अपनी बात

कर्मवीर कुंदन और उसकी पत्नी सुमन के लिए कोई काम छोटा नहीं, काम में ईमानदारी, देश में खुशहाली

इन दिनों मैं अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में एक चिरप्रतीक्षित सपने को पूरा करने में लगा हूं। वह सपना है, अपने घर का निर्माण। कुछ बच्चों के पास पैसे थे, कुछ हमने बचा कर रखे थे और कुछ मैंने अपने मित्रों से कर्ज लिये हैं और इस प्रकार मैं अपने सपने को सच करने में लगा हूं। आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि ईश्वरीय कृपा से यह कार्य निर्विघ्नता पूर्वक संपन्न हो जायेगा।

जब मैं छोटा था, तभी से एक अपना घर हो, इसका सपना मन में घर कर लिया था, लेकिन बार-बार सोचता कि यह संभव कैसे होगा? क्योंकि मेरे पास न तो कोई सरकारी अथवा निजी नौकरी थी और न ही कोई ऐसा व्यवसाय जिससे मेरा भविष्य बेहतर बन जाये, बस केवल ट्यूशन और आकाशवाणी पटना में कैजूयल एनाउंसर और अखबारों में कुछ लिखकर ही मैं अपना परिवार चला रहा था।

इसी बीच ईश्वरीय कृपा हुई, दैनिक जागरण से जुड़ा, पर ज्यादा दिनों तक वहां टिक नही सका। फिर ईटीवी में गया। जहां लंबे समय तक टिका। जब यहां से हटा तो मुझे कुछ अच्छी राशि प्रोविडंट फंड की मिली, इसी पर एक मित्र ने सलाह दी कि जो राशि मुझे मिली है, उस राशि से कुछ जमीन क्यों नहीं मैं खरीद लेता। मित्र की बात रुचिकर लगी और दो कट्ठे जमीन रांची के चुटिया में खरीद ली। खैर, आज खुशी की बात है, कि हम अपने सपनों के निर्माण में लगे हैं।

हमारे इस सपनों को मूर्त्तरुप देने में कई राजमिस्त्री व अन्य स्त्री-पुरुष मजदूर लगे हैं। इन्हीं में से एक है – कुन्दन मिश्रा और उनकी पत्नी सुमन मिश्रा। जो यहां मजदूर के रुप में अपनी सेवा दे रहे हैं। समय पर आना और समय पूरा हो जाने के बाद भी जब तक जो काम लिया हैं, वह पूरा जब तक नहीं हो जाता, उसे पूरा किये बिना नहीं जाना, हर दम मुस्कुराते रहना, पैर में सूजन (एक पैर टूटा हुआ हैं) के बावजूद कर्म के प्रति इन दोनों पति-पत्नी की निष्ठा देखकर मैं हैरान हो जाता हूं, जबकि इन्हीं लोगों के बीच कुछ ऐसे भी मजदूर हैं, जो देह चुराने तथा काम न करने के सैकड़ों बहाने वे इसी दरम्यान ढूंढ लेते हैं।

ऐसे भी हमारे देश में पता नहीं क्यों, जिस कार्य में शारीरिक श्रम लगता हैं, उस कार्य को लोग निकृष्टतम कार्य के रुप में देखते हैं, तथा मानसिक कार्य एवं आइएएस-आइपीएस आदि बनकर अपने कार्य को अंतिम रुप देनेवाले लोगों के प्रति सम्मान का भाव ज्यादा होता हैं, जो हमारे विचार से मूर्खता के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं।

एक दिन हमारे ठेकेदार ने शौचालय की टंकी निर्माण के लिए मिट्टी की खुदाई शुरु करवाई। फिर उस मिट्टी को बन रहे कमरे में भरवाने के लिए मजदूरों की तलाश शुरु कर दी, जो भी मजदूर आते मिट्टी के टीले को देख, तीन-पांच हजार रुपये की डिमांड कर देते। एक दिन कुन्दन ने ठेकेदार से कहा कि मालिक आप इसका ठेका मुझे ही क्यों नहीं दे देते। आप हमें एक हजार रुपये दीजिये, मैं सब काम कर दूंगा।

ठेकेदार ने कहा कि वो उसे डेढ़ हजार देगा, इस काम को समाप्त करें, पर याद रहे ये काम उसकी प्रतिदिन के काम से अलग होगा, यानी उसे सुबह के नौ बजे से लेकर पांच बजे तक नहीं करना होगा, अपनी सुविधानुसार जैसे करना हो, काम को अंजाम दें, क्योंकि उसने इस काम के लिए अलग से ठेका उसे दे रखा है। कुंदन ने ठेकेदार की बात पर हामी भरी और काम पर लग गया।

एक दिन सुबह के पांच बजे मैंने मिट्टी के टीले पर चल रहे कुदाल की आवाज सुनी और वहां गया। मैंने देखा कि दोनों पति-पत्नी और उसका एक मित्र मिट्टी को काटकर कमरे में खाली जगहों को भर रहे थे। भीषण ठंड में वह भी जब आदमी एक दूसरे को ठीक से नहीं देख रहा, उस वक्त रात के अंधेरे में काम के प्रति समर्पण देख मैं अवाक् था।

आज स्थिति यह है कि कुंदन और उसके परिवार के बीच हमारे परिवार की अंतरंगता बढ़ गई हैं। यह अंतरंगता बढ़ने का कारण भी रहा हैं। मैंने अपने जीवन में किसी भी कार्य को न तो छोटा माना हैं और न ही बड़ा माना है। मनुष्य को चोरी, डकैती, अपराधी गतिविधियों को छोड़ हर काम में अपनी ऊर्जा को लगा देना चाहिए, क्योंकि इसी में उसका तथा समाज व परिवार का उत्थान है।

मैं तो आश्चर्य करता हूं कि भारत की आबादी 130 करोड़ यानी हमारे पास 260 करोड़ हाथ और फिर भी अगर हम प्रगति नहीं कर रहे तो इसके लिए सरकार या उसके क्रियाकलाप दोषी नहीं, बल्कि हम दोषी है, क्योंकि हमने कर्म को समझा ही नहीं। किसी भी कर्म/सेवा को स्वयं के द्वारा अच्छा व बुरा का आकलन कर लिया है, साथ ही स्वयं और दूसरों को भी प्रताड़ित करना शुरु कर दिया है।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी की मजदूरी और प्रेम का असली आनन्द मैं अभी ले रहा हूं, जब कुंदन और उसकी पत्नी सुमन को काम में लगा देखता हूं। आज ही तो उसने कहा था कि मालिक चिन्ता मत करिये, मैं हूं ना, कुछ भी गलत नहीं होगा, आपका सपना हमलोग मिलकर पूरा करेंगे, घर अच्छा बनेगा और फिर लग गया, निष्ठा से काम को गति देने। प्रतिदिन बिना कहे सुने, समय के पूर्व आकर, उसका दिवारों तथा टाईबिम पर पानी पटाना, ठेकेदार द्वारा बताये गये कामों को मूर्तरुप देना उसकी प्राथमिकता में शामिल हैं।

आम तौर पर लोग अपने यहां मानते है कि ब्राह्मण समुदाय के लोग इस प्रकार के कार्य नहीं करते, लेकिन सुमन और कुंदन का यह काम करना, वह भी सत्य निष्ठा के साथ, बताता है कि लोगों के सोच बदल रहे हैं। ठेकेदार भी लगता है कि कुंदन और उसकी पत्नी सुमन पर ज्यादा ध्यान देता हैं, उसका मूल कारण इन दोनों की अपने कार्य के प्रति निष्ठा है। आस-पास के लोग जिन्होंने इन दोनों को देखा हैं, वे भी इनके काम के मुरीद हो चुके हैं।

मेरा तो मानना है कि जिस दिन भारत के लोग सारे कामों को एक तराजू पर तौलते हुए, बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे का सम्मान करने लगेंगे। देश का कायाकल्प हो जायेगा, पर हमें नहीं लगता कि देश में सदियों से पनपा यह घटिया सोच इतनी जल्द निकल जायेगा, समय लगेगा, पर धीरे-धीरे सुधार होगा, यह मेरा दृढ़ विश्वास है। हमारे बन रहे मकान में आशा की एक किरण, एक छोटी सी झलक कुंदन मिश्रा और सुमन मिश्रा के रुप में देखने को मिली हैं, जल्द ही यह व्यापक स्तर पर दिखेगा, लोग हर कामों में ईश्वर को देखेंगे, भारत प्राचीन समृद्धि को पुनः प्राप्त करेगा।