अपनी बात

कभी पटना से रांची के बीच सुपर एक्सप्रेस चला करती थी, जो यात्रियों को सुकुन देती थी, पर अब…

कभी सुपर एक्सप्रेस के नाम से जानी जानेवाली, बाद में पटना-हटिया एक्सप्रेस के नाम से जानी जानेवाली ट्रेन आज से पूर्णिया कोर्ट-हटिया एक्सप्रेस के नाम से जानी जाने लगी है। बीते कुछ सालों से यह ट्रेन पटना-हटिया तक 18625/18626 नंबर से जानी जाती थी, बाद में इसी ट्रेन को पटना पहुंचते ही, पटना से कभी सहरसा तो कभी मुरलीगंज तो कभी पूर्णिया कोर्ट तक कोशी एक्सप्रेस 18697/18698 के नाम से चलाया जाता था, पर आज से ये चलन भी बंद, यानी अब ये ट्रेन सीधे पूर्णिया कोर्ट-हटिया एक्सप्रेस 18625/18626 के नाम से जानी जाने लगी है।

एक समय था, जब पटना से रांची जाने के लिए एक ही ट्रेन रात में हुआ करती थी, जिसे लोग आज भी 18623/18624 रांची एक्सप्रेस तो कुछ पटना-हटिया एक्सप्रेस कहा करते हैं। बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी के शासन काल में पटना से हटिया के बीच दिन में एक नई ट्रेन की शुरुआत हुई, जिसका नाम था सुपर एक्सप्रेस। शुरुआत में यह ट्रेन सुपरफास्ट हुआ करती थी, जिस पर दो रुपये का अतिरिक्त सुपरफास्ट चार्ज भी लगा करता था, यह ट्रेन पटना से पौने ग्यारह बजे खुलती और सीधे गया रुकती, और उसके बाद कोडरमा, हजारीबाग रोड, गोमो, बोकारो, मुरी, रांची होते हुए हटिया पहुंचती।

इसी बीच पटना से रांची के क्रम में गया और गोमो में ट्रेन के इंजन बदले जाते, पर जैसे ही गोमो से रांची के बीच रेलवे विद्युतीकरण होता गया, गोमो के बाद बोकारो में ट्रेन के इंजन बदले जाने लगे और फिर एक समय ऐसा भी आया कि आज की तरह इस ट्रेन में सिर्फ  गया में ही इंजन बदली जाती है। बाद में इस ट्रेन को धीरे-धीरे सामान्य एक्सप्रेस गाड़ी बनाते हुए इसका पटना और हटिया के बीच इतना स्टोपेज बढ़ा दिया गया कि लोग धीरे-धीरे इस ट्रेन का असली नाम जो सुपर एक्सप्रेस हुआ करता था, भूलते चले गये।

विभिन्न प्लेटफार्मों पर जो इसका नाम सुपर एक्सप्रेस के नाम से संदेश प्रसारित किया जाता था, धीरे-धीरे बंद हो गया। इसके सारे के सारे डिब्बे, देखनेलायक और प्रशंसनीय होते थे, इस ट्रेन पर सफर करनेवाले लोग भी इस ट्रेन की प्रशंसा करते नहीं थकते, पर जैसे ही लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने और इस ट्रेन को पटना पहुंचते ही कोशी एक्सप्रेस के नाम से सहरसा तक चलाया जाने लगा, इस ट्रेन की दुर्दशा प्रारंभ हो गई। धीरे-धीरे इसके लाइट खराब होने शुरु हुए और एक-एक कर ट्यूब लाइट गायब होते चले गये। डिब्बों में लगे पंखों की भी दुर्दशा प्रारम्भ हो गई।

शौचालय का नल तक लोग कबाड़ कर ले गये। शौचालय में लगी शीशे को या तो तोड़ डाला गया, या उसे उखाड़ दिया गया। कई-कई डिब्बों के शौचालयों के किवाड़ तक तोड़ डाले गये। ट्रेन का रंग-रोगन भी प्रभावित हुआ। डिब्बों के खिड़कियों को भी तहस-नहस कर दिया गया और फिर ये ट्रेन जो कभी सुपर एक्सप्रेस के नाम को चरितार्थ करती थी, गंदगियों से सनी तथा कचरों से पटी ट्रेन के नाम से जानी जाने लगी, आज भी इस ट्रेन की कमोवेश स्थिति यहीं है, और इसके लिए न तो रेलवे विभाग जिम्मेवार हैं और न उसके कर्मचारी, क्योंकि जो लोग इस ट्रेन से नियमित यात्रा किये हैं, वे वस्तुस्थिति को अच्छी तरह जानते है कि आखिर वजह क्या है?

पटना से जिन्हें रांची जाना होता या जिन्हें रांची से पटना आना होता, इसी ट्रेन को प्राथमिकता देते, क्योंकि पटना से पूर्वाह्ण ग्यारह बजे ये ट्रेन खुलती और रांची रात्रि के 8.35 में पहुंचा देती, और रांची से यहीं ट्रेन सुबह के 7. 35 में खुलती और पटना अपराह्ण 4.10 बजे पहुंचा देती। न ट्रेन के देर होने का झंझट, न कोई परेशानी और न सफाई की समस्या। चक-चक करती ट्रेन से सफर करने का आनन्द लोग उठाते, पर आज तो सब कुछ बदल गया है, आज आप इस ट्रेन में बिना पंखे के डिब्बे, या आप बिना लाइट के डिब्बे, बिना किवाड़ के शौचालय, नल की टोटी उखाड़ लिये गये नल तथा गंदगियों से पटा शौचालय देखकर आप स्वयं को कोस सकते है कि आखिर आपने इस ट्रेन से पटना या रांची जाने का क्यों सोचा?

इस ट्रेन का अब सुधार न कभी होगा, न सुधार की गुंजाइश है, ये ट्रेन पूर्णिया कोर्ट-रांची के नाम से जानी जाने लगी है, यानी अब क्लियर है कि ये ट्रेन शायद ही समय पर रांची पहुंचेगी, क्योंकि पूर्णिया कोर्ट से पटना आने या पटना से पूर्णिया कोर्ट जाने में ही इस ट्रेन के धूएं छूट जायेंगे, बाकी का तो राम ही मालिक है।