अपनी बात

राज्य सरकार बताये कि “प्रभात खबर” में छपे इन विज्ञापनों का भुगतान कौन और कहां से करेगा?

दिनांक 20 जुलाई 2019 का रांची से प्रकाशित प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 10 और 11 देखिये। जिस पृष्ठ पर आम तौर पर संपादकीय या विशेष पृष्ठ दिये जाते हैं, उन पृष्ठों पर राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के विज्ञापन वह भी समाचार के रुप में प्रकाशित किये गये हैं, और उपर में नाम दिया गया है, मार्केटिंग इनिशियेटिव का।

आम तौर पर राज्य सरकार कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करती या कराती है, तो उसे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग जारी करता है और उसमें सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा एक पीआर नंबर दिया जाता है, पर इन दो पृष्ठों के विज्ञापनों में किसी में भी पीआर नंबर नहीं दिया गया है, अब सवाल उठता है कि जब कभी इस विभाग के ऑडिट होंगे तो राज्य सरकार इन अखबारों को दिये जानेवाले राशियों को किस मद में दिखायेंगी, सवाल यह है।

चूंकि राज्य में तीनचार महीने में विधानसभा के चुनाव होने हैं, और उन विधानसभा चुनाव में राज्य सरकार के प्रति अखबार, चैनल और विभिन्न प्रकार के पोर्टल अपनी कृतज्ञता दिखाते रहे, इसके लिए एक बहुत बड़ा खेल अभी से शुरु हो गया है, जिसके प्रतिभागी के रुप में अखबारोंचैनलों पोर्टलों ने अपना काम करना शुरु कर दिया है। सभी एक स्वर में राज्य सरकार की जयजय करने के लिए तैयार है, और राज्य सरकार उनके इस जयजय के बदले, वो सब कुछ करने को तैयार है, जिसे नियम कानून इजाजत नहीं देता।

चैनलों के आधे से लेकर एक घंटे तक का स्लॉट खरीदने की तैयारी चल रही है और उन्हें मुंहमांगी रकम उपलब्ध कराने की बात भी तय है, इन स्लॉटों में केवल राज्य सरकार की जयजय दिखाई जायेगी और इसके बदले चैनल विभिन्न पोर्टल अपनी सारी पत्रकारिता राज्य सरकार के चरणकमलों में रखेंगे, अब सवाल उठता है कि जब चैनल अपने आधे से लेकर एक घंटे तक अपने स्लॉट बेच देंगे, अखबार अपने पेज बंधक रख देंगे तो देश में लोकतंत्र क्या बचा रहेगा?

क्या विपक्षी दलों की आवाज जनजन तक पहुंच पायेगी, राज्य सरकार की गलत नीतियों के कारण जो राज्य को नुकसान पहुंचा है, उसका खामियाजा कौन भरेगा, जब राज्य की जनता को सहीगलत में भरमाने का काम अखबार चैनल करेंगे तो क्या जनता को समस्याओं से मुक्ति मिलेगी, और अगर नहीं मिलेगी तो इसके लिए दोषी कौन, अपराधी कौन? राज्य सरकार या यहां के बड़ेबड़े धन्नासेठ, संपादक, पत्रकार, जिन्होंने राज्य सरकार के आगे अपनी जमीर को बंधक रखने के लिए अभी से ही तैयारी शुरु कर दी, कुछ ने तो बंधक रख दिये और कुछ इंतजार में है कि सरकार बहादुर ने उनकी कितनी कीमत लगाई है।

आश्चर्य है एक समय था कि अखबार के पहले पृष्ठ पर फ्रंटलाइन की खबरे छपती थी, बाकी विज्ञापन अंदर या पीछे के पृष्ठों पर दिखाई देते थे, बाद में अखबारवालों ने अपना पहला पृष्ठ बेचना शुरु कर दिया और अब तो संपादकीय पृष्ठों की भी बोली लगनी शुरु हो गई, ऐसे में जब अखबार की आत्मा की बोली लगने लगे, जब अखबार की आत्मा ही मर जाये तो फिर अखबार जिंदा है या अखबार मर गया, उस अखबार का संपादक या मालिक ही इस पर चिन्तन करें, तो ज्यादा बेहतर होगा, ऐसे राज्य की जनता को राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों ने लूटने का जो कीर्तिमान बनाया, अब अखबार वाले भी इसमें जूट जाये तब तो राज्य का भला हो गया समझ लीजिये