अपनी बात

एक चीज जानना था कि समाचारों का चयन करते वक्त या अखबारों को जनता के बीच पहुंचाने के पूर्व प्रभात खबर के संपादकों का समूह कौन-कौन सी कंपनियों के चश्में प्रयोग में लाते हैं?

भाई बात तो साफ है, आज रांची के पाठक यह जानना चाहते होंगे कि समाचारों का चयन करते वक्त या अखबारों को जनता के बीच पहुंचाने के पूर्व प्रभात खबर के संपादकों का समूह कौन-कौन सी कंपनियों के चश्में प्रयोग में लाते हैं? क्योंकि एक तरफ वे खुद ही जो सूची जारी करते हैं, उस सूची में उनलोगों का नाम नहीं होता, जो मंत्री नहीं बन रहे, वहीं दूसरी जगह उन लोगों का मंत्रियों की सूची में फोटो सहित नाम छप जाता है कि ये लोग इस बार नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हो गये। आखिर ये क्या माजरा है? इन माजरों को कौन सुलझायेगा? जनता के दिमाग का फलुदा आखिर निकालने का जिम्मा अखबारों को कैसे मिल गया?

दस जून 2024, रांची से प्रकाशित प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या चार देखिये। इस अखबार ने पृष्ठ संख्या चार को विशेष पेज बनाया है। यह पेज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्री पद की शपथ को लेकर है। साइड में इसने ‘ये हैं कैबिनेट के साथी’ हेडिंग नाम से उन मंत्रियों को तस्वीरें छापी है, जो नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं। प्रभात खबर ने इसमें उनलोगों के भी नाम और फोटो छापे हैं, जो मंत्रिमंडल में शामिल ही नहीं हुए।

जैसे – कमलजीत सहरावत जो पश्चिमी दिल्ली से सांसद बनी है और दूसरे अन्नामलाई जो कोयम्बटूर से लड़े जरुर, पर हार गये। विद्रोही24 ने प्रभात खबर अखबार से ही इसे लेकर उसे कलरिंग कर आपके समक्ष रखा है, कि समझिये ये अखबार आपको कैसे आपके आंखों में धूल झोंकता है तथा आपके साथ विश्वासघात करता है। उदाहरण के लिए उस अखबार का ये विशेष पेज आपके समक्ष रख रहा हूं। आप स्वयं देख लीजिये। हाथ कंगन को आरसी क्या?

ये नया युग है। ये नई किस्म की पत्रकारिता है। ये नये किस्म के सम्पादक लोगों का समूह हैं। जो अपने पाठकों के आंखों में धूल झोंकता है। ये अपने पाठकों के विश्वसनीयता के साथ खेलता है। ये गलतियों पर गलतियों का अम्बार लगाता है। पर बेशर्म इतना है कि वो इसके लिए खेद तक नहीं प्रकट करता। वो स्वयं को अखबार नहीं आंदोलन से जोड़ता है। क्या आंदोलन झूठ व फरेब से शुरु होते हैं?

आप स्वयं विचार करिये और ऐसे संपादकों से पूछिये कि जब आप अखबार जनता के समक्ष रखते हो तो जनता के समक्ष अखबार को रखने के पूर्व किस प्रकार का चश्मा लगाकर समाचारों का चयन करते/कराते हो। आखिर ये सच के साथ झूठ का तड़का कब तक चलेगा। कमाल की बात है। दैनिक भास्कर ने तो कल फोटो कुछ और कैप्शन कुछ छाप दिया और इन महाशय ने तो उन्हें मंत्री बनाकर बिठा दिया, जिनका मंत्री के लिए नाम तक एनाउंस नहीं किया गया।

आखिर झारखण्ड के पाठकों का समूह कब तक झूठ पढ़ते रहेंगे, सवाल तो यह है। आश्चर्य तो यह भी होता है कि ये झूठ फैलानेवाले अखबारों का समूह सम्मान समारोह भी आयोजित करता है और ऐसे झूठे अखबारों से सम्मान पाने के लिए लोग पंक्तिबद्ध खड़े भी होते हैं। सचमुच ये नया समाज है। ये नये समाज की पत्रकारिता है। क्या कीजियेगा? बड़ा झोलझाल है। मजे लीजिये, ऐसे भी बस मजे लेने के सिवा कुछ आप कर भी नहीं सकते।