सरकार किसी की हो दुगिया को मरना है, बेरोजगारों की औकात मात्र 14 रु. और मास्क के नाम पर दादागिरी सिर्फ जनता को झेलना है

सरकार किसी की भी हो दुगिया, भूख और बीमारी से तुम्हें ही मरना है। बेरोजगारों तुम्हारी औकात 14 रुपये प्रतिदिन से ज्यादा की नहीं हैं। रही बात तुम जनता, मास्क का जुर्माना सिर्फ तुम से ही वसूला जायेगा। हम तो पैदा ही लिये हैं राज करने के लिए, तुम्हारी जिंदगी तबाह करने के लिए, और ज्यादा दिमाग लगाए, हमको आंख दिखाए, तो समझ लो ये जो हर गली-मुहल्ले में पुलिस चौकी देखे हो न, पुलिस थाने देखे हो न, वो तुम्हारी सेवा के लिए हमने नहीं रखें, बल्कि तुम्हें हम इनके द्वारा अपने इशारे पर ऐसा केस में फंसवायेंगे कि सारी क्रांति जो हैं, धरी की धरी रह जायेगी। समझे, इसलिए ज्यादा क्रांतिकारी न बनो।

लोग मरे तो मरे अपनी बला से, बेरोजगार को रोजगार अगर नहीं मिलता है तो वे मरे अपनी बला से, हमको जो आंख दिखायेगा, हम तो अपने भक्त बने पुलिसकर्मियों से वहीं काम करायेंगे, जो हमारे पार्टी कार्यकर्ता हमारे लिए करते हैं। दरअसल यही आज की राजनीतिक सच्चाई है। इसे आप नकार नहीं सकते। भारत में अगर पैदा लिये हैं, तो आपको यह सब झेलना ही होगा। गरीब हैं तो मरिये, मध्यम वर्ग हैं तो मरिये, और अगर नेता या आइएएस/आइपीएस है तो बस आप ऐश करिये।

ऐश भी ऐसा-वैसा नहीं, जिस सदन में कानून बनता है, उसी सदन में बैठनेवाले बिना मास्क के आते हैं, बिना मास्क के बहस करते हैं और आम जनता से लाखों वसूल लेते हैं, भाई आम जनता का गुनाह क्या है? तो उसका गुनाह यह है कि वह जनता है, और वह पैदा लिया है पीसने के लिए।

आप किसी भी बेरोजगार से पूछिये कि तुम्हें सरकार ने सलाना बेरोजगारी भत्ता पांच हजार रुपये दिये हैं, तो सीधे कहेगा कि वो हमें पांच हजार रुपये क्यों दे रही हैं, वो हमसे ही खुद ले ले। अरे पांच हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता देने से अच्छा है कि जो सरकार ने नौकरी पर रोक लगा दी है, उन नौकरियों के लिए परीक्षा की तिथि की घोषणा करें, पर सरकार किसी की हो, उसे यह सब सूझता कहा हैं, उसे तो हिन्दू-आदिवासी, आदिवासी-हिन्दू करने-कराने में मजा आता है। भाजपा को हिन्दू-मुसलमान के नाम पर बदनाम करनेवाले, अब खुद ही धर्म की राजनीति कर रहे हैं, और दूसरे को दोष देते हैं।

और अब दुगिया की भी देख लीजिये। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। बजट सत्र चल रहा है, और वहां हो क्या रहा है? दो-चार विधायकों जैसे विनोद कुमार सिंह, सरयू राय, मथुरा महतो, दीपिका पांडेय आदि को छोड़ दीजिये, तो सदन में बाकी लोगों की जो सोच हैं, उसकी तो भगवान ही मालिक है, किसी को हंसी-मजाक से फुरसत नहीं हैं, तो किसी को खुद को प्रोजेक्ट करने से फुरसत नहीं, ताकि वो हरदम मीडिया के घेरे में रहे, किसी ने यह नहीं देखा कि एक पत्रकार संजय वर्मा ने दुगिया के बारे में जो कल रिपोर्ट दिखाई है, उस दुगिया का क्या हुआ?

दुगिया आज मर चुकी, दुगिया के बाद उसके घर में और लोग हैं, जिन्हें भोजन नहीं मिल रहा, लेकिन यहां देखता कौन है? दुगिया जैसी लोग मरें तो उनकी बला से। यहां तो मौत भी भाजपाई व कांग्रेसी होती है। याद करें, जब रघुवर सरकार में संतोषी की भूख से मौत हुई थी तो कितना बावेला मचा था, पर जरा दुगिया की मौत पर देखिये क्या हो रहा है? कमाल है एक मुस्लिम युवक मॉब लिंचिंग का शिकार होता है, तो भाजपा को छोड़ सभी लोग पहाड़ उठा लेते हैं, उक्त युवक का परिवार विधानसभा तक पहुंच जाता है, कई राजनीतिक दल उक्त मुस्लिम परिवार के घर तक मदद करने के लिए पहुंच जाते हैं, पर इसी रांची में सचिन की भी तो मॉब लिंचिंग हुई, उसके घर कितने राजनीतिक दल के लोग पहुंचे, क्या वह बहुत अमीर था।

यार, गजब की राजनीति है, मॉब लिंचिंग के शिकार में भी हिन्दू-मुस्लिम। अरे भाजपा को गाली देनेवालों, तुम भी अपने आप पर शर्म करो, क्योंकि तुम भी जो कर रहे हो न, वो इंसानियत के नाम पर कलंक हैं, तुम्हें ईश्वर इसके लिए माफ नहीं करने जा रहा, चाहे तुम कोई रहो।