अपनी बात

जनता को न मोदी, न केजरीवाल और न ही देश से मतलब है, उसे बस मुफ्तखोरी से मतलब है

जी हां, जनता न मोदी होती है और न ही केजरीवाल, जो उसे मुफ्तखोरी सीखा दें, उसे कर देती हैं मालामाल। मुफ्तखोरी एक ऐसी विधा है, जिसे हर कोई अपनाना चाहता हैं, चाहे वह नेता हो या जनता, बस उसे मौका मिलना चाहिए। एक उदाहरण देता हूं, जरा आप इसे समझने की कोशिश करिये, एक नेता चाहे वह आम आदमी पार्टी का केजरीवाल हो या भाजपा का नरेन्द्र मोदी।

इनसे पूछिये कि आप एक बार विधायक या सांसद बन गये, चाहे वह एक दिन के लिए ही क्यों न हो, आप पेंशन के हकदार हो या नहीं? ये कहेंगे जी हां, पर इनसे पूछिये कि देश की रखवाली कर रहा आइटीबीपी, बीएसएफ, सीसुब, असम रायफल्स, सीआइएसएफ उनके जवानों को ये सुविधा क्यों नहीं? यानी पेंशन की मुफ्तखोरी की सुविधा केवल नेताओं को ही क्यों, इसलिए कि वह नेता है, और जो पार्टी कहती है कि वह आम आदमी की राजनीति करती है, तो उससे पूछिये कि वह या उसके नेता क्यों इसकी सुविधा ले रहे हैं? तुम तो आम आदमी की बात करनेवाले हो।

अब आइये दिल्ली की जनता ने एक बार फिर केजरीवाल को चूना है, और यह भी मत भूलिये कि इसी दिल्ली की जनता ने लगातार तीन बार शीला दीक्षित को भी दिल्ली की बागडोर सौंप चुकी है और फिर उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखाया, ऐसा भी नहीं कि तीन बार शीला दीक्षित अच्छी थी, और चौथी बार में वह खराब हो गई, चूंकि भारतीय मतदाता पूरे विश्व में अनोखा मतदाता है, उसे देश या समाज से कोई मतलब नहीं, वह हवा का रुख देखती है, वह माहौल देखती है, वह मुफ्तखोरी देखती है और जाकर वोट गिरा देती है।

अब देखिये, दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा, मुफ्त बिजली, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, मुफ्त पेयजल सेवा उपलब्ध है,तो लोग केजरीवाल को वोट न देकर, मोदी को क्यों वोट दें? ऐसे भी सुना है कि केजरीवाल के पास अलादीन का चिराग हैं, वे तीन बार चिराग को घिसते हैं, और जिन्न निकल कर पूछता है, क्या हुक्म हैं मेरे आका, वे बोलते है कि मुफ्त की बिजली, पानी, बस सबको उपलब्ध करा दो, अलादीन ठीक वैसे कर देता हैं, तो बस समझते रहिये।

अब सुनने में आया है कि बंगाल की ममता बनर्जी भी केजरीवाल से अनुप्राणित होकर मुफ्त बिजली देने की कल घोषणा कर दी। सुनने में आया है कि झारखण्ड में भी ऐसा होने जा रहा हैं, तो भाई इसमें दिक्कत क्या हैं,  सारी चीजें मुफ्त कर दीजिये और सत्ता का आनन्द ले लीजिये। भले ही इसके कारण देश भाड़ में ही क्यों न चला जाये।

ऐसे भी इस देश में कितने देशभक्त लोग हैं, वह कौन नहीं जानता? यहां तो अंग्रेजों का साथ देने की खुशी में तथा अपने ही देशवासियों को हराने की खुशी में एक वर्ग विजयोत्सव भी मनाता हैं, और ये सब भारत में ही देखने को मिलता है, किसी अन्य देश में नहीं। इस देश में तो लोग अपने गुलामी की प्रतीक चिह्नों, पतितों व लूटेरों से इतना प्यार करते है कि अपने बच्चों का नाम रावण, तैमूर और बाबर रखने से भी नहीं हिचकते।

विश्व में कई ऐसे देश है, जहां मुफ्तखोरी के खिलाफ सरकार कड़े कदम उठाती है, साथ ही जनता भी मुफ्तखोरी के खिलाफ सजग रहती है, आप उसमें चीन और जापान को रख सकते हैं, पर भारत में एक रुपये में एक किलो चावल देने की घोषणा सरकारें करती हैं, यानी एक किलो चावल उपजाने में किसानों की छाती फंट जाती हैं, पर दूसरे को मुफ्त में देने के लिए मुफ्तखोरी सिखाने के लिए यहां एक रुपये प्रति किलो चावल देने की योजनाएं चलाई जाती है, और उसमें भी कई जगहों पर लोगों की भूख से मौत हो जाती है।

अब सवाल उठता है कि हमें जब मुफ्त में चावल, बिजली, पानी, दवाएं उपलब्ध हो जाये तो हम काम क्यों करें? काम करने की जरुरत क्या हैं,  क्यों नहीं अरविन्द केजरीवाल के जिन्न का लाभ उठाएं। एक तो नये जिन्न कोई बिहार के पीके उत्पन्न हुए हैं, जहां जाते हैं, जिससे सटते हैं, उनकी जीत करीब-करीब पक्की हो जाती है, तो क्या समझे ये जीत केजरीवाल की हैं या पीके की, या हम यह समझे की देश की जनता पीके की गुलाम है, या पीके के पास वो लकड़ी हैं, जिसे सूंघा कर वह वोट एकतरफा गिरवा देता है।

दरअसल ऐसा कुछ भी नहीं है, हमारे देश की जनता को मुफ्त में घर, मुफ्त में रसोई गैस, बिना हाथ डूलाए पैसे, मुफ्त में अनाज, मुफ्त में बस की सवारी की लत लग गई है, ऐसे में कोई भी चिरकूट नेता जीत जाये तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं, पर इतना जान लीजिये कि अब देश में आनेवाले समय में कोई लाल बहादुर शास्त्री नहीं होगा, जो अमरीका को जवाब दें सके कि उसे उसका गेहूं नहीं चाहिए, सब चिरकूट टाइप नेता होंगे और चिरकूट टाइप की जनता, जिसे मुफ्तखोरी के सिवा कुछ आता ही नहीं।

क्योंकि भारत की जनता देश से प्यार नहीं करती, अगर प्यार करती तो यह गीत गानेवाला देश “लाख फोजे लेके आये अमन का दुश्मन कोई, रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने…. वगैरह-वगैरह”  किसी पांच पाकिस्तानी आतंकवादी के आगे नहीं झूकता और हमारे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को तीन पाकिस्तानी आतंकवादी छोड़ने नहीं पड़ते।

अगर कोई नेता बोलता है कि वह देशभक्त हैं, तो सबसे बड़ा झूठा और लम्पट है और कोई जनता कहती है कि वो देशभक्त हैं और जो लोग यह समझते है कि भारत की जनता देशभक्त हैं तो उसके जैसा दूसरा कोई मूर्ख नहीं, क्योंकि भगत सिंह को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वाला, कोर्ट में उन्हें पहचाननेवाला कोई अंग्रेज नहीं भारतीय था, ऐसे हमारे यहां तो इसकी एक परम्परा है, एक ढूंढो, हजारों मिलते हैं, पैसे फेंको, ये देश को गुलाम बना देंगे। इस पर तो चर्चा करना ही बेमानी है।

आज दिल्ली में केजरीवाल जीता तो लोग भाजपाइयों को गाली दे रहे हैं, निः संदेह याद रखिये अगर भाजपा जीत गई होती तो लोग अरविन्द केजरीवाल को गालियां देते। ये वे लोग हैं, जिन्हें गालियां देनी ही आती है, देश को ये क्या जाने? एक पत्रकार है, नाम है रवीश कुमार वह दूसरों को कहता है कि गोदी मीडिया, पर वह यह नहीं कहता कि वह भी किसी की गोद में बैठकर सही को भी गलत कहने से गुरेज नहीं करता।

ऐसा नहीं कि वह दूध का धुला है और बाकी सारे लोग गंदे हैं, चूंकि आप की सोच एक खास पंथ से जुड़ा हैं, जिसका नाम है वामपंथ, आपको वह अच्छा लगता है, ऐसा नही कि वामपंथ खराब है, वहां भी अच्छे लोग है, यह भी नहीं कि सारे लोग ही अच्छे हैं, अगर ऐसा होता तो पूछिये कि बंगाल में तो वाममोर्चा की सरकार थी, तब सिंगूर में क्या हुआ था?

आज की स्थितियों-परिस्थितियों को देख हमें लगता है कि यह देश कभी तरक्की नहीं करेगा, बस हम पाकिस्तान से अपनी तुलना करते मर जायेंगे, और बांगलादेश से भी पीछे हो जायेंगे। हमारा पड़ोसी चीन हमारी ही मुफ्तखोरी से फायदा उठाकर, अपना माल पूरे देश में बिछाकर बेचेगा, और हम झूठी आजादी का जश्न मनायेंगे और कहेंगे कि हम आजाद है, सच्चाई तो यह है कि यहां का बच्चा-बच्चा गुलाम है, वो किसी भी देश के आगे खड़ा होकर यह नही कह सकता कि वह स्वतंत्र है, आर्थिक गुलामी और सबसे बड़ी तो मानसिक गुलामी है, जिससे वह कभी उबर ही नहीं पाया। बनते रहिये मूर्ख और मनाते रहिये मूर्खता का जश्न।