पलामू की घटना, मुस्लिम दबंगों ने 50 महादलित परिवारों के घर तोड़ें, गांव से भी निकाला, पुलिस ने साधी चुप्पी, कोई मदद को आगे नहीं आया

घटना पलामू के पांडू प्रखण्ड के कुजरुकला पंचायत के मुस्लिम बहुल गांव मुरुमातू की है। जहां पिछले चालीस सालों से रह रहे मुसहर समुदाय के परिवारों को मुस्लिम दबंगों ने जबरन घर से निकाला, उनके घर तोड़े और गांव से बाहर भी निकाल दिया। कमाल है, इन मुस्लिम दबंगों ने यही नहीं किया, इन महादलित परिवारों से हस्तलिखित सहमति पत्र पर जबरन अंगूठा भी लगवा लिया।

इसके बाद इन सारे महादलित परिवारों को छतरपुर प्रखण्ड के लोटो जंगल में जाकर उनके अपने हाल पर छोड़ दिया। बताया जाता है कि मात्र कुछ कदमों की दूरी पर ही पांडू पुलिस मौजूद थी, पर इन अत्याचारियों के खिलाफ इस पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। महादलित परिवार बेबस थे, लाचार थे, अपनी बेबसी पर रो रहे थे, उनका चालीस साल का आशियाना मुस्लिम दबंगों ने लूट लिया था, वो भी मदरसे के नाम पर।

पर इन दलितों की मदद के लिये कोई नहीं आया। जो लोग हिन्दू-मुस्लिम और गंगा-जमनी तहजीब की बातें करते हैं, जो गरीबों-वंचितों की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं, वे वामपंथी व राजद-झामुमो के नेता भी कान में तेल डालकर सोये रहे। आश्चर्य यह भी है कि इस घिनौने कांड के बाद किसी भी संभ्रांत मुस्लिम संगठनों ने अंगुली तक नहीं उठाई, सभी ने चुप्पी साध रखी है।

महादलित परिवारों का कहना है कि यह जमीन उनकी है, उनके नाम से पर्चे भी है, पर आज वे मारे-मारे फिर रहे हैं। जरा देखिये एक पुलिसकर्मी का बयान (जिसे दैनिक भास्कर ने छापा है) थाना प्रभारी भूमा किस्कू का कहना है कि उनसे मुसहर परिवार आकर मिलते तो कही खाली पड़े, अन्यत्र भूखण्ड में उनको रखवा देते।

कमाल है, ये महादलितों को न्याय दिलाने के बात नहीं कर रहे, ये कह रहे है कि जिन्होंने गलती किया उसे सजा न दिलाकर, महादलितों को दूसरी जगह बसाने का काम करते, इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है, यानी इस राज्य में कैसे अत्याचारियों का मनोबल बढ़ रहा हैं, उसका नमूना है यह घटना। क्या सरकार इस घटना के बाद जगेगी और महादलित परिवारों को उसी स्थान पर बसायेगी, जहां से उन्हें मुस्लिम दबंगों द्वारा खदेड़ा गया या उस थाना प्रभारी के बयान का ही अनुसरण करेगी।