अपनी बात

‘तुम्हारे लातेहार में बाकी दोनों लौंडे को मिल गया है सैलरी’ क्या IPRD के बोलचाल की यही भाषा है?

अखबारों और चैनलों पर अपने चेहरे चमकाने के लिए रघुवर सरकार के पास पैसे हैं, पर ठेके पर रखे गये आइपीआरडी में कार्यरत एपीआरओ, सोशल मीडिया पब्लिक ऑफिसररिसेप्शनिस्ट, कम्प्यूटर ऑपरेटर, साउंड ऑपरेटर को मासिक वेतन देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। पिछले साढ़े चार महीने से ये सारे लोग वेतन के लिए तरस रहे हैं, पर वेतन का भुगतान नहीं हो रहा।

सर्वप्रथम इस मुद्दे को विद्रोही24. कॉम ने 21 अगस्त को उठाया था, पर उसके बावजूद राज्य की होनहार रघुवर सरकार और उनके अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। इधर अखबार और चैनल वाले जिन पर मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की कृपा बरस रही हैं, जिन्होंने अपने संपादकीय पेज तक पेड न्यूज के लिए बुक कर दिये हैं, उन्होंने इस प्रकरण पर अपने ओठ सील लिये हैं, क्योंकि इनमें उनका कोई परिवार का बच्चा नहीं हैं, अगर इनमें इनके परिवार का बच्चा होता और उसे साढ़े चार महीने से वेतन नहीं मिलती तो उन्हें भी दर्द जरुर होता।

इधर कुछ लोग बता रहे है कि अब तो पांच महीने होने जा रहे हैं, वेतन मिले हुए, ऐसे में वे करें तो क्या करें? इधर सीएमओ में कार्यरत आइपीआरडी का उच्चाधिकारी अजय नाथ झा ने लिखित रुप में इन सभी को सूचना दी है कि वो वादा करता है कि गत शनिवार यानी 24 अगस्त को सभी बकाया का भुगतान करवा देगा, और फिर पूरे वित्तीय वर्ष में फिर कभी दिक्कत नहीं आयेगी।

साथ ही अजय नाथ झा ने इन सारे अधिकारियों (ठेके पर रखे गये, जिन्हें साढ़े चार महीने से वेतन नहीं मिला) से अनुरोध किया है कि आप सब में कई उसके विद्यार्थी भी है, इसलिए वह अपील करता है कि केवल उसकी एक बार बात मानकर, अपना काम सभी शुरु करें, उसके बावजूद ठेके पर रखे गये ये अधिकारियों का समूह कार्य करने को तैयार नहीं हैं, जो शर्मनाक है।

इधर एक वॉयरल ऑडियो, विद्रोही24.कॉम को हाथ लगा है, जिस ऑडियो से साफ पता चल रहा है कि हजारीबाग में कार्यरत मोनिका जिसे साढ़े चार महीने से वेतन नहीं मिला है, वह आक्रोशित हैं और वह लगातार ड्रीमलाइन प्रबंधन से पूछ रही है कि आखिर अजय नाथ झा के लिखित वक्तव्य के बावजूद भी उसे वेतन क्यों नहीं मिली?

इधर मोनिका के बारबार सवाल पूछने पर ड्रीमलाइन प्रबंधन मोनिका को टर्मिनेट करने की बात करता है, मोनिका प्रबंधन के टर्मिनेशन की बात पर और आक्रोशित होती है, वह कहती है कि इससे ज्यादा आप कर भी क्या सकते है, वेतन तो दे सकते नहीं, यानी इस बहस से साफ पता लग रहा है कि राज्य में सरकार के नाक के नीचे क्या गुल खिल रहा है?

इधर दूसरा वायरल ऑडियो ऐसा भी विद्रोही24.कॉम को मिला है, जिसमें प्रबंधन की घटिया सोच का भी पता चलता है, वह अपने यहां कार्यरत अधिकारियों कर्मचारियों को लौंडा कहकर संबोधित करता है। ऑडियो में जो बातचीत है, वह इस प्रकार है

ड्रीमलाइन प्रबंधनतुम्हारे लातेहार में बाकी दोनों लौंडे को मिल गया है सैलरी। कर्मचारी नहीं। ड्रीमलाइन प्रबंधन –  उन दोनों को भी नहीं मिला है। कर्मचारी नहीं। ड्रीमलाइन प्रबंधन –  क्या बात कर रहे है, क्या नाम है दोनो का। कर्मचारीएक का नाम है सुर्य स्नेहा और एपीआरओ है नेहा। ड्रीमलाइन प्रबंधन –  अच्छाअच्छा समझ गया।

जहां की सरकार, अपने काम कराने के लिए जिस प्रबंधन को रखी है, वह अपने अधिकारियों कर्मचारियों को लौंडा कहकर संबोधित करता हो, उसके यहां एक अधिकारी और कर्मचारी की क्या इज्जत है? यह घटना सब कुछ बयां कर देती है? और आश्चर्य इस बात की है कि कुछ लोग ऐसे भी है, जो अपनी इज्जत को दांव पर लगाकर काम कर भी रहे हैं, उन्हें इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा, पर कुछ ऐसे भी हैं, जो इस हालात में काम करने से खुद को मना कर चुके हैं।