अपनी बात

झारखण्ड के नेता कितने भोले हैं, इन्हें बुद्ध की तरह ज्ञान-प्राप्ति तभी होती हैं, जब चुनाव सर पर होते हैं

इधर चुनाव सर पर हैं, और झारखण्ड के कुछ नेताओं को इस चुनाव के मौसम में गौतम बुद्ध की तरह परम ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हैं, उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हो चुका है कि देश को एकमात्र नरेन्द्र मोदी और झारखण्ड को एकमात्र रघुवर दास ही नई दिशा दे सकते हैं, दुसरा कोई नहीं। इसलिए वे फिलहाल दो मंत्रों को धारण कर, अपना जीवन सफल करने में लगे हैं। एक मंत्र है मोदी शरणम् गच्छामि और दूसरा मंत्र है रघुवर कृपा केवलम्।

इन दोनों मंत्रों को दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय में जाकर केन्द्रीय मंत्रियों अथवा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से अभिसिक्त करवाकर, भाजपा रुपी पीताम्बरी धारण कर, पूर्व के सभी राजनीतिक पापों से मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं, और हृदय में मनोवांछित वरदान की प्राप्ति होगी, यह भाव धारण कर, उस स्थल पर चले जाते हैं, जहां इन पर कृपा बरसनेवाली होती हैं।

यानी जो आज मोदी का हाल हैं, यहीं हाल कभी 1990 के समय लालू जी का था, जब इन्हीं लोगों को लालू में भगवान के दर्शन होते थे। लालू चालीसा लालूचरितमानस गानेवालों, लालू भजन करनेवालों पर ये जमकर अपनी खुशियां लूटाते थे, गले में हरी पट्टी इस प्रकार बांधे रहते थे, जैसे लगता था कि किसी ने लालू के हाथों राजनीति का मंगलसूत्र धारण करवा दिया हो, लालू के मंच पर आते ही, इस प्रकार कमर अपना 90 डिग्री तक झूका लेते थे कि पूछिये मत, पर जब से लालू प्रसाद पर राहुशनि और मंगल ने वक्रदृष्टि डाली है, बेचारे लालू जेल में पहुंच गये, अब इन लोगों को लगता है कि लालू का ही जब कैरियर समाप्त हो गया, तो उनका क्या होगा?

अब सवाल उठता है कि क्या सचमुच लालू प्रसाद यादव का कैरियर समाप्त हो गया? क्या राजनीति इसी को कहते है कि जब कोई पावर में रहे, तो उसका गुणगान करो, उसके चरणों में लोट जाओ, उसका फायदा उठाओ और जब वह गर्दिश में रहे, तो उसके छाती या पीठ पर छुरा भोकों और चल दो, ये कहकर कि अब तो तुम किसी काम के ही नहीं रहे, तो हमारा काम तुम क्या करोगे? क्या राजनीति इसी को कहते हैं, अगर राजनीति इसी को कहते हैं तो फिर राममनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, जैसे नेताओं ने दलबदलने का रिकार्ड अपने लिए क्यों नहीं बनाया?

अरे भाई राजनीतिक प्रतिबद्धता भी तो कोई चीज होती है? दीदा में लाज भी तो कोई चीज हैं, या सब को आपने गंगा में बहा दिया और एक सूत्री कार्यक्रम में लग गये कि चाहे जो मजबूरी हो, और हमारी इच्छा पूरी हो के सिद्धांत पर चल दिये, अगर ये सिद्धांत पर चलेंगे तब तो देश का उद्धार हो गया। ये तो पूर्णतः क्षुद्रबुद्धि का परिचायक हैं, ऐसे में भारत के भविष्य पर मंडरा रहे संकट को आप जैसे नेता कैसे दूर कर पायेंगे? आप ये क्यों भूल रहे है कि आपका पड़ोसी चीन, आपसे ही अपनी आर्थिक शक्ति बढ़ा रहा और आपको ही धौंस दिखा रहा हैं और पाकिस्तान के पीठ पर हाथ रखकर, आपके सम्मान के साथ खेल रहा हैं, ऐसे भी आप इन चीजों को थोड़े ही देखेंगे, ये तो वह देखता है, जिसके पास चरित्र होता है, जब चरित्र ही नहीं, तो फिर देश कहां।

अब जरा देखिये , एक पार्टी के नेता ने कल भाजपा का दामन थाम लिया, और भाजपा का दामन थामने के बाद, वे सीधे फ्लैश बैक में चले गये, उन्हें सब याद आने लगा, वे कहने लगे कि वे तो पुराने संघी है, भाजपा में आना उनके घर वापसी जैसा है, उनके पिताजी जनसंघ काल से जुड़े थे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों में देश सुरक्षित है, अमित शाह के नेतृत्व पर विश्वास है, मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्थानीय नीति बनाकर राज्य का भला कर दिया।

वाह रे भाई, आप राज्य की जनता को कितना बेवकूफ समझते हैं, वो तो आपके मुखारविन्द से टपक रहे संवाद बता रहे हैं, तो क्या राज्य की जनता आपकी बातों में जायेगी? कौन ठीक भी सकती है, क्योंकि आप भी तो समाज से ही आते हैं, अगर समाज का यहीं चेहरा है, जिसका आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो फिर ठीक हैं, गाइये भजन मोदी और रघुवर के, और जब एक दिन इनके सितारे गर्दिश में होंगे तो फिर आप दल बदल करियेगा और कहियेगा कि ये तो हमारी घरवापसी है, हम तो पहले इसी पार्टी में थे, या आपको कहने का मौका नहीं मिला तो आपके बच्चे कहेंगे कि हमारे पिता तो पुराने लालूभक्त है, लालू के शरण में रहकर उन्होंने वर्षों जिंदगी बिता दी। क्यों ठीक हैं न।

One thought on “झारखण्ड के नेता कितने भोले हैं, इन्हें बुद्ध की तरह ज्ञान-प्राप्ति तभी होती हैं, जब चुनाव सर पर होते हैं

  • राजेश कृष्ण

    मोदी शरणम..ह ह ह
    लगता है,
    मुद्ध..धर्म बन रहा है..

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