राज्य सरकार की नजरों में लोकसभा उपाध्यक्ष रह चुके कड़िया मुंडा की कोई इज्जत नहीं

आम तौर पर लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों की अहमियत ज्यादा होती है, पर झारखण्ड में जनप्रतिनिधियों की कोई इज्जत नहीं, यहां नौकरशाही हावी है। हद तो तब देखी जा रही हैं कि सीएमओ और मुख्य सचिव के इशारे पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग इस प्रकार से मुख्य सचिव की न्यूज संप्रेषित कर रहा है, जैसे लगता है कि यहां मुख्य सचिव ही सर्वेसर्वा है, बाकी किसी की कोई औकात ही नहीं।

सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग को हिदायत दे दी गई है कि मुख्य सचिव की खबरों को अखबारों व चैनलों तक इस प्रकार पहुंचाया जाय कि अखबार व चैनल वाले मुख्य सचिव को छोड़कर दुसरे का नाम ही न लें और न उनकी बातों को अहमियत दें।

अब हम आपको बताते है कि ऐसा क्यों लिखना पड़ा। ज्यादा दिनों की बात नहीं है, पिछले ही दिनों यानी 20 जनवरी की घटना है। खुंटी के मुरहू प्रखण्ड के गुटीगड़ा में कृषि-सह-विकास-महोत्सव का उद्घाटन था। जहां इस इलाके के सांसद सह लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा भी उपस्थित थे। होना यह चाहिए था कि प्राथमिकता लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा को देनी चाहिए थी, पर कड़िया मुंडा गौण हो गये और मुख्य सचिव के भाषण और उनके फोटो को प्राथमिकता के आधार पर संप्रेषित किया गया।

अगर इस दिन को आईपीआरडी के मेल से भेजे गये समाचार को देखे तो पता चलेगा कि जो दो हेडिंग दिये गये है, उसमें मुख्य सचिव ही छाई हुई है। जो चार फोटो दिये गये हैं, उनमें भी मुख्य सचिव को ही प्राथमिकता दे दी गई, जबकि कड़िया मुंडा को एक सामान्य जनप्रतिनिधि के तौर पर जगह दे दी गई। जिन्होंने समाचार बनाया या जिनके इशारे पर समाचार बनाई गई, जरा उस समाचार को देखिये, तो मुख्य सचिव के भाषण को पहला स्थान देते हुए, मुख्य सचिव के भाषण को 32 पंक्तियों में उसे सुसज्जित किया गया, जबकि लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा के भाषण को 14 पंक्तियों में ही खत्म कर दिया गया और वह भी दूसरे स्थान पर।

आम तौर पर कड़िया मुंडा बहुत ही सीधे, सरल और आज की वर्तमान राजनीति में फिट नहीं बैठते और न ही वे तिकड़म जानते हैं, कि किन तिकड़मों से पैसे और शोहरत कमाये जाते हैं, शायद यहीं कारण रहा कि खूंटी के उपायुक्त और मुख्य सचिव ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जिस सम्मान के वे हकदार हैं, पर जिस प्रकार से नौकरशाहों की मनोवृत्तियां लोकतंत्रीय प्रणाली को ध्वस्त कर रही हैं, जनप्रतिनिधियों के सम्मान से खेल रही हैं, उससे साफ लगता है कि यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं, पर यहां जब सरकार, अपने ही जनप्रतिनिधियों, अपने ही दलों के नेताओं के सम्मान से खेलने को तैयार है, तो हम और आप कर ही क्या सकते हैं?