उधर भगवान भास्कर ने पूर्व में लालिमा बिखेरी, खिल उठे छठव्रतियों के चेहरे, दिया अर्घ्य, पाया आध्यात्मिक सुख

अंधेरा धीरे-धीरे छंट रहा था, रवि की सवारी बड़ी तेजी से आकाश मार्ग की ओर बढ़ती जा रही थी, शायद भगवान भास्कर भी अपने भक्तों को देखने के लिए आह्लादित थे, वे नहीं चाहते थे कि छठव्रतियों को उनके दर्शन पाने में विलम्ब हो, वे सभी को आध्यात्मिक सुख प्रदान करना चाहते थे, चूंकि आज सप्तमी तिथि भी थी, और सप्तमी तिथि ऐसे भी भगवान भास्कर को चाहनेवालों के लिए खास तिथि होती हैं।

लीजिये उधर भगवान भास्कर ने पूर्व में लालिमा बिखेरी, छठव्रतियों और उनके परिवारों के चेहरे खिल उठे, भगवान भास्कर को अर्घ्य देने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ और उधर मन की आंखों से सभी ने भगवान भास्कर का अभिनन्दन किया और लीजिये भगवान भास्कर ने भी दिल खोलकर आशीर्वाद दे डाला, तथा अपने रश्मियों में वास कर रही छठि मइया को भी प्रेरित किया कि वह भी अपने अद्भुत आशीर्वादों से सभी को सिंचित कर दें और लीजिये हुआ भी यहीं।

मैं अपनी पोती सुविज्ञा के साथ आज विभिन्न जलाशयों का अवलोकन करने गया था, अद्भुत दृश्य हमारे सामने विद्यमान थी, ये दृश्य देखने के लिए मैं हमेशा इंतजार करता हूं, क्योंकि यह पल वर्ष में एक बार ही दिखाई देता हैं, जब किसी इलाके, गांव, शहर के लोग विभिन्न जलाशयों की ओर पहुंचते हैं, तथा भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए उमड़ पड़ते हैं। हमें लगता है कि बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा जहां बिहार के लोग रहते हैं, उन इलाकों के शायद ही कोई जलाशय हो, जहां छठ के समय एक इंच भी जमीन खाली रहती होगी।

बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं, सभी आह्लादित हैं, सभी स्वच्छता को अपना रखे हैं, सभी ने अपने दौरों को फलों व गुड़-आटे से बनी ठेकुआ से सजा रखा हैं, क्योंकि भगवान भास्कर और छठि मइया को बहुत ही प्रिय है, सड़क और गलियों की युवाओं की टोली ने ऐसी सफाई कर दी है कि ढूंढे एक तिनका तक नहीं मिल रहा, आखिर यह छठ व्रत में कौन ऐसी चीज समा गई है कि हमें इन चार दिनों में मनुष्य से देवत्व की ओर ले जाती हैं, हमें लगता है कि इस पर शोध की आवश्यकता है।

कोई सरकारी ढकोसला नहीं, कोई सरकारी आयोजन नहीं, बस लोग निकल पड़े, तालाबों, नदियों, विभिन्न जलाशयों को साफ करना हैं, सड़कों-गलियों को साफ करना हैं, बच्चों को हिदायत देनी है कि वो चॉकलेट भी खाये तो उसके रैपर को कम से कम दो दिनों तक इधर-उधर नहीं फेंके, नहीं तो सूर्य नारायण गुस्सा जायेंगे, छठि मइया गुस्सा जायेगी। वाह रे भारत, तुम तो इसी में बसते हो। हालांकि कुछ लोग तुम्हारे नाम पर इसमें भी बाजारवाद लाने की कोशिश कर रहे हैं, फूहड़ता लाने की कोशिश में लगे हैं, पर उन्हें हर साल झटका दे दिया करते हो, सचमुच छठि मइया का जवाब नहीं।

इधर देखिये, कई लोगों ने अपने छतों को भी घाट बना दिया हैं, आखिर कई लोगों ने इस पर टिप्पणियां भी की हैं, टिप्पणियां जरुरी हैं, क्योंकि छठ व्रत एकत्व का पर्व नहीं, बल्कि सामूहिकता का पर्व हैं, अगर आप स्वयं को एकत्व में लाकर पर्व करेंगे और छत को छत घाट बनाकर, छठ व्रत करेंगे तो आप इसके सामूहिकता पर प्रहार कर रहे हैं, कोशिश करनी चाहिए कि विभिन्न जलाशयों की ओर ही रुख करें और अगर किन्हीं कारणों से वे जलाशय गंदे हैं, जिनके कारण आपने वहां जाना छोड़ रखा हैं, तो उसे साफ करने-कराने की जिम्मेवारी किसकी हैं?

क्या आपके घर जब गंदे रहते हैं तो साल में एक बार दीपावली आने के पहले सफाई का विशेष अभियान नहीं चलाते? कही ऐसा तो नहीं कि आनेवाली पीढ़ी को आप बर्बादी का रास्ता दिखा रहे हैं। बर्बादी ही तो हैं, जब आप छत पर घाट बनायेंगे तो यह भी सच  है कि उस घाट में बिना किसी आवश्यकता के भूमि में जो सीमित जल हैं, उसका दोहन करेंगे तो अंत में हानि किसकी होनी हैं, जरा विचार करियेगा। छठ यह भी संदेश देता है कि आप जल के महत्व को समझें, न कि उसकी बर्बादी का एक नया मार्ग खोल दें।

सचमुच आनन्द आया, उन जलाशयों पर जहां छठव्रती और उनका परिवार बड़ी संख्या में भगवान भास्कर को अपनी श्रद्धा निवेदित करने पहुंचा था, हमने भी अपनी पोती सुविज्ञा के साथ इस श्रद्धा के सागर में डूबकी लगाई और स्वयं को धन्य-धन्य कर डाला, भगवान भास्कर सभी को आनन्द दें, छठि मइया सभी को आह्लादित रखें, इन्हीं कामनाओं के साथ, मैं उन जलाशयों से अपने घर लौंटा और फिर सोचा क्यों न आपको आज अपनी मन की बात बता दें।