एक मां-पिता ने बच्चे का नाम रखा मोहनदास, बेटा बन गया ‘महात्मा गांधी’ और एक ने रखा नीतीश, बच्चा बना ‘कुर्सी कुमार-पलटू राम’

नाम दो प्रकार के होते हैं, एक नाम वो होता है जो माता-पिता या परिवार के लोग अपने बच्चों को रखते हैं और दूसरा नाम वो होता है जो समाज-देश आपके क्रियाकलापों एवं कर्मों को देखकर रखता है। एक छोटा सा बच्चा, जिसका नाम कभी उनके माता-पिता ने मोहनदास रखा था, वो मोहनदास जब बड़ा हुआ, देश के लिए खुद को समर्पित किया, वो मोहनदास से महात्मा बन गया, देश ही नहीं, पूरा विश्व उन्हें महात्मा गांधी के नाम से आज पुकारता है, शायद ही कोई उनके असली नाम से जानता या पुकारता हो।

एक बच्चा जिसका नाम उनके माता-पिता ने जयप्रकाश रखा, वो बच्चा जब बड़ा हुआ तो वो बच्चा अपने कर्मों से लोकनायक कहलाया। बिहार के ही राजेन्द्र बाबू देशरत्न कहलाये। ऐसे कई प्रमाण मेरे पास है, जो बताने के लिए काफी है कि नाम का क्या प्रभाव होता है, यह कैसे बदलता है और बदलने के बाद उस व्यक्ति के व्यक्तित्व में कैसे चार चांद लगा जाता है।

पर आज की क्या स्थिति है? बिहार के ही जयप्रकाश और बिहार के ही राजेन्द्र बाबू के राज्य में वर्तमान में कहने को दो बड़े नेता हैं – एक लालू प्रसाद और दूसरे नीतीश कुमार। लालू प्रसाद सजायाफ्ता हो गये, उसके बावजूद वे सामाजिक न्याय के मसीहा के नाम से जाने जाते हैं, उनके चाहनेवालों की संख्या आज भी करोड़ों में हैं, जबकि लालू प्रसाद आठ बार बिहार के मुख्यमंत्री भी नहीं बने हैं और न बन पायेंगे, लेकिन नीतीश ही बताये कि वे तो बिहार के आठ बार मुख्यमंत्री बन गये। कैसे बने, उसका सुंदर उदाहरण नीचे हैं, आप खुद देख लीजिये…

आप लालू प्रसाद के आस-पास भी नहीं टिकते। आप को लोग ‘कुर्सी कुमार’ और ‘पलटू राम’ के नाम से जानते हैं, पर लालू प्रसाद को ऐसा तमगा कभी नहीं मिला और न मिलेगा। आप उनके दरवाजे पर कई बार गये, लेकिन लालू आपके दरवाजे पर कभी झांकी पारने नहीं गये, जबकि आपकी ताजपोशी लालू प्रसाद के खिलाफ मिले जनमत के आधार पर ही हुई थी।

पर आपने किया क्या, उस जनमत को चूल्हे में डालकर ओ3म् लालू प्रसादाय नमः का जप कर एक नहीं, दो-दो बार पलटीमार कर बिहार के मुख्यमंत्री बने, पर आपको शर्म नहीं, ऐसे भी बिहार में कहा गया है कि शर्म उसे आती है, जो शर्म की परिभाषा जानता हो, जो शर्म को अपने घर के ताखे पर रखकर बात करें, उसे शर्म से क्या मतलब?

भविष्य तो मैं साफ देख रहा हूं। आपने वर्तमान व भूत खुद को खुद से मटियामेट कर दिया और जिसका वर्तमान व भूत ही मटियामेट है, उसका भविष्य क्या होगा? आज अपने दरबार से बाहर निकलिये, अगर बाहर निकलने में शर्म हो तो थोड़ा सोशल साइट पर नजर डालिये, आपको लोगों ने पलटू राम, कुर्सी कुमार और पता नहीं क्या-क्या कहकर संबोधित करना शुरु कर दिया है, जबकि तेजस्वी और तेज प्रताप के लिए कही ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं, बल्कि लोग उसे बधाई दे रहे हैं कि आप जैसे नेता को उन दोनों ने नाक में नकेल बांधकर, अपने घर में बांध दिया, अब चाहकर भी आप कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि 45 विधायकों के नेता की, 79 विधायकों के नेता के सामने खड़े होने की इतनी हिम्मत नहीं?

ये अलग बात है कि आपको आपका चेहरा दिखाने की हिम्मत पटना से छपनेवाले अखबारों/चैनलों/पोर्टलों में कार्यरत मठाधीशों के नहीं हैं, क्योंकि सभी पर आपकी किसी न किसी रुप में कृपा बरसती ही हैं, और यही बिहार का दुर्भाग्य है, एक समय था जब बिहार के पत्रकार, बिहार के मुख्यमंत्री से आंख से आंख मिलाकर बात करते  थे।

हमें तो याद है कि एक मुख्यमंत्री ने बिहार के ही एक अखबार के संपादक को चाय पर बुलाया, पर संपादक ने यह कहकर चाय की मेज ठुकरा दी कि उनके पास, उनके (मुख्यमंत्री) के लिए समय नहीं हैं। धिक्कार है बिहार के ऐसे अखबारों/चैनलों/पोर्टलों को और धिक्कार उन्हें भी जिन्होंने पलटीमारने का रिकार्ड बनाया और जो अभी से ही इस रिकार्ड को तोड़ने के लिए ‘पलटीमार कैसे बनें’ इसको लेकर आप पर ही शोध करने लगे हैं।

आनेवाला समय आपके लिए सुखद नहीं, क्योंकि आपने अपनी कीर्ति पर स्वयं ही कालिख मल दी। आप जीवित भी है या नहीं। मुझे नहीं पता, क्योंकि मैंने तो पढ़ा हैं। उपनिषद् कहता है – कः जीविति? उत्तर – कीर्तियस्य सः जीवति। आपकी कीर्ति क्या हैं? आप अपनी आत्मा से पुछ लीजिये। बता देगी। नहीं तो, ‘यादगार’ फिल्म का गाना का वो अंतरा सुन लीजिये, मैं लिख देता हूं…

दो किस्म के नेता होते हैं,

इक देता है, इक पाता है,

इक देश को लूट के खाता है,

इक देश पे जान गंवाता है,

इक जिंदा रहकर मरता है,

इक मरकर जीवन पाता है,

इक मरा तो नामोनिशां ही नहीं,

इक यादगार बन जाता है…