चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात यानी रांची में पब्लिक साइकिल शेयरिंग सेवा भी पूरी तरह ध्वस्त

भाई ये तो मानना ही पड़ेगा कि रांचीवासियों को अच्छी चीजें, अच्छी सेवाएं नहीं चाहिए और अगर अच्छी चीजें मिल भी गई तो वे उसका ऐसा कबाड़ा निकालेंगे कि वह योजना ही पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगी। जरा देखिये न, रांची में 3 मार्च को एक बहुत ही सुंदर सेवा लागू की गई, वह सेवा थी – पब्लिक साइकिल शेयरिंग सेवा।

बताया गया था कि इस सेवा के लिए जर्मनी में निर्मित करीब 600 साइकिल लाई गई थी, बड़े ताम-झाम से इसका उद्घाटन हुआ, नगर विकास मंत्री सी पी सिंह साइकिल चलाकर कुछ दुरी तय किये और फिर आम नागरिक भी इसका लाभ लेने लगे। दूसरे दिन अखबारों में खुब इस योजना की तारीफ हुई।

पर ये क्या अभी तो चार दिन भी ठीक से नहीं बीते, ये क्या साइकिल तोड़े जाने लगे, उसके ट्यूब निकाले जाने लगे, साइकिल की डेंटिंग-पेटिंग को खुरच-खुरच कर उसे बदसुरत बनाने का प्रयास किया जाने लगा, और हद तो तब हो गई, कि साइकिल स्टैंडों पर मोटरसाइकिल सवारों, कारचालकों, सब्जी विक्रेताओं, ठेलों-खोमचों वालों ने कब्जा जमा लिया।

यही नहीं आज तो हद हो गई, हम इस साइकिल शेयरिंग सेवा का हाल-चाल जानने के लिए निकले, तो न तो चर्च रोड, न तो कर्बला चौक, न तो फिरायालाल चौक, न तो जेल रोड, न तो पीवीआर सिनेमा के ठीक सामने से गुजरनेवाली सड़क के अंदर बनी रोड पर, न तो मेन रोड स्थित हनुमान मंदिर के पास बने साइकिल स्टैंड पर ही हमें साइकिल नजर आई, इन सारी जगहों पर ऐसे लोगों ने कब्जा जमा लिया था, जिन्हें यहां होना ही नहीं चाहिए।

दरअसल जिन लोगों ने इन साइकिल स्टैंडों को कब्जा कर लिया था, उसमें उनकी गलती थी ही नहीं, या जो लोग साइकिल के साथ तोड़-फोड़ कर रहे हैं, उसमें उनकी गलती ही नहीं, सच्चाई यह है कि हमने उन्हें कानून का सम्मान करना सिखाया ही नहीं, उन्हें बताया ही नहीं कि गलत करने का क्या परिणाम होता है, और जब उन्हें गलत करने का परिणाम मालूम ही नहीं तो फिर वे करेंगे क्या? वहीं करेंगे, जो उन्होंने किया, अपनी  हरकतों से पूरे रांची शहर को बदनाम कर दिया, चार दिन में रांची की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया।

जिस दिन ये साइकिल शेयरिंग सेवा शुरु हुई थी, उस दिन ही विद्रोही 24. कॉम ने देखा कि साइकिलों पर लफ्फूओं का कब्जा हो चुका है, ये लफ्फूएं अपने ढंग से साइकिल चला रहे हैं, कोई न देखनेवाला और न कोई बोलनेवाला, इनकी हरकते बता रही थी कि ये साइकिल चलाना कम, तोड़ने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि डीएसपी आवास के पास बने साइकिल स्टैंड पर भी संभ्रांत लोगों ने कार लगा दी, तो बताइये लोगों को डर कहां हैं, ये जहां मन करें, वहां कार लगा दे रहे, मोटरसाइकिल लगा दे रहे, दुकान लगा दे रहे हैं, क्या मजाक है?

कानून व्यवस्था ठीक करने का काम किसका है, पुलिस प्रशासन का, और जब पुलिस प्रशासन ही फिरायालाल पर इन साइकिल स्टैंडो पर मोटरसाइकिल लगाने की व्यवस्था कराने लगे तो फिर हो गया साइकिल शेयरिंग सेवा। यही नहीं गड़बड़ी साइकिल शेयरिंग सेवा शुरु करानेवालों की भी है, कहीं कोई उनका आदमी नही दीख रहा, सब भगवान भरोसे चल रहा है, जैसे लगता है कि राम-राज्य आ गया।

बतानेवाले तो ये भी बता रहे थे कि साइकिल नई तकनीक से लैस है, अरे भाई कितना भी नई तकनीक से लैस हो, आप चोरी की गई साइकिल को बरामद कर सकते हैं, पर साइकिल की दुर्दशा हो जाने पर उससे कैसे वसूल सकते हैं, जरा सरकार और उनके लोग ही बताये कि अभी कितने साइकिल बेहतर हालात में हैं, और ऐसे भी साइकिल बेहतर हालात में हो या नहीं हो, विद्रोही 24.कॉम को तो आज किसी स्टैंड पर साइकिल नही दिखी, आखिर ये 600 साइकिले गई कहां।यहीं नहीं गड़बड़ियां साइकिल शेयरिंग सेवा से जुड़े लोगों में भी हैं।

पब्लिक साइकिल शेयरिंग सेवा का लाभ उठा रहे पंकज पाठक के शब्दों में “के तो बता रहा था कि एक घंटा के पांच रुपैया लगेगा। वही जोश में निकाल के चला दिए, आज बिग बाजार से लेकर कोकर तक। कुल जमा ढाई घंटा चलैबे किये, पैसा काट लिहिस 31.86 रुपया। जर्मनी साइकिल के रेट भी जर्मनिये के हिसाब से हैं का…?” अब सवाल है कि इस साइकिल की सवारी में अधिक पैसे कट जाने का भी खतरा मंडराने लगा है, ऐसे में इन सवालों का जवाब कौन देगा?

कमाल है कि पहले फेज में 600 साइकिल को उतारने की बात थी, पर हमें नहीं लगता कि 600 साइकिलें उतारी गई है, क्योंकि विद्रोही24.कॉम को किसी भी स्टैंड पर साइकिल नहीं दिखाई पड़ी,  हां इन साइकिलों का स्थान मोटरसाइकिल और कार ने ले लिया था। यहीं नहीं 55,000 रुपये की ये साइकिल, जिसे दावा किया जा रहा है कि 600 की संख्या में उतारा गया है, तो वह दिखना भी तो चाहिए, आखिर ये साइकिले आज क्यों नहीं सड़कों पर दिखी, ये तो बड़ा सवाल है? कहीं सभी योजनाओं की तरह इस योजना का भी तो चार दिनों में ही पलीता तो नहीं लग गया। नगर विकास मंत्री सीपी सिंह को जवाब देना चाहिए, क्योंकि विभाग तो उनका ही हैं।