लोग उन्हें याद रखे हैं।

ऐसे तो सरकारी अस्पतालों को लेकर मेरे दिमाग में भी अच्छी इमेज नहीं है। मैं जब भी इस प्रकार की घटना कहीं होते देखता हूं तो मुझे 29 मई 1997 की घटना याद आ जाती है, जब मेरे पिता जी को ब्रेन हेमरेज हुआ, और उन्हें लेकर हम सपरिवार पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल पटना पहुंचे। आपातकालीन कक्ष में करीब दस बजे रात्रि में जब हमलोग पहुंचे तो वहां कार्यरत जूनियर डाक्टरों का समूह, हमें भगवान के रुप में नहीं, बल्कि शैतान के रुप में दीखा था, वे इलाज क्या करते, इतने बदतमीज थे, कि वे किसी से ठीक से बात ही नहीं कर रहे थे, हम क्या करते, मजबूरी थी, उनकी शैतानी बातों के आगे हम नतमस्तक थे, और चाहते थे कि मेरे पिताजी जल्द ठीक हो जाये।

बाद में हमारे पिताजी को डा. गौरी शंकर सिंह की यूनिट में डाल दिया गया, ये वहीं डा. गौरी शंकर सिंह थे, जो उस वक्त पटना से प्रकाशित हिन्दुस्तान अखबार में एक कॉलम लिखा करते थे, इनके यूनिट में भी हमारे पिताजी की देखभाल ठीक से नहीं हुई और मेरे पिताजी देखते ही देखते 6 जून 1997 को चल बसे। हम इसके लिए किसे दोष देते, चुपचाप जूनियर डाक्टरों, वहां के कर्मचारियों और नर्सों की गंदी हरकतों, उनके द्वारा लाशों पर से पैसे, गरीबों के चमड़ियों से खाल तक निकालने वाली गुणों को देखकर शर्मिंदा थे, कि हम किस दुनिया में रह रहे हैं। दुनिया की कोई सरकार आपको दवा, उपकरण, आवास आदि की सुविधा मुहैया करा सकती है, पर सेवा भाव तो आपको दिखाना होगा, और ये मिलेगा आपके परिवार से जहां आपने जन्म लिया, जिस स्कूल-कॉलेज में आपने पढ़ा, जिस समाज में आपने ज्यादा समय बिताया, पर अब तो आपका न तो परिवार ठीक है, न स्कूल-कॉलेज ठीक है और न समाज ठीक है, ऐसे में ये सब दृश्य तो दिखाई देंगे ही। गरीब और लाचार मरेंगे ही।

जरा देखिये, झारखण्ड सरकार के चरित्र को, एक तरफ रिम्स के जूनियर डाक्टर हड़ताल पर थे, नर्सें कानून को अपने हाथ में ले रही थी, और राज्य के मुख्यमंत्री दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में तेली समाज की रैली में यह बता रहे थे कि देश के प्रधानमंत्री तेली है, अब आप बताइये जहां ऐसी मेंटेलिटी के लोग सत्ता संभालते हो, उस राज्य की स्थिति क्या होगी? जहां का स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहा मंत्री रिम्स में हो रही घटना में दिलचस्पी न लेकर, अपने परिवार द्वारा स्थापित निजी अस्पताल की ओर रुचि लेता हो, वहां की स्थिति क्या होगी?

जहां का मुख्यमंत्री और उसका परिवार, या उसके मंत्रिमंडल का सदस्य या आईएएस/आईपीएस अधिकारी स्वयं सरकारी अस्पतालों में न इलाज कर निजी चिकित्सालयों में इलाज कराने में शान समझता हो, वहां की स्थिति क्या होगी? कल जिस प्रकार से रिम्स में गुडांगर्दी हुई, इलाज कराने के लिए फरियाद कर रहे परिजनों की एक नहीं सुनी गई, 35 ऑपरेशन टल गये, 12 मरीजों की मौत हो गई, उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या ऐसे लोगों की सजा नहीं मिलनी चाहिए? जहां न्यायालय सामान्य सी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेता है, क्या इतनी बड़ी दर्दनाक घटना को रोकने के लिए कानून का भय दिखाने के लिए, उसे स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए।

हम बधाई देते है राज्य के सभी समाचार पत्रों को, जिन्होंने इसे बहुत बड़ा मुद्दा बनाया।  हम बधाई देते है, राज्य के सभी संभ्रात नागरिकों, स्वयंसेवी संगठनों, विद्यार्थी संगठनों और राजनीतिक दलों को जिन्होंने इसको लेकर सोशल साइट ही नहीं बल्कि सड़कों पर उतर कर एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया, तब जाकर राज्य सरकार की कुंभकर्णी निद्रा टूटी और मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक्शन लिया। अब हड़ताल टूट गई है, लेकिन जिस हड़ताल से लोगों की जान चली गई, उन दोषियों को दंड देने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाये? सरकार की ओर से बताया जाना चाहिए।

रिम्स में कार्यरत जूनियर डाक्टर और नर्स जान लें कि उनके उपर ऐसे दाग लगे है, कि वे चाहकर भी कभी नहीं छुड़ा पायेंगे, जब-जब 2018 की याद आयेगी तो 2 जून की ये घटना उनके जमीर को जीने नहीं देगी, चाहे वे कितने भी ऊंचे पदों पर क्यों न चले जाये? यहीं नहीं जिन परिवार के लोग, इन जल्लादों के हड़ताल के कारण जान गवां दिये, उनकी आत्मा भी आपको चैन से जीने नहीं देगी, आपको सजा अगर राज्य सरकार ने दे दिये तब तो आप तो बच भी जायेंगे, लेकिन उपरवाले की अदालत में तो आपको वो सजा मिलेगी, जिसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकते।

एक बात और आपके हड़ताल और आपके अमानवीय कृत्यों को लेकर विभिन्न सोशल साइटों पर आप शैतानों के लिए कौन-कौन से शब्द आम जनता उपयोग में ला रही है, वह भी जाकर पढ़ लीजिये। अंत में धिक्कार है, ऐसे माता-पिता पर जिन्होंने ऐसे दैत्यों को जन्म दिया, जो मानवता को ही निगलने के लिए तैयार है, जिनके बेटे-बेटियों के कुकर्मों के कारण दर्जनों मरीजों की मौत हो गई, बीमार मरीज इधर से उधर भटकते रहे, आपरेशन तक इन कुकर्मियों ने नहीं होने दिया, और धिक्कार ऐसी रघुवर सरकार पर, जिसके पास कोई विजन ही नहीं, जो फिलहाल अपनी जातीय रैली में शेखी बघारना ही अपना शान समझता है।