अपनी बात

देवघर स्थित गुरुकुल महाविद्यालय पर प्रशासन ने चलाया बुलडोजर, आर्य समाजियों ने चुप्पी साधी

देवघर हवाई अड्डे का विस्तारीकरण करिये, उसका सौंदर्यींकरण करिये, पर इसका भी ध्यान रखिये, जिससे हमारा इतिहास व संस्कृति जुड़ा हैं, जहां हमारी आनेवाली पीढ़ी को संस्कार प्राप्त होता है, कहीं वहीं नष्ट न हो जाये। देवघर में फिलहाल वहीं देखने को मिल रहा हैं। देवघर में हवाई अड्डे का विस्तारीकरण का कार्य प्रारंभ हो चुका है और उसका सबसे पहला शिकार बना है आज से करीब सौ साल पुराना आर्यसमाज द्वारा संचालित वैदिक शिक्षा का केन्द्र गुरुकुल महाविद्यालय वैद्यनाथधाम देवघर, जिसका निर्माण सन् 1919 में किया गया था।

सूत्र बताते हैं कि इसकी स्थापना आचार्य पं. रामचंद्र द्विवेदी ने की थी, जो गुरुकुल परंपरा के संवाहक थे, जहां जाति, भेदभाव से उपर उठकर बच्चों में चारित्रिक विकास का बीजारोपण किया जाता था, जहां आज भी ये कार्य बहुत ही सुंदर ढंग से देखने को मिल रहे है। आश्चर्य की बात है कि जिस राज्य में आर्य समाजियों की एक बहुत बड़ी संख्या रह रही है, जहां हाल ही में आर्य समाज से जुड़े एक महत्वपूर्ण व्यक्ति गंगा प्रसाद को मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया, उसी आर्य समाज का प्राण देवघर का गुरुकुल महाविद्यालय को बचाने के लिए कोई आगे नही रहा, बल्कि स्थानीय प्रशासन द्वारा उस पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। 

वर्तमान में अगर गुरुकुल महाविद्यालय को बचाने के लिए कोई अपनी आवाज बुलंद कर रहा है, तो वह हैं अकेले लड़ रहे गुरुकुल महाविद्यालय वैद्यनाथधाम के महामंत्री आर्य भारत भूषण त्रिपाठी। कमाल की बात है, हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिए गुरुकुल महाविद्यालय वैद्यनाथधाम की जमीन के अधिग्रहण की तैयारी शुरु हो गयी है। बताया जाता है कि शनिवार को गुरुकुल के एक हिस्से की दीवार को जेसीबी से गिरा दिया गया।

आर्य समाज द्वारा संचालित शतवर्षीय ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान की जमीन के अधिग्रहण के विरोध में झारखण्ड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है। हाईकोर्ट में मामला लंबित होने के बाद भी जमीन का अधिग्रहण किये जाने से महाविद्यालय प्रबंधन में रोष है। हालांकि इस गुरुकुल महाविद्यालय को बचाने के लिए महाविद्यालय प्रबंधन ने झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, नगर विकास मंत्री सी पी सिंह, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को गुहार लगायी है, पर इनकी करुण पुकार को सुनने को कोई तैयार नहीं। 

हम आपको बता दें कि ये वहीं महाविद्यालय हैं, जहां महामना मदन मोहन मालवीय, डा. राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य बिनोवा भावे, श्रीकृष्ण सिंह, पं. विनोदानन्द झा, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, भगवती चरण वर्मा, मैथिली शरण गुप्त, पं. रामचंद्र शुक्ल, हीरानंद वात्सायायन अज्ञेय आदि के चरण पड़ चुके है, पर आश्चर्य की इसको बचाने की जगह, इसे ध्वंस करने में स्थानीय प्रशासन ज्यादा रुचि ले रहा हैं।

आर्य भारत भूषण त्रिपाठी ने सोशल साइट के माध्यम से लोगों से अपील की है कि इस धरोहर को बचाने के लिए लोग आगे आये। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संज्ञान में आने के बाद भी ऐसे ऐतिहासिक मानव निर्माण केन्द्र गुरुकुल वैद्यनाथधाम को नष्ट करने का औचित्य समझ से परे हैं। चूंकि गुरुकुल को नष्ट करने का काम स्थानीय प्रशासन प्रारंभ कर चुका है, पर इस ध्वंसात्मक कार्य के लिए आनेवाला समय भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को माफ नहीं करेगा।