अपनी बात

शर्म आनी चाहिए रघुवर सरकार को, जिसने महिलाओं के उपर पुरुष पुलिस से हाथ छोड़वा दी

मुख्यमंत्री रघुवर दास इन दिनों जन आशीर्वाद यात्रा पर संथाल दौरे पर हैं, उनके हर भाषण में इस बात का जिक्र है कि राज्य में डबल इंजन की सरकार हैं, विकास की गति तेज है, पर वे यह नहीं कहते कि उनके रांची स्थित मुख्यमंत्री आवास से करीब एक किलोमीटर से भी कम की दूरी पर पिछले डेढ़ माह से सैकड़ों की संख्या में बैठी आंगनवाड़ी महिलाएं उनके उपर टकटकी लगाए बैठी हैं कि कभी कभी मुख्यमंत्री उन लोगों पर ध्यान देंगे तथा उनकी समस्याएं खत्म होंगी मांगे पूरी हो जायेगी। 

पर मुख्यमंत्री और उनके लोगों को आंगनवाड़ी महिलाओं की मांगे पूरी हो या हो उससे क्या लेना देना, तभी तो आज राजभवन से मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच कर रही आंगनवाड़ी महिलाओं पर पुलिस ने क्रूरता दिखाई, जमकर लाठी बरसाएं, यहां तक की हाथ तक छोड़ा। ऐसे तो राज्य पुलिस के कारनामें पूरे विश्व में चर्चे पर हैं, ऐसे में पुलिस एक नये चर्चा को आज जन्म दे दी, जब उसने क्रुद्ध महिलाओं को शांत करने के बजाय, उन पर हाथ तक छोड़ दिया।

बुद्धिजीवियों की मानें, तो राज्य की पुलिस अभी भी ब्रिटिशकाल में जी रही हैं, यानी कुछ भी हो, हाथ छोड़ दो, डंडे बरसा दो, अरे और भी तो विकल्प है, उस पर राज्य पुलिस क्यों नहीं ध्यान देती? यहां आंसू गैस के गोलों का प्रयोग क्यों नहीं होता, यहां पानी के फव्वारे क्यों नहीं छोड़े जाते, ताकि किसी की जान को खतरा तथा सम्मान को ठेस पहुंचे।

आखिर महिलाओं के प्रदर्शन को रोकने की जिम्मा पुरुष पुलिस कब से उठाने लगे, क्या रांची में महिला पुलिस बल का अभाव है, या रांची महिला पुलिस बल में इतनी क्षमता नहीं कि वह महिला प्रदर्शनकारियों को काबू में कर सकें। आज की घटना ने सारे मानवीय मूल्यों को ताक पर रख दिया। आखिर महिला प्रदर्शनकारियों से निबटने के लिए पुरुष पुलिस को वहां क्यों लगाया गया? इसका क्या जवाब है, रांची पुलिस के पास।

दूसरी बात पहले पारा टीचर को पीटा, उसके बाद पत्रकारों को पीटा और अब महिलाओं को पीट दिया, ये हर बात में पीटने की जो बिमारी हैं, उस बिमारी से रांची पुलिस खुद को कब मुक्त करेगी, वह क्यों नहीं समझने की कोशिश कर रही कि वर्तमान में नागरिक और पुलिस में बेहतर संबंध कैसे स्थापित हो, उसको लेकर विश्व के कई देश चर्चा कर रहे हैं और अपने यहां बेहतर पुलिसिंग व्यवस्था कर, सभी का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं।

इधर आज की घटना को लेकर भाकपा माले ने कड़ा आक्रोश व्यक्त किया है। आल इंडिया सेन्ट्रल कौंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन एक्टू के झारखण्ड महासचिव शुभेन्दू सेन ने आंगनवाड़ी सेविकाओं पर आज हुए बर्बर लाठी चार्ज की घोर निन्दा करते हुए कहा कि यह फांसीवाद गुंडई का एक उदाहरण है। जिसकी जितनी निन्दा की जाय कम है।

होना तो यह चाहिए कि सरकार आंगनवाड़ी सेविकाओं की समस्याओं पर विचार करती, उनकी मांगों पर ध्यान देती, पर यहां तो सरकार सबक सिखाने पर तुली है, इसके परिणाम सरकार के लिए बेहद घातक होंगे। रघुवर सरकार को समझना चाहिए कि आंगनवाड़ी सेविकाओं को अपना आंदोलन जारी रखे हुए डेढ़ महीने से अधिक हो गये।

बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का कहना है कि पहले तीज चला गया, उसके बाद दो दिन पहले जीतिया खत्म हो गया, दोनों पर्व पर इन आंगनवाड़ी महिलाओं ने सड़कों पर रातें गुजारी, पर सरकार इन महिलाओं के दर्द को कम करने के बजाय और बढ़ा दी, पुलिस के द्वारा हाथ छोड़वा दिया, इससे बड़े शर्म की बात इस राज्य के लिए कुछ और हो ही नहीं सकता।