अपनी बात

रांची में सड़क जाम के नाम पर दहशत फैलाने की कोशिश, जनाक्रोश फैलने की संभावना

नाच न जाने आंगन टेढ़ा। जी हां, ये लोकोक्ति आप बचपन से सुनते आये होंगे। शायद इस लोकोक्ति को जमीन पर उतारने का फैसला झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अक्षरशः ले लिया हैं। उन्हें, उनके उच्चाधिकारियों और रांची के एक-दो अखबारों ने अपने दिव्य ज्ञान से ऐसे माया-जाल में फंसा लिया हैं, जैसे लगता हो, कि वे मुख्यमंत्री के सबसे बड़े शुभचिन्तक हैं। बेवजह की सड़क जाम की खबरों से रांची के एक-दो अखबारों ने रांची निवासियों का जीना हराम कर दिया है, लोग दहशत में हैं, कि पता नहीं कब उनके सामने का कट्स बंद हो जाये और उन्हें अपने घर से रोजाना के गंतव्य तथा वहां से उनके घर तक आने में जो दो कदम की दूरी तय करने होते थे, उस दूरी को तय करने में घटों की परिक्रमा करनी पड़ जाये।

पूरे रांची की सड़कों के कट्स को बंद कर दिये जा रहे हैं, पता नहीं ये दिव्य ज्ञान किसने दे दिया कि कट्स बंद कर दिये जाने से सड़क जाम खत्म हो जायेगा, जबकि सच्चाई यह है कि कट्स के बंद हो जाने से लोगों की जिंदगी तबाह हो गई और जो सड़क जाम से कभी प्रभावित ही नहीं हुए, वे नये सड़क जाम से तबाह होने लगे। तबाह फूटपाथ पर दुकान लगाकर दो रोटी के लिए जद्दोजहद करनेवाले लोग भी हो गये, उन्हें लग रहा है कि उनकी कमाई के साधन भी बंद करने की तैयारी हो रही है।

कुछ लोग तो साफ कहते है कि ये सड़क जाम हैं नहीं, इसे जान बूझकर क्रियेट किया जा रहा है, माहौल बनाया जा रहा है, और इसमें वे लोग शामिल है, जो सीएम के इमेज को, सरकार के इमेज को नष्ट कर देना चाहते है. उनलोगों का ये भी कहना है कि सरकार की इमेज बने या नष्ट हो जाये, पर उनकी जिंदगी को तबाह करने का अधिकार उन अखबारों और उच्चाधिकारियों को किसने दे दिया? जो प्रतिदिन दो-दो पेज सड़क जाम की दे, दे रहे हैं।

रांची विश्वविद्यालय का छात्र आकाश साफ कहता है कि यहां के सीएम रघुवर दास को शहीद अलबर्ट एक्का की धर्मपत्नी बलमदीना एक्का से सबक लेनी चाहिए। जब रांची के ही प्रभात खबर ने उनके पति के शहीद स्थल की मिट्टी कहकर, मिट्टी उन्हें सौंपनी चाहिए तब बलमदीना एक्का ने उसे लेने से ही इनकार कर दिया था। ठीक उसी प्रकार सीएम को चाहिए कि वह अपनी विद्वता दिखाएं, चिन्तन करें, मनन करें, किसी की बातों में न आये, सबकी विचार लें, और जो समाज में रह रहे लोग, जो सचमुच सड़क जाम के शिकार होते रहे हैं, उनसे राय ले, तथा उनसे भी राय लें, जहां सड़क जाम की स्थिति बराबर होती है, फिर जो विचार आये, उसे जमीन पर ऊतारें, केवल हवाबाजी करने से तो नहीं होगा? और न ही विज्ञापन निकालने से होगा, जो लोग इस प्रकार की दहशत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें भी सबक सिखाइये।

आकाश यह भी कहता है कि वह जहां रहता है, वहां के लोग जैसे ही अखबारों को हाथ में लेते है, सड़क जाम की खबर पढ़कर, सीएम के बयान को देखकर हंसते है कि इनलोगों ने क्या मजाक बना दिया है? जबकि उन्ही के आसपास भी कई ऐसे लोग हैं, जो दहशत में हैं कि कहीं सड़क जाम में न फंस जाये, इसलिए घर से निकल ही नहीं रहे हैं। कामचोरों की तो मजे हैं, वह जहां काम कर रहा हैं, अपने बॉस को सड़क जाम का बहाना बनाकर, कामचोरी में लग जा रहा हैं, यानी जो उसे समय पर आना है, वो बार-बार सड़क जाम का बहाना बनाकर अपनी नैया पार लगा रहा है। कुछ लोग सड़क जाम खत्म होने की तैयारी में बैठे है, भला ऐसा भी कहीं होता है क्या?

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि झारखण्ड के निर्माण के बाद से ही राजधानी सड़क जाम से जुझती रही हैं, एक बार तो बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्रीत्व काल में मेन रोड को वन-वे कर दिया गया था, वह भी समस्या का समाधान था, पर ज्यादा दिनों तक नहीं चला, इसलिए सरकार को नये विकल्प पर काम करना चाहिए।

हां खुशी, इस बात की है कि राज्य सरकार सड़क जाम की गंभीरता को ले रही हैं, पर अखबारों और चैनलों तथा राज्य के उच्चाधिकारियों की मंशा को भी सीएम को समझना चाहिए तथा बेकार की अफवाहों को फैलानेवाले पर भी नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि स्थिति भयावह बनाने की पूरी तैयारी हो चुकी है, कहीं ऐसा न हो कि अभी तो गाड़ियों द्वारा सड़क जाम हो रहा है, कहीं रांची की सारी जनता ही, न रोड पर आ जाये और बेकार की बातों में उलझे सरकार के लिए एक नया सरदर्द बन जाये।

दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री स्वयं अपने साइट पर ऐसी –ऐसी बातें परोस रहे हैं, जिसे देखकर एक आदमी का दिमाग भी चकरा जायेगा। जरा देखिये अखबार की कतरन को लेकर सीएम क्या कह रहे है – नहीं चेते तो रांची की स्थिति हो जायेगी नारकीय यानी सीएम की ओर से भी दहशत फैलाने की कोशिश। भाई दहशत मत फैलाइये, प्लान बनाइये, काम कीजिये, आपका काम दहशत फैलाना नहीं, जनता ऐसे भी सड़क जाम को लेकर पागल हो रही है, आपको क्या पता?  आप समझने की कोशिश कीजिये। नहीं तो आप बुरे फंसेंगे, क्योंकि एक लोकोक्ति हैं – पंडित जी अपने तो गये ही, यजमानों को भी लेकर चल दिये, यानी आपकी कुर्सी तो जायेगी ही, कहीं पूरी भाजपा की नैया डूबने पर न लग जाये।