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शर्मनाक, झारखण्ड में फिर एक की भूख से मौत, घटना पाकुड़ के धोवाडंगाल गांव की

पाकुड़ का घाघरजानी पंचायत का धोवाडंगाल गांव। इस गांव में अनुसूचित जनजाति की 32 वर्षीया लुखी मूर्मू की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों के अनुसार मौत का कारण भूख है, पर स्थानीय प्रशासन के अनुसार लुखी मुर्मू की मौत भूख से नहीं, बल्कि बीमारी से हो गई। झारखण्ड में जब भी कोई भूख से मरता है, स्थानीय प्रशासन व सरकार, उस मौत को बीमारी बता देता हैं। अब सवाल उठता है कि क्या जो कई दिनों से भूखा रहेगा, वह किसी बीमारी का शिकार नहीं होगा, और जब बीमारी का शिकार होगा तो क्या उसकी मौत नहीं होगी? कितने शर्म की बात है कि कल हम गणतंत्र दिवस समारोह मनायेंगे और आज एक आदिवासी महिला की भूख से मौत की खबर आ रही है, क्या हम इतने गिर गये कि हम किसी गरीब तक एक मुट्ठी अनाज नहीं पहुंचा सकते, अगर इतना भी नही कर सकते तो ऐसी सरकार का क्या मतलब, ऐसे उत्सव का क्या मतलब?

कमाल की बात है कि लुखी के परिवार का सदस्य कह रहा है कि बीमारी की वजह से काम नही कर पाने तथा घर में अनाज नहीं होना मौत का कारण हैं, और जिला प्रशासन रटा-रटाया जवाब दे रहा है कि लुखी की मौत बीमारी से हो गई। जरा सरकार और सरकार के अधिकारी बताये कि जिस घर में कोई कमानेवाला नहीं हो, जिस घर में जिस पर दारोमदार है, वह कई दिनों से बीमार पड़ जाये और घर में अनाज का संकट उत्पन्न हो जाये, तो उसे बचाने की जिम्मेवारी किस पर है? उस घर तक अनाज पहुंचाने का जिम्मा किसका है?  कितने शर्म की बात है कि जन वितरण प्रणाली से राशन कार्ड पर उसे सितम्बर तक ही अनाज मिला, ऐसे में अक्टूबर से लेकर जनवरी तक का राशन कहां और किसके खाते में गया, सरकार और उनके अधिकारियों को तो बताना चाहिए।

आश्चर्य इस बात की है कि जब भी कहीं भूख से मौत हो जाती है, तो उस पर लीपा पोती करने का अभियान भी जिला प्रशासन द्वारा प्रारम्भ हो जाता है, जैसा कि लुखी मुर्मू की मौत को लेकर यहां जारी है। जिला प्रशासन पूरे मामले की जांच तथा दोषियों को सजा की बात भी करता है और दूसरी ओर यह भी कह डालता है कि मृतका के पास तीन बीघा जमीन है, मृतका के घर में चावल के अलावे गाय भी मिला, जबकि लुखी मुर्मू की बहन बताती है कि उसकी बहन के बीमार रहने की वजह से खाद्यपदार्थ का संकट उत्पन्न हुआ। राशन डीलर ने राशन नहीं दी, चार महीने से राशन नहीं उपलब्ध होने के कारण घर में खाने-पीने का संकट उत्पन्न हो गया था, भूखों रहने के कारण उसकी बहन गत मंगलवार को अंतिम सांस ली। ग्राम प्रधान, मुखिया और ग्रामीणों की बात माने तो उनका साफ कहना है कि लुखी की मौत भूख से हुई।

लुखी की भूख से मौत का समाचार मिलने के बाद स्थानीय प्रशासन ने लुखी के घर 60 किलो बोरी की चावल पहुंचाई, जब व्यक्ति दुनिया ही छोड़ दें, तब जाकर आप अनाज पहुंचाएं तो ऐसे अनाज से क्या मतलब? हाल ही में भाकपा माले विधायक राजकुमार यादव ने भूख से मौत की खबर सदन में उठाया था और सरकार से पूछा कि जब लोग भूख से मरते हैं तो सरकार और उनके मातहत काम करनेवाले अधिकारी इस मौत को बीमारी बता देते हैं, ऐसे में सरकार बताये कि कोई भूख से मरा या नहीं मरा, इसके लिए कोई नीतिगत निर्णय लिया है क्या? सरकार ने अगर कोई मापदंड बनाया हो तो बताये, पर सरकार के पास इस सवाल का जवाब नहीं था।

चलिए लुखी मर गई, उसकी मौत के बारे में उसकी छोटी बहन कितना भी चिल्लाए, उसकी बड़ी बहन की मौत भूख से हुई, घर में अनाज नहीं रहने के कारण हुई, आप उसकी बोलती बंद करा दें, पर झारखण्ड के लोग इतने भी मूर्ख नहीं कि वे ये नहीं जान पाये कि राज्य में किस प्रकार की सिस्टम काम कर रही है, सिस्टम फेल होने का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि जब कोई जीवित रहता है तो प्रशासन के लोग उन तक अनाज पहुंचाने की अपनी जिम्मेवारी नहीं उठा पाते और जैसे ही कोई मरता है तो उसे चावल की बोरी और पैसे लेकर उसके दरवाजे पर आ पहुंचते है, काश यहीं चीजें लुखी के पास पहले पहुंच जाता तो कम से कम लुखी तो नहीं मरती, अब ऐसे में सरकार ही बताये कि आम गरीब जनता तो आज भी भूखमरी की शिकार है, गरीब जनता सामान्य बीमारियों से मर जा रही है, ऐसे लोगों के लिए गणतंत्र या गणतंत्र दिवस के क्या मायने?