मृत बच्चों की आत्मा और उनके माता-पिता की आह से निकली आग, आपकी सत्ता में कही आग न लगा दें

सुना है भारत से कई गुणा छोटा देश है ट्यूनीशिया, जहां एक अस्पताल में 11 बच्चों की मौत के समाचार आने के तुरन्त बाद, वहां के स्वास्थ्य मंत्री ने इस्तीफा दे दिया था, पर भारत जैसे महान देश कहे जानेवाले देश में क्या होता है? यहां एक अस्पताल में 150 से भी ज्यादा बच्चे काल-कलवित हो जाते हैं, पर यहां के बिहार राज्य का स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय इस्तीफा देने के बजाय, यह पूछता है कि भारत का क्रिकेट स्कोर क्या है?

केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे तो प्रेस कांफ्रेस में ही उंघने लगता है, यहां का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो उन बच्चों की सुध लेने में दिलचस्पी न लेकर, एक फाइव स्टार होटल में डिनर का आयोजन कराता है, जिसमें बड़ी संख्या में उनके द्वारा बुलाये गये सांसद व अन्य अतिथि भाग लेते हैं।

कभी इसी देश में लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता हुए, सुना है कि जब वे रेलमंत्री थे, तभी उनके मंत्रित्व काल में एक रेल दुर्घटना हुई। वे इस रेल दुर्घटना से इतने विचलित हुए कि उन्होंने उक्त मंत्रालय से ही इस्तीफा दे दिया था। हमेशा बिना किसी दिखावे के योग के, वे योगी बने रहे। सामान्य धोती-कुर्ते पर प्रधानमंत्री जैसे पद को सुशोभित किया। इसी देश में गुजरात के पोरबंदर में जन्मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक योगी की तरह जीवन बिता दिया, जबकि ऐसा नहीं कि उनका परिवार साधारण था, वे राजकोट के दीवान के बेटे थे।

बताया जाता है कि जवानी में वे फैशन के दिवाने भी थे, पर जैसे ही उन्हें परतंत्रता की चोट दिल पर लगी, और देश की असली तस्वीर उनके सामने आई, सदा के लिए लंगोटी पहन ली। इसी लंगोटी को पहनकर कई देशों का दौरा किया, किसी ने उनका अपमान तक नहीं किया, बल्कि जहां गये, सम्मान की नजरों से देखे गये। इसी देश में एक महान योगी स्वामी विवेकानन्द हुए, जिन्होंने सामान्य से वस्त्रों में शिकागो जाकर विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की साख बढ़ा दी।

कहने का मतलब यह है कि एक गांधी थे, जिन्होंने फैशन को छोड़कर, लंगोटी पहन ली, और एक उसी गुजरात में जन्मे पीएम नरेन्द्र मोदी है, जो जब तक स्वयंसेवक रहे, सामान्य ढंग से रहे, यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री भी थे, तो शुरुआती दिनों में वे सामान्य ढंग से ही जीवन को चलाये रखा, पर आज उनकी क्या स्थिति है? उनके पहनावे और रहन-सहन को देखिये तो सब कुछ पता चल जाता है कि उनकी सोच में कितना परिवर्तन आया है? यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि भारतीय संस्कृति कहती है कि पथ कौन है, जिस पथ से बड़े लोग होकर जाये, यानी महाजनो येन गता स पन्थाः।

 

21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के दिन रांची पहुंचे नरेन्द्र मोदी के स्वागत में भी ये झूठा बड़प्पन देखने को मिला, जिस रास्ते से पीएम मोदी गुजरनेवाले थे, उस रास्ते में कई गरीबों के मकान थे, जो शायद पीएम मोदी को नापसंद थे, हमारे राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने वे गरीबों के मकान पीएम मोदी को न दिखाई पड़े, इसके लिए उसे सड़क पर पंडाल खड़े कर, ढकने का प्रयास किया, ताकि पीएम मोदी की उस पर नजर ही नहीं पड़े, क्या योग दिवस मनाने के लिए सच को ढंकने की भी आवश्यकता पड़ती है?

क्या पीएम मोदी अमेरिका या ब्रिटेनवासी है, क्या उन्हें नहीं पता कि हमारे देश के लोग कैसे और किस हाल मे रह रहे हैं, भला एक संघ के स्वयंसेवक से इस पद पर आनेवाला व्यक्ति आज ऐसा कैसे हो गया कि उसे गरीब और गरीबों के घर से नफरत होने लगी और उसे ढंकने का काम भी इस राज्य में होने लगा। आखिर हम कहां जा रहे हैं?

कमाल है कल जो भोजन के पैकेट बांटने के नाम पर जो राज्य के सम्मान का जनाजा निकला, और उस जनाजे को लेकर जिस प्रकार से उपायुक्त का बयान आया कि जिला अनुभाजन पदाधिकारी इस मामले की जांच कर दोषी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करेगी, साफ बताता है कि जिला प्रशासन इस कांड के लिए एक साधारण व्यक्ति को फंसाने का काम कर रहा हैं, जो भोजन फेंक रहा था, जबकि सच्चाई यह है कि इसके लिए वह हर व्यक्ति जिम्मेवार है, जो इस आयोजन में जुड़ा था, जिसने टी-शर्ट और मैट को ले जाने के लिए तो अच्छी व्यवस्था कर दी पर भोजन को ठीक से बांटने के लिए प्रबंध ही नहीं किया।

कमाल की बात है, आपने छोटे-छोटे स्कूली बच्चों को सुबह के दो बजे ही बुला लिया और भूल गये कि उन बच्चों को दो बजे रात से लेकर नौ बजे सुबह तक जगे रहने के बाद भूख भी लगेगी, जिसकी अच्छी व्यवस्था करने का काम जिला प्रशासन का था, जिसे सही ढंग से करने में जिला प्रशासन ने अपने कर्तव्यों का निर्वहण नहीं किया, तो इसके लिए दोषी कौन है? यह भी बताना पड़ेगा, पर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को देखिये, वे जिला प्रशासन को बेहतर प्रबंधन के लिए बधाइयां दे दी।

किस बात की बधाई भाई, उस बात के लिए, कि इस जिला प्रशासन ने लोगों को भोजन जानवरों की तरह फेंक कर दिया था, क्या ये लोग खुद ही पहुंच गये थे, अरे भाई आप लगता है कि भूल रहे है कि आपने इसके लिए ऑनलाइन अनुरोध स्वीकार किया था, बिना पास के तो आप किसी को वहां जाने ही नहीं दे रहे थे, ऐसे में तो आपने लोगों को बुलाकर अपमान ही किया।

कुल मिलाकर देखे तो बिहार हो या झारखण्ड दोनों राज्य के मुख्यमंत्रियों ने अपने कार्यों का निर्वहण ठीक ढंग से नहीं किया, और न ही प्रधानमंत्री ने इन दिनों मानवीय मूल्यों का निर्वहण किया है। शायद पीएम मोदी को पता नहीं कि सुप्रसिद्ध कवि चार्ल्स मैके कहते है – sympathy is greater than good. किसी के प्रति दया या सहानुभूति दिखाना, किसी को धन मुहैया कराने या अकूत संपत्ति प्रदान करने से भी ज्यादा बड़ा है, इसलिए पीएम मोदी जी, अभी भी वक्त है, वक्त को समझने की कोशिश कीजिये, नहीं तो वक्त आपको समझा देगा।

मृत बच्चों की आत्मा और उन बच्चों के माता-पिता की आह से निकली आग, आपकी सत्ता में कही आग न लगा दें, क्योंकि मैं देख रहा हूं कि दूसरे टर्म के लक्षण ठीक नही दिख रहे, आपके लोग जय-जय कर रहे हैं, आपको जय-जय सुनना अच्छा भी लग रहा हैं, पर जय-जय सुनने से अच्छा है कि आप मुजफ्फरपुर के मृत बच्चों की आत्मा की पुकार को सुनिये, ये दिखावे के योग से कही ज्यादा जरुरी है। सभी का ध्यान आपकी ओर है, आपने बहुत बड़ी गलती की है, आप शिखर धवन की एक अंगूली की चोट पर ट्वीट करते हैं और 150 बच्चों की मौत पर आप सहानुभूति के दो बोल नहीं बोल पा रहे, हमनें ऐसा पीएम तो नहीं चुना था, जो हृदय से इतना कठोर है।

अरे कभी आपने ही कहा था कि आप वैसे लोग है कि एक कुत्ता का पिल्ला भी अगर किसी कार के नीचे आ जाये तो आप लोग अफसोस करते हैं, यहां तो हम और आप जैसे दिखनेवाले मनुष्यों के 150 बच्चे काल-कलवित हो गये, आपने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी और किये जा रहे हैं? आपके मुख से सहानुभूति के दो शब्द सुनने के लिए बिहार के लोग इन्तजार कर रहे हैं, जिन्होंने आपको झोली भरकर लोकसभा की सीट थमा दी थी।