अपनी बात

बदल रहे हैं संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक, बदल रही हैं उनकी कार्यप्रणाली

एक समय था, जब संघ के स्वयंसेवक और प्रचारकों को देखकर, लोग उन्हें सम्मान देने में लग जाते, पर आज वैसा नहीं हैं। अब माहौल बदला हैं, बदलते माहौल के अनुसार संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक भी खुद को बदल चुके हैं। आज का प्रचारक सीएम के साथ बैठकर गुफ्तगू करने में शान समझता है, उसे बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों से मेल-जोल रखने में आनन्द का अनुभव होता है, जबकि कल के प्रचारक के लिए सीएम और सामान्य जनता में कोई फर्क नहीं था, उसके लिए दोनों एक जैसे मालूम पड़ते थे।

जब संघ के स्वयंसेवकों और प्रचारकों ने अपने में बदलाव लाया तो सामान्य जनता ने भी इनसे दूरियां बना ली, आज स्थिति ऐसी है कि इन्हीं कारणों से संघ की शाखाएं धीरे-धीरे संक्रमण काल से गुजरते हुए अपने अस्तित्व संकट से जूझ रही हैं। न तो अब कहीं शाखाएं दिखाई पड़ती हैं और न लोग दिखाई पड़ते हैं, अब तो ज्यादातर संघ के लोग स्मार्टफोन पर ही शाखा लगाकर नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे करने में लग गये हैं।

जरा देखिये, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को, लोग इन्हें संघ के स्वयंसेवक के रुप में, प्रचारक के रुप में देखा करते थे, जब ये प्रचारक थे, उस समय का इनका फोटो देखिये, जब गुजरात के सीएम बने तब का फोटो देखिये और अब प्रधानमंत्री पद पर पहुंच गये, तब एक ही दिन में सुबह, दोपहर, शाम और रात्रि का फोटो देख लीजिये, आपको पता लग जायेगा कि कैसे एक स्वयंसेवक अपने को बदल रहा है? जब सामान्य स्वयंसेवक यह सब देखता है तो उसे भी लगता है कि क्यों नहीं, उस स्वयंसेवक की तरह दिन भर में चार बार महंगी कपड़े-सूट पहनने के काम में लग जाये और वह इसके लिए सारा काम को त्याग कर, वह ऐसे कार्यों में लग जा रहा है, जिससे उसकी जिंदगी ही तबाह हो जा रही हैं।

संघ में माना जाता है कि प्रचारक, बिना भगवा वस्त्र का संन्यासी है, और भारतीय संस्कृति में त्याग को श्रद्धा की नजरों से देखा जाता है, पर आज का प्रचारक, जब अपने कार्य छोड़कर, वह सारा कार्य करने लगा हैं, जो उसे करना ही नहीं हैं, तो वहीं सब देखने को मिलता है, जो अन्य संगठनों और संस्थानों में देखने को मिल रहा हैं। आज का प्रचारक नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मेलजोल बढ़ाकर अपने लोगों के लिए विशेष कार्य करने में भी लग रहा है, जिससे संघ की छवि धूमिल हो रही है।

एक समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रचारक के रुप में कार्य कर रहे थे, बाद में उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में भेजा गया, वे वहां भी उसी सादगी से रहे, जिसकी चर्चा आज भी दूसरे लोग करते हैं। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी उन्होंने सादगी को नहीं भूला, नाना प्रकार के आरोपों के बावजूद भी वे सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों में समान भाव से आज भी लोकप्रिय है, पर कल के प्रचारक रहे और अब भारत के प्रधानमंत्री के रुप में कार्यरत नरेन्द्र मोदी, स्वयं ही बता दे कि वे विपक्ष तो दूर, अपनी ही पार्टी में कितने लोकप्रिय हैं? अगर ज्यादा जानकारी लेनी हो तो भाजपा के ही सांसद रह चुके यशवंत सिन्हा या पटना साहिब के भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा से जाकर पूछ लीजिये। जरुरत क्या है?  किसी और से पूछने की।

स्थिति ऐसी है कि पूरे संघ पर पूंजीपतियों ने कब्जा कर लिया है, अगर आपके पास पैसे हैं, दबंग हैं, तो आपकी जय-जय हैं, ये पूंजीपति तो आजकल किसे सांसद बनाना है? कहां से  भाजपा का टिकट दिलवाना है? कोई कार्यक्रम आयोजित करनी है, तो किसे मुख्य अतिथि या विशिष्ट अतिथि बनाना है? ये सारा तय करते हैं, और जो प्रचारक होते है, उनके आगे हां में हां मिलाते हुए, कार्य को गति देते है, ऐसे में अब संघ भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह कार्य करने लगे तो अवश्यम्भावी है कि संघ से ईमानदार और सत्यनिष्ठ लोग दूर होंगे और जब ये ईमानदार और सत्यनिष्ठ लोग दूर होंगे तो संघ या देश का कितना नुकसान होगा  या हो रहा है, ये तो नागपुर में बैठे संघ के उच्चाधिकारियों को पता लग ही रहा होगा।

स्थिति तो ऐसी हो गई है कि आजकल जब-जब संघ की विशेष बैठक आयोजित होती है, उसमें सिर्फ और सिर्फ वहीं चेहरे नजर आते है, जो सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से विशेष लाभ ले रहे हैं और उसके बदले में संघ से जुड़े आनुषांगिक संगठनों पर थोड़ा-बहुत खर्च कर रहे होते है, जबकि पूर्व में ऐसा नहीं था, संघ का कोई भी कार्यक्रम होता तब पूरे समाज को उस कार्यक्रम में जोडऩे का काम होता था ताकि लोगों को लगे कि इसमें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं शामिल है, जो धनाढ्य है, बल्कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति का भी वहीं सम्मान है, जितना धनाढ्य का, पर अब वह सब कहां, बदलते परिवेश में संघ भी बदल रहा है और बदल चुके हैं, उसके प्रचारक और उसके स्वयंसेवक।