अपनी बात

दिवाली की रात, पटाखों की आवाज और वो घबराई नन्हीं चिड़ियां का मेरे घर आना

दिवाली की रात, यही कोई आठ या नौ बज रहे होंगे। अचानक एक छोटी सी चिड़िया मेरे किराये के मकान के एक कमरे में आ गई। वह बहुत घबराई हुई थी। छोटे से कमरे में वह एक छोर से दूसरे छोर तक उड़ती-फरफराती दौड़ लगा रही थी, कभी वह पंखे के उपर बैठ जाती, कभी लोहे के सिकर पर बैठ जाती तो कभी छोटे से छज्जे पर रखे सामानों पर बैठ जाती। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?  क्या न करें?

इधर अपनी श्रीमती जी, भगवान गणेश और महालक्ष्मी की पूजा को संपन्न करने में व्यस्त थी, अचानक जब उनकी नजर इस छोटी सी चिड़िया पर पड़ी, तब उनके मुख से निकल आया, लक्ष्मी जी छोटी सी नन्ही चिड़िया के रुप में, घर में प्रवेश कर गई हैं, अब शुभ ही शुभ होना है, उनके मन में छोटी सी नन्ही चिड़िया के लिए यह सुंदर भाव, अपने मन को रोमांचित कर दिया। हमें तभी परमहंस योगानन्द जी की वह बात याद आई, उन्होंने कई बार कहा कि ईश्वर कहां हैं, ईश्वर तो तुम्हारे आनन्द में हैं, तुम उन्हें कैसे और कब देखते हो, यह बिल्कुल तुम्हारे उपर निर्भर करता है।

वह घबराई नन्हीं चिड़ियां का अचानक, अपने कमरे में प्रवेश करना, हमें बता दिया था कि वह बाहर में हो रहे पटाखों की धमाकों को सुन, पटाखों की आवाज के डर से, अपने परिवार से अलग होकर, इस ओर आ गई थी, उसका मूल लक्ष्य फिलहाल स्वयं को बचाना और सुरक्षित रखना था। जैसे-जैसे रात बीतती गई, वह हमलोगों के बीच फ्रेंडली होती गई, हमने उसके एक दो फोटो मोबाइल से खीचे, वह बिना किसी भय के मोबाइल से फोटो खिंचाने के क्रम में पोज देती गई।

उस नन्ही चिड़ियां को कुछ न हो, अहित न हो, मैंने उस दिन पंखे नहीं चलाने का फैसला लिया, क्योंकि हमें डर था कि पंखे के चलने से वह लहूलुहान हो सकती थी, या उसकी मौत हो सकती थी, मैंने श्रीमती जी को कह दिया कि वे इस बात का ध्यान रखेंगी कि पंखे का स्विच ऑन न हो, क्योंकि जब व्यक्ति को किसी बात का ध्यान नहीं रखता, तो ऐसी घटनाएं घट जाती है, जिसका उसे बहुत ही अफसोस होता है।

इधर जैसे-जैसे पटाखों का शोर खत्म होता गया, हमने देखा कि उस नन्ही चिड़ियां का भय भी समाप्त होता गया। इधर चूंकि हमदोनों की आदत रही है कि हमलोग ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते हैं, वह नन्ही चिड़ियां भी उठ चुकी थी, वह उड़ने लगी थी, मैंने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां खोल दी, पर अंधेरा होने के कारण, वह निकलना नहीं चाहती थी, अचानक धीरे-धीरे आकाश साफ होने लगा, पूर्व में भगवान भास्कर ने दस्तक दी, फिर क्या था?

नन्हीं चिड़ियां ने अपने परिवार के सदस्यों की आवाज सुनी और फिर उनके साथ होने के लिए मचल उठी, उसने पंख फैलाया और कमरे के दरवाजे से निकलकर सामने के पेड़ पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर मस्ती करने लगी, मस्ती करने के क्रम में कभी-कभी वह हमारी ओर देखती, शायद वह अपने घर में रात्रि विश्राम के लिए बार-बार धन्यवाद ज्ञापित कर रही थी। उस नन्हीं चिड़ियां का बार-बार हमें देखना, अपने परिवार के साथ उसका मस्ती करना, आज भी हमें परम आनन्द की प्राप्ति करा देता हैं।

3 thoughts on “दिवाली की रात, पटाखों की आवाज और वो घबराई नन्हीं चिड़ियां का मेरे घर आना

  • Vikash

    बहुत सुन्दर व्यख्यान

  • राजेश कृष्ण

    वाह..नारायण नारायण।।

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