याद रखिये प्रधानमंत्री जी, बिहार हरिवंश की चतुराई या राजनीति का नाम नहीं है, बिहार गुजरात भी नहीं है, बिहार, बिहार है

हरिवंश उर्फ हरिवंश नारायण सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं भारत के उपराष्ट्रपति, सभापति राज्यसभा, वैंकेया नायडू को आज एक पत्र लिखा है, पत्र तीन पृष्ठों का है। यह पत्र भाजपा के फेसबुक पर भी डाला हुआ है। पत्र वायरल भी है। यह पत्र किसने वायरल किया। भगवान मालिक है। पीएम मोदी इस पत्र को पढ़कर अपने विचार भी दे डाले हैं, लेकिन देश में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने सदन ठीक से नहीं चलाने को लेकर हरिवंश को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

पत्र का लब्बोलुआब ये है कि जनाब दो दिन पहले राज्यसभा में उनके साथ हुई घटना को लेकर, बहुत दुखी है, और इस दुख के कारण वे आज से कल तक के लिए 24 घंटे के उपवास पर है। हरिवंश के इस उपवास पर जैसा कि होता है, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका खुब राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की है, तथा इसे उन्होंने बिहार की राजनीति से जोड़ दिया है, चूंकि बिहार में विधानसभा के चुनाव होने है, और चुनाव के दौरान कुछ भी राजनीतिक माइलेज मिल जाये तो क्या दिक्कत है, इसलिए फायदा उठाओ, पर शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं मालूम, कि बिहार हरिवंश की चतुराई या राजनीति का नाम नहीं है। बिहार गुजरात भी नहीं है, बिहार, बिहार है।

आम तौर पर उपवास का प्रयोग लोग अपनी आत्मशुद्धि के लिए करते हैं, पर यहां हरिवंश ने यह उपवास अपनी आत्मशुद्धि के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए किया है, जिन पर इनकी ओर से आरोप है कि राज्यसभा में सांसदों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है, जबकि पूरा देश देख रहा है, जिन्हें संविधान और सदन की मर्यादाओं का ख्याल हैं, वे मानते है कि हरिवंश ने उप-सभापति के पद के साथ न्याय नहीं किया और वे मोदी भक्ति में लीन होकर, सदन चलाई, जो गलत था और भविष्य में उपसभापति द्वारा की गई गलतियों की अगर सूची बनेगी तो शायद सूची में यह घटना प्रथम स्थान पर होगी।

चूंकि पूरे देश के बुद्धिजीवियों में हरिवंश अभी रडार पर है, भाजपा और मोदी के प्रशंसकों को छोड़ सभी ने हरिवंश के क्रियाकलापों की तीखी आलोचना की है। समाजवादियों में तो इनकी सम्मान ही खतरे में पड़ गई है। लोग कह रहे हैं कि हरिवंश ने यह क्या कर दिया? लोग ताने दे रहे है, वे कह रहे हैं कि आखिर वोटिंग कराने में क्या दिक्कत थी? सदन में तो एक व्यक्ति भी वोटिंग करने की बात कह दें तो वोटिंग कराना फर्ज हो जाता है, आखिर इतनी भी जल्दी क्या थी, कि सदन आर्डर में नहीं था, और हो-हंगामें के बीच में आपने बिल पास करा दिया?

जबकि विपक्ष अपनी मांगों को लेकर अड़ा था, वेल में था, वो बार-बार रुल की प्रतियां आपको दिखा रहा था, पर आपने तो माना नहीं, आपने तो वह किया जो आपको आदेश मिला था, और इसके बावजूद आप स्वयं को पाक-साफ और स्वयं को महापुरुषों से जोड़ने का काम कर रहे हैं। आपको अपनी करनी का पश्चाताप करना चाहिए, तो आप उलटे उन्हें सजा दिलवा दिये, जो सजा के हकदार भी नहीं। कितने शर्म की बात है कि आप उपवास में हैं और राज्यसभा तथा लोकसभा से प्रमुख विपक्षी दल वॉक आउट कर चुकी है।

यह कैसा उपवास है, कि विपक्ष सदन से वॉकआउट कर रहा है, कृषि बिल को लेकर किसान आंदोलित है, उपसभापति उपवास पर है, आखिर इस उपवास से किसको फायदा हो रहा है, देश की जनता देख रही है, इस उपवास की नौटंकी को यहां की जनता बहुत जोरदार ढंग से समय आने पर ब्याज के साथ आपके सामने रखेगी, बस समय का इन्तजार करिये।

जरा अपने पत्र में महात्मा गांधी, जयप्रकाश, राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, गौतम बुद्ध, रामधारी सिंह दिनकर आदि की जमकर चर्चा करनेवाले की सोच को देखिये। एक तरफ तो ये आठ सासंदों को सबेरे-सबेरे चाय पिलाने के लिए जाते हैं, उनसे बात करने पहुंचते हैं, दुनिया को दिखाते है कि देखो हरिवंश का दिल कितना बड़ा हैं, और दुसरी तरफ दो दिन की पहले की घटना को मन में घर बनाकर रखे हुए हैं। राज्यसभा के उपसभापति को पत्र लिखकर इसकी चर्चा भी करते है तथा आत्मशुद्धि के लिए उपवास की बात भी करते है।

क्या गांधी का उपवास इन्हीं सब के लिए होता था, किसी को नीचा दिखाने के लिए होता था? क्या महात्मा गांधी, जयप्रकाश, राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, गौतम बुद्ध, रामधारी सिंह दिनकर आदि महात्माओं का ऐसा ही चरित्र था। एक तरफ आत्मशुद्धि के लिए उपवास और दूसरी तरफ जिसके लिए आप उपवास की नौटंकी कर रहे हैं, उसी की उपर में शिकायत, हमें तो लगता है कि इस प्रकरण पर हरिवंश को ईश्वर भी माफ नहीं करेंगे।

महात्मा गांधी जिसको लेकर उपवास करते थे, उसकी शिकायत कभी उन्होंने किसी से नहीं की, अरे शिकायत करना क्या? वे तो उसे अपने जुबान पर ही नहीं लाते थे, वे सीधे उपवास के माध्यम से सारी घटनाओं को ईश्वर के समक्ष रख देते थे, ऐसी थी उनकी उपवास पद्धति। भले ही मैंने गांधी को नहीं देखा, पर जानता हूं गांधी को, समझता हूं गांधी को। गांधी की तरह जीवन पद्धति को स्वीकार करना इतना आसान नहीं, जितना पत्र में लिख दिया गया है। इसलिए मैं यहीं कहूंगा कि हे हरिवंश जी आखिर इन महान आत्माओं को आप अपनी राजनीति के लिए क्यों बलि का बकरा बना रहे हैं? छोड़ दीजिये इन्हें, नहीं तो इनकी बद्दुआ, आपको लग जायेगी। समझने की कोशिश कीजिये।