अपनी बात

अभी बिहार को और नीचे जाना है, इसे कोई नहीं बचा सकता, क्योंकि बिहार गलत लोगों के कब्जे में हैं, भविष्य भी गलत लोगों के कब्जे में ही जायेगा, ये हमेशा मजदूर सप्लायर स्टेट बना रहेगा

कभी भारत के विकसित राज्यों या विकास के लिये समर्पित राज्यों में इस प्रकार की उटपुटांग बातें होती देखी हैं, जिस प्रकार की उटपुटांग बातें बिहार में दिखाई देती है। कभी बिहार के ही सत्ता से जुड़े बिहार के नेताओं के बेटे-बेटियों की शादी-विवाह या सामान्य कार्यक्रम अटैंड किया है। तो जरुर करें। ये आपके ही पैसों से इस प्रकार के आयोजन करते हैं कि आपमें थोड़ी सी लज्जा दिखेंगी, पर इन्हें लज्जा नहीं आती।

एक बार एक सत्ता से जुड़ा नेता जो ज्यादा हर जगहों पर पिछड़ों व दलितों की ही बातें करता था, उसके घर में जब हमने उसके बेटे की शादी की छेका की रस्म होती देखी और उस कार्यक्रम में जो पानी की बोतलें थी। उस एक बोतल पानी की रकम तीन हजार रुपये से भी अधिक थी। यह फोटो रांची के ही एक पत्रकार ने मुझे दिखाया था। उस फोटो को देख, मैं सोच में पड़ गया कि शायद यही कारण रहता होगा कि ये नेताओं का समूह जब किसी अपने ही कार्यकर्ता के यहां कोई कार्यक्रम में जाता हैं तो वो पानी पीना भी क्यों पसन्द नहीं करता।

एक नेता है, फिलहाल राजद का ही है। आगे कौन दल में चला जायेगा। हम नहीं कह सकते, क्योंकि पहले वो जदयू का रसगुल्ला खा चुका है। जाति का पंडित है। तिवारी टाइटल लगाता है। उसका एक लंबा-चौड़ा डायलॉग मैंने सोशल साइट में अभी-अभी पढ़ा है। जाति की जनगणना पर लिखा है कि बिहार के भाजपा नेता सुशील मोदी को चाहिए कि वो अपने नेताओं से डिमांड करें कि अगला जब जनगणना हो तो उसमें जाति भी जुड़े ताकि लोगों को अपनी जाति की संख्या सही में पता चल सकें। उस तिवारी नेता को शायद अंदेशा हो रहा है कि शायद बिहार में कुर्मियों की जाति बताने में हेर-फेर हुआ लगता है।

अब बताइये। बिहार में सरकार उसकी। जातीय जनगणना करानेवाले लोग उसके। जातीय उन्माद फैलानेवाले लोग उनके और उसके बाद भी कुर्मियों की जाति की गणना में हेरा-फेरी हो गई तो केन्द्र में तो सरकार भी दूसरे की और करानेवाले लोग भी दूसरे ही होंगे तो फिर, और बंटाधार हो जायेगा। लेकिन गलत करनेवालों को तो कुछ न कुछ बोलना ही है। कमाल है, जिस मोदी पर वोटिंग की हेरा-फेरी की आरोप यही लोग लगाते है कि इसकी क्या गारंटी की मोदी जातीय जनगणना में हेर-फेर नहीं करेंगे।

दरअसल ये वे लोग हैं। जिन्हें धार्मिक उन्माद तो गलत लगता है, पर जातीय उन्माद की इन्होंने ठेका ले रखी है। है तिवारी, कहलायेंगे समाजवादी पर इलाका ढूंढेगे अपना और अपने खानदान को जीताने लिये प्योर पंडित का ताकि जातीय उन्माद का फायदा उन्हें मिल सकें। यही हाल जगतानन्द सिंह, चंद्रशेखर यादव, मनोज झा जैसे लोगों का है और हो भी क्यों नहीं इनके प्राणाधार और स्वामी जो लालू यादव है।

जरा पूछिये इन महान जातीय उन्माद फैलानेवाले नेताओं से कि जब तुम ये कहते हो कि जिसकी जितनी भागादारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी, तो इसका मतलब जिसकी जनसंख्या ज्यादा होगी, वो राज करेगा तो फिर ईमानदारी व चरित्र तो तेल लेने चली गई न। जब तुम्हारी ऐसी ही सोच है तो फिर नीतीश कुमार को तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और मुख्यमंत्री तेज प्रताप को बनाना चाहिए, क्योंकि बिहार में तो तेज प्रताप जैसे लोगों की संख्या ही अधिक है।

आश्चर्य है कि पिछले पैतीस सालों से बिहार में यादव और कुर्मियों ने राज किया और इस राज में इन्होंने बिहार को दिया क्या? बिहार को मजदूर सप्लाई करनेवाला राज्य बना दिया और ये कहते है कि बिहार ये हैं, बिहार वो हैं। मैं तो ताल ठोक कर कह रहा हूं कि कोई बिहारी बता दें कि बिहार के किस जिले में तमिलनाडू, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, असम आदि राज्यों के लोग यहां आकर चाय बेचकर या कुली बनकर या ईट-बालू ढोकर अपना तथा अपना परिवार का जीविकोपार्जन कर रहे हैं।

लेकिन इन्हीं राज्यों में कई बिहारी परिवारों को दोयम दर्जें का काम करते हुए रिक्शा-ठेला चलाते, उनकी गुलामी करते हुए तक देखा है और ये कहते हैं कि बिहार का विकास करेंगे। अरे छोटी सोच रखकर कोई राज्य आगे बढ़ सका हैं। अपने बेटों को क्रिकेटर बनाओगे और जब नहीं बनेगा तो उसे राजनीति के पीच पर खड़ाकर उसे राजनीतिज्ञ बना दोगे। पूरे खानदान को सांसद-विधायक मंत्री-मुख्यमंत्री बना दोगे और जब उनसे बचेगा तो फिर अपनी ही जाति के लोगों को सब-कुछ थमा दोगे और कहते हो कि बिहार का भविष्य लिखेंगे, हां क्यों नहीं लिख ही तो रहे हो।

तुम्हारा इलाज तो एक समुदाय बढ़िया से कर रहा है। एक जिला अब मुस्लिम बहुल जिला बन गया। कई जिले मुस्लिम बहुल बनने को तैयार है। जिस दिन इसी प्रकार मुस्लिम जिले अपने चरम पर होंगे। तुम्हारा जातीय उन्माद कहां जायेगा, तुम्हें पता ही नहीं। 1961 की जनगणना और आज की तुम्हारी जातीय जनगणना में अपनी और उनकी रफ्तार की प्रतिशतता पढ़ और देख लो। तुम्हारा इलाज यही करेंगे और दूसरे के करने की कोई ताकत भी नही।

तुमलोग इसी के लिए बने हो और उस दिन तुम्हारी बोलने की ताकत भी नहीं रहेगी, क्योंकि तब वो बोलेंगे – जिसकी जितनी भागीदारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी और वे तुम्हें जातीय आरक्षण भी देंगे, क्योंकि उन्हें भी तो साफ-सफाई वाले लोग भी चाहिये/होंगे, वे कहां से मिलेंगे, वो तुमलोग व्यवस्था करोगे। वो दिन अब दूर भी नहीं। पास आ चुका है। बस तुम्हारा दिमाग इसी तरह जातीय उन्माद में चलता रहे, बसता रहे, मैं ईश्वर से यही प्रार्थना भी कर रहा हूं, क्योंकि तुम सुधरनेवाले ही नहीं और न कोई तुम्हें सुधार सकता है।

तुम लोग अपने हाथों से ही बिहार की सभ्यता व संस्कृति को आग लगाओगे और लोग देखेंगे। जैसा कि बख्तियार खिलजी ने किया था और लोग उस वक्त हाथ पर हाथ धरे बैठकर देखते रहे और उसके नाम पर स्टेशन आज भी बिहारियों को मुंह चिढ़ा रहा है कि देखो, मैं ही वो हूं, और फिर अनेक की संख्या में आ रहा हूं, वो दिन अब दूर नहीं। अरे यह देश गुलाम क्यों हुआ, बस इसी जातीय अंहकार में तो गुलाम हुआ।

हमनें चरित्र व ईमानदारी की जगह जातीय अहं में डूबने शुरु किये और फिर वहीं हुआ जो कई वर्षों तक देखने को मिला। कल की व्यवस्था दूसरों ने संभाली थी और आज तुम संभाल रहे हो। यही तो इस देश का दुर्भाग्य है, जो कभी छूट ही नहीं रहा। शायद ईश्वर ने इस देश के भाग्य में और भी पतन के कई वर्ष संभाल कर रखे हैं। एक बिहार में लोकोक्ति हैं – भाग्य में लिखल बा लेढ़ा, तो कहां से खइब पेड़ा। शायद बिहार के भाग्य में ऐसे ही नेता लिखे हुए हैं जो जातीय उन्माद फैलाकर अपना व अपने खानदान का भविष्य सुदृढ़ करेंगे और बिहार के माथे पर कालिख पोतते रहेंगे।