अपने चाल और चरित्र के कारण झारखण्ड में भाजपा के अंतिम मुख्यमंत्री साबित होंगे रघुवर दास

राजस्थान विधानसभा चुनाव में आसन्न हार को सम्मानजनक हार में परिवर्तित करने के लिए भाजपा को जाड़े के दिनों में पसीने छूट रहे है। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को आभास हो चुका है कि इस बार राजस्थान में क्या होनेवाला है? यहां तो भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता एवं आम जनता के बीच एक नारा काफी लोकप्रिय है, “मोदी से वैर नहीं, रानी तेरी खेर नहीं।” लगता है कि ठीक इसी प्रकार, 2019 में झारखण्ड में एक नारा गूंजेगा, “मोदी से वैर नहीं, रघुवर तेरी खैर नहीं।”

इतिहास गवाह है भाजपा हो या कांग्रेस, जब भी इसके नेता सत्ता में आये, तो ये बेलगाम हो गये। पैसा कमाना, जनता को अपने जूतियों के तले रौंदना, कार्यकर्ताओं की नहीं सुनना, अपने बेटे-बेटियों, पत्नियों-प्रेमिकाओं के आगे सब कुछ लूटा देना, इनकी फितरत में रहा, जिसका परिणाम हुआ कि बार-बार मौका मिलने के बावजूद ये नेता, जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हो सके और किसी खास दल में रहकर जिंदा रहने के बावजूद मरे हुए से दीखे।

आज भी विभिन्न राज्यों में पूर्व के मुख्यमंत्रियों के हालातों को देखकर, आप इसकी अंदाजा लगा सकते हैं। दोहरे चरित्रों में विश्वास रखनेवाले नेता, जब तक जिंदा रहे ऐश करते रहे और आम जनता इनके ऐशो-आराम के लिए अपने टैक्सों से इन सबकी व्यवस्था करती रही, यहीं कारण रहा कि बगल का देश चीन भारत से कई गुणा, कई क्षेत्रों में आगे निकल गया और हम पाकिस्तान से खुद को बेहतर बनाने में ज्यादा ध्यान देते रहे।

इधर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने, अपने क्रियाकलापों, व्यवहारों तथा निम्नस्तरीय वक्तव्यों से पूरे राज्य में भाजपा की जो छवि गढ़ी है, वह बेहद चिन्ताजनक है, आनेवाले समय में हमें नहीं लगता कि इन्हें लोकसभा या विधानसभा में सम्मानजनक सीटें भी मिल पायेंगी, क्योंकि जनता इनके व्यवहार से इतनी नाराज है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी विधानसभा की सीटें भी नहीं निकाल पायेंगे, इसमें भी संदेह हैं।

अगर राजनीतिक पंडितों की माने तो उनका साफ कहना है कि रघुवर दास का तो पहले भी इमेज नहीं था, पर मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पूरी भाजपा की ही इमेज को ताखे पर रख दिया, जो लोग भाजपा के बारे में इमेज पूर्व में बनाये रखे थे, उन्हें तो इनके व्यवहारों से बहुत बड़ा धक्का लगा है। कुछ लोग कहते है कि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री का व्यवहार ही प्रमुख होता है, पर इन्होंने भाजपा को इस प्रकार डैमेज किया है, कि ऐसा डैमेज किसी ने नहीं किया था।

भाजपा की ओर से कभी मुख्यमंत्री के रुप में बाबू लाल मरांडी और अर्जुन मुंडा को लोगों ने देखा था, पर इनके व्यवहार को लेकर किसी को शिकायत नहीं थी, पर रघुवर दास तो किसी भी प्रकार से भाजपाई संस्कृति में फिट नहीं बैठते, ऐसे में कैसे केन्द्र ने इनके हाथों में झारखण्ड को थमा दिया, अगर अभी यहां से वर्तमान मुख्यमंत्री को नहीं हटाया गया, तो यकीन मानिये लोकसभा और विधानसभा दोनों हाथों से गया और रघुवर दास बहादुरशाह जफर की तरह भाजपा की ओर से झारखण्ड के अंतिम मुख्यमंत्री साबित होंगे।

क्योंकि आदिवासी, मूलवासी, मुस्लिम तो पूर्व से ही नाराज है, सवर्णों ने तो दूरियां ही बना ली और रहे भाजपा कार्यकर्ता तो वे भी अब इनसे बहुत दुरी बनाने में लग गये हैं, कुछ तो बहुत दूर हो चुके है तो कुछ को समय का इंतजार है। जैसे ही राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम आयेगा, भाजपा में भगदड़ मचेगा, और झारखण्ड भी इस भगदड़ से अछूता नहीं रहेगा।