अपनी बात

नास्तिकों/अधर्मियों के झूठ पर, आधुनिक श्रवण कुमारों का करारा प्रहार, कई बेटों ने मां को मां से मिलाया

बिट्टू बहुत दिनों के बाद दुर्गापूजा की छुट्टी पर घर आया, बिट्टू जब भी आता है, वह अपने घर की चिन्ता करता है, वह घर के एक-एक सामान को देखता है कि किसी चीज की कमी तो नहीं, वो खुद उन चीजों की लिस्ट बनाता है, जिसकी घर में कमी हैं, और चल पड़ता है, उन आवश्यक चीजों को घर लाने के लिए। वह अपनी मां से बहुत प्यार करता है। उसे इस बात की फिक्र रहती है कि उसकी मां को किसी भी चीज के लिए कष्ट न उठाना पड़ें या उसे किसी बात का कष्ट न हो।

इस बार जब वो आया, तो उसने देखा कि उसकी मां के ठेहुने में जोड़ों का दर्द हैं, उसे चलने में कठिनाई हो रही है, क्या वो इस बार अपनी मां के साथ दुर्गापूजा नहीं घुम पायेगा, उसे चिन्ता सताने लगी। दुर्गापूजा के दौरान, घुमने के समय में उमड़ती भीड़, पंडालों के छोटे प्रवेश द्वारों पर एक दूसरे से चिपकते, धक्के खाते आगे की ओर बढ़ते श्रद्धालुओं की भीड़ ने उसे अंदर से हिला दिया था, तभी उसे एक उपाय सुझी, उसने एक रास्ता चुना, उसने अपनी मां से कहा कि वो चिन्ता न करें।

वह उसके लिए एक विशेष प्रबंध करेगा, उसने अपनी मां से कहा कि वह सुबह तीन बजे उठकर, तैयार हो जाये, वह मोटरसाइकिल से रांची के सभी पंडालों तक उसे मां भगवती के दर्शन कराने ले जायेगा, क्योंकि उस समय रांची की सड़कों पर न तो श्रद्धालुओं की भीड़ होती हैं और न ये भीड़ पंडालों में दिखती है, ऐसे में मेला घुमना और मां का दर्शन करना, दोनों बिना किसी परेशानी के संभव हो जायेगा।

बिट्टू की मां बहुत खुश हुई, वह अष्टमी के दिन सुबह – सुबह तैयार हुई और बिट्टू अपनी मां को मोटरसाइकिल पर बिठाया और रांची के सभी प्रमुख पंडालों में ले जाकर, अपनी मां को मां दुर्गा और उनके परिवार का दर्शन कराया। सुबह चार बजे के करीब अपनी मां को लेकर निकला, बिट्टू घर पर सुबह आठ बजे तक आ गया। उसकी मां बहुत खुश थी, क्योंकि वह रांची के दुर्गा पंडालों और उसमें स्थापित मां दुर्गा और उनके परिवार को बहुत ही श्रद्धापूर्वक दर्शन कर चुकी थी, और जिस काम के लिए बिट्टू आया था, वो काम भी सफल हो चुका था।

ये छोटा सा प्रसंग बताता है कि अपने देश में बिट्टू जैसे असंख्य बच्चे हैं, जो अपनी मां से बेहद प्यार करते हैं और मां के लिए वह सारे कष्ट उठाने को तैयार है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह प्रसंग मैंने इसलिए भी लिखा कि मैं उन नास्तिकों और हर बात में सनातन धर्म में नाना प्रकार के मिथ्या दोष ढूंढनेवालों को जवाब दे सकूं। इन दिनों सोशल साइट पर जब से दूर्गा पूजा प्रारम्भ हुआ है, कुछ चुनिंदा लोगों ने, जिन्होंने कभी अपनी मां को सम्मान ही नहीं दिया और न ही दूसरों की मां को सम्मान देते हैं, वे जो अपनी मां-पिता और दूसरे के मां-पिता में सिवाय लेडिज एंड जेन्टल मैन के सिवा दूसरा कुछ देखते ही नहीं, ऐसे लोगों ने फेसबुक पर गंध मचा दी।

इनलोगों ने उन सारे श्रद्धालुओं की भक्ति पर एक फेकफोटों के माध्यम से प्रश्नचिह्न लगा दिया कि ये नकली माताओं की तो जय-जयकार कर रहे हैं, पर असली माताओं पर ध्यान ही नहीं देते, जबकि सच्चाई यह है कि ऐसा करनेवाले स्वयं अपनी मां को सम्मान नहीं देते और दूसरों में नाना प्रकार की गलतियां ढूंढने में ही तीस मारखां बनते हैं।

मैंने ऐसे कई लोगों को देखा, जो ऐसे ही लोगों के घर के आस-पास रहते हैं, उन्होंने भी अपनी बूढ़ी मां को अपनी गाड़ी में बिठाया, गाड़ी की औकात नहीं थी तो अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाया, मोटरसाइकिल की औकात नहीं थी तो अपनी बुढ़ी मां को, पिता को अपने गोद में ही बिठाकर, आस-पास के पंडालों में ले जाकर, उन्हें माता के दर्शन कराये।

मेरा कहना है कि दूसरों में गलतियां ढूंढनेवालों, सनातन धर्म पर अंगूलियां उठाकर, उन्हें बदनाम करनेवालों, तुम्हें क्या लगता है कि तुम ऐसा करके अपने मकसद में कामयाब हो जाओगे?  क्या तुम्हारे जैसे लोग दुनिया में पहली बार पैदा लिये हैं, तुम्हारे जैसे लोग तो वर्षों से इस धरती पर पैदा होते रहे हैं और दुनिया से जाते रहे हैं, ऐसा कौन सा समाज है या ऐसा कौन सा धर्म है, या ऐसा कौन सा देश हैं, जहां शत प्रतिशत सही लोग हैं या शत प्रतिशत गलत लोग है।

हर समाज में अच्छे हैं तो बुरे भी हैं, ठीक तुम्हारी तरह कि न तो दूसरों को आनन्दित करेंगे और समय मिलेगा तो बुराइयां करेंगे, खोदते रहेंगे पर कभी भी बेहतर काम नहीं करेंगे। ऐसे दुष्प्रवृत्ति के लोगों को मालूम होना चाहिए कि आज भी हमारे देश में ऐसे कई बेटे हैं, जो अपनी मां से बहुत प्यार करते हैं, और जो अपनी मां से प्यार करेगा, वहीं दूसरों की मां को भी सम्मान देगा, ये गांठ बांधकर रख लीजिये।