साढ़े तीन पेज के विज्ञापन का कमाल, मीडिया संस्थानों ने हेमन्त के चरणों में लहालोट होकर कहा – “जोगन बन गई रे, हेमन्त तोरे कारण”

आज राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर लिये। अब इन्हें तीन वर्ष और पूरे करने हैं, क्योंकि ये अब ध्रुव सत्य है कि हेमन्त दुबारा शासन में आनेवाले नहीं हैं, क्योंकि झूठ और फरेब की दुनिया ज्यादा दिनों तक नहीं चलती, ये सभी जानते हैं। आप अपने झूठ व फरेब के जालों को सही ठहराने के लिए कितने भी पैसे विज्ञापन के नाम पर क्यों न बहा दें, जो सच होता है, उसे जनता जानती है।

 

कभी रघुवर दास भी इसी प्रकार से विज्ञापनों के माध्यम से झूठ व फरेब का जाल फैलाकर जनता को दिग्भ्रमित करते थे, नतीजा क्या है, रघुवर दास खुद जान चुके हैं, कि वे आज कहीं के नहीं है। इसलिए यह भी ध्रुव सत्य है कि आनेवाले समय में, अगर हेमन्त सोरेन और उनके चेलों ने अपने में सुधार नहीं लाया तो उन्हें भी आज के रघुवर और उनके चेलों की तरह भविष्य में जीवन व्यतीत करना होगा और उस वक्त ये आइएएस/आइपीएस उनके लिए कुछ नहीं कर पायेंगे।

जरा देखिये, दो वर्ष पूरे होने पर हो क्या रहा है? सारे मीडिया संस्थानों पर हेमन्त सरकार द्वारा कृपा लूटाई जा रही हैं, मात्र दो दिनों के अंदर मुंहमांगी रकम पर साढ़े तीन पेज के विज्ञापन दिये गये हैं, इन विज्ञापनों में हेमन्त सरकार की स्तुति गाई गई हैं, कहा गया है कि हेमन्त न भूतो न भविष्यति हैं, पर सही क्या हैं. दो वर्ष के शासनकाल में यहां की जनता और युवा दोनों जान चुके हैं।

क्या रघुवर का शासन और क्या हेमन्त का शासन, कोई अंतर नहीं हैं। उस वक्त भी आंदोलनकारी पिटाते थे, आज भी आंदोलनकारी पिटा रहे हैं। कल भी झारखण्ड लोक सेवा आयोग में धांधलियां थी, आज भी झारखण्ड लोक सेवा आयोग में धांधली है। कल भी रघुवर और उनके चेले मस्ती में रहा करते थे, आज रघुवर की जगह हेमन्त और उनके चेले मस्ती में हैं।

कल भी रघुवर मीडिया संस्थानों को विज्ञापन के बल पर अपने चरणों में लहालोट करवाते थे, आज हेमन्त भी उसी प्रकार मीडिया संस्थानों में काम करनेवाले लोगों और संस्थानों को अपने चरणों में लहालोट करवा रहे हैं। तभी तो दो वर्ष पूरे होने पर किसी अखबार की हिम्मत नहीं हुई कि जनता की बात करें, और सरकार को बताएं कि इन दो वर्षों में उसने क्या-क्या गलतियां की और उसका क्या नुकसान आम जनता और युवाओं को उठाना पड़ा।

मतलब इन मीडिया संस्थानों ने केवल साढ़े तीन पेजों के विज्ञापन के आगे अपनी जमीर बेच दी और जनता तथा युवाओं की बात करने के बजाय, हेमन्त और उनके चेलों को खुश करने में ही सारी वक्त जाया कर दी, जबकि होना यह चाहिए कि अखबार सरकार को अपने संपादकीय के माध्यम से यह बताते कि उसने दो सालों में कौन-कौन ऐसे कुकर्म किये, जिससे आम जनता और युवाओं को कष्ट हुआ, पर संपादक से प्रबंधक बने पत्रकारों को जनता और युवाओं से क्या मतलब, उन्हें तो सिर्फ पैसों और मुख्यमंत्री से बेहतर संबंध कैसे हो, इससे मतलब हैं।

आज का अखबार चीख-चीखकर कह रहा है कि सारे मीडिया संस्थान 1954 में बनी फिल्म शबाब का वो गाना ठुमक-ठुमक कर गा रहे हैं, जिसे उस वक्त भारत भूषण और नूतन पर फिल्माया गया था, जिस गाने को लता मंगेशकर ने गाया तथा इस गीत को शकील बदायुनी ने लिखा और संगीतबद्ध किया था नौशाद ने। गीत के बोल थे – “जोगन बन जाउंगी, सैया तोरे कारण, ओ सैया तोरे कारण, बलम तोरे कारण, जोगन बन जाउंगी”। लेकिन आज तो मीडिया संस्थान उससे भी आगे निकल गये और गाने लगे – “जोगन बन गई रे, हेमन्त तोरे कारण”।

मीडिया संस्थानों का चारित्रिक पतन ऐसा हो गया कि वे इससे अधिक कुछ सोचते भी नहीं, अब तो कई राज्यों में देख रहा हूं कि संपादक, मुख्यमंत्री तक का पांव छूता है, ऐसा परिदृश्य सभी ने अपनी आंखों से देखा था, जब पटना में एक संपादक ने अपने कार्यक्रम में नीतीश कुमार का पांव छुआ था, जब ऐसी स्थिति सामने आयेगी तो कल हेमन्त का भी लोग पांव छूएंगे ही, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होनी चाहिए। अभी तो आत्मा को गिरवी रखने की शुरुआत हुई है।

क्या लोगों को यह मालूम नहीं कि यही कल रघुवर की जय-जय करते थे, आज हेमन्त की जय-जय कर रहे हैं, कल और कोई नया आ जायेगा तो उसकी जय-जय करेंगे, क्योंकि पत्नी-बच्चों को पालना सामान्य बात थोड़े ही हैं, इसलिए किसी मुख्यमंत्री के सामने नाच कर यहीं गाना पड़ जाये तो कौन सा पहाड़ टूट गया, जनता और राज्य की युवा भाड़ में जाये, अपनी पत्नी और बच्चों के सपने टूटने नहीं चाहिए। इसलिए अब आज से तीन सालों तक, जब तक ये सरकार चली नहीं जाती, तब तक विभिन्न अखबारों/चैनलों व पोर्टलों में हेमन्त सोरेन की स्तुति देखने/सुनने का लाभ उठाइये।