कोई भी देश अपने देश को बाजार बनाना नहीं चाहता, पर अपने CM भारत को बाजार कह गर्व महसूस करते हैं

धिक्कार, इस राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को जो भारत देश को बाजार कहने में गर्व महसूस करता है। भारत जैसे देश को उद्यमिता प्रधान देश न कहकर, उसे उपभोक्तावादी देश कहने में खुद को गर्व महसूस करनेवाला व्यक्ति की यह सोच बताता है कि वह अपने देश के सम्मान को कैसे प्रभावित कर रहा है, वह भी एक प्रतिष्ठित राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर, वह भी उस मंच से जहां हिन्दी को प्रतिष्ठित करने की बात हो रही है।

कल की ही बात है, हिन्दी दिवस के अवसर पर प्रोजेक्ट भवन के सभागार में आयोजित हिन्दी दिवस पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि भारत विश्व स्तर पर बड़ा बाजार है। विश्व के विभिन्न देश भारत के बाजार में स्थापित होना चाहते है। इस वजह से विदेशों में लोग हिन्दी सीख रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि बोधगया के रणविजय सिन्हा चीन के यूआन विश्वविद्यालय कुनमीन में हिन्दी के व्याख्याता है, वह चीनी लोगों को हिन्दी सीखा रहे हैं। यह देश के लिए गौरव का विषय हैं, पर इस मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह नहीं पता कि विश्व के 98 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में संस्कृत एक विषय के रुप में पढ़ाई जाने लगी है, क्योंकि रोबोटिक साइंस व कम्प्यूटर साइंस में रुचि रखनेवालों को पता चल चुका है कि संस्कृत इन क्षेत्रों में कितनी आवश्यक हैं, इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि विश्व के कई शैक्षिक संस्थानों में संस्कृत सीखने की होड़ मची हैं।

विश्व स्तर पर संस्कृत की इस लोकप्रियता और इस पर पूरे विश्व के विकसित देशों की रुचि बता रही है कि आनेवाले समय में संस्कृत किस स्तर पर होगी और यह भारत अपनी ही संस्कृत साहित्यों और उनसे होनेवाले अनुसंधानों के लिए विश्व पर आश्रित होगा, क्योंकि सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर होनेवाले को पता ही नहीं कि विश्व में कितना बदलाव हो रहा हैं, उन्हें तो अपने देश को बाजार बनने में ही आनन्द दीख रहा हैं, जबकि विश्व का कोई देश अपने देश को बाजार बनने नहीं देना चाहता, वह तो चाहता है कि उसका देश एक उद्यमिता प्रधान देश के रुप में जाना जाये।

रांची में ही रह रहे कई हिन्दी के विद्वानों का समूह का कहना है कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को पता ही नहीं कि हिन्दी, भारत के बाजार बन जाने के कारण नहीं, बल्कि भारत के जन-जन की भाषा होने के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रही हैं, न कि नेताओं/फिल्मी कलाकारों/भारतीय पुलिस सेवा या भारतीय प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े अधिकारियों के कारण। मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस भाषा और बोल से कई हिन्दी प्रेमी दुखी है, उनका कहना है कि जायसी की पद्मावत, रसखान, सूरदास, मीराबाई और तुलसीदास आदि के साहित्यों को कभी इन नेताओं ने पढ़ा भी है, क्या इनके साहित्य बाजार के कारण लोकप्रिय हुए थे।

क्या ह्वेनसांग या फाहियान जो भारत का दौरा किया था, वह भारत के बाजार हो जाने के कारण दौरा किया था, क्या विदेशियों द्वारा भारत पर जो बार-बार आक्रमण किये गये, उसके बावजूद खिलजी से लेकर औरंगजेब तक जो हिन्दी समृद्ध रही, वो बाजार के कारण। सच्चाई तो यह है कि आज हिन्दी दम तोड़ रही हैं, और उसका मूल कारण यहां के नेता नेताओं/फिल्मी कलाकारों/भारतीय पुलिस सेवा या भारतीय प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े अधिकारियों का समूह है, जो अपने दायित्वों को सही ढंग से निर्वहण नहीं किया, ये तो समझता है कि अंग्रेजी बोलने से ही उनके सम्मान बढ़ेंगे और इसीलिए इनके घरों से लेकर इनके कार्यालयों तक अंग्रेजी की तूती बोलती है और हिन्दी दिवस के दिन भारत को बाजार कहकर गाली देने से भी, ये गुरेज नहीं करते।

इतिहास गवाह है कि कोई भी भाषा, कहीं की भी भाषा, बाजार के कारण समृद्ध नहीं होती, वह समृद्ध होती है कि उस भाषा का उपयोग वहां की सरकार या वहां के अधिकारियों का समूह किन रुपों में और कैसे कर रहा हैं, क्या अंग्रेजी भाषा इंग्लैंड के बाजार बनने के कारण समृद्ध हुई, क्या चीनी भाषा की लोकप्रियता चीन के बाजार होने के कारण हुई, ये बात यहां के नेताओं के दिमाग में क्यों नहीं घुसती? क्या संस्कृत जो बहुत तेजी से पूरे विश्व में (भारत को छोड़कर) फैल रही हैं, वह बाजार के कारण या उसकी ग्राह्यता के कारण।

कौन ऐसा व्यक्ति हैं, जो मुख्यमंत्री का इस प्रकार का भाषण तैयार करता है? और बेसिर पैर की बातें, राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा सुनने को मिलती है, अरे भाई हिन्दी दिवस पर भाषण तैयार कर रहे हो, थोड़ा शर्म करो, अपने देश का सम्मान करो, भारत को बाजार मत बनाओ, भारत को उद्यमिता प्रधान देश बनाओ, अगर तुम्हें बाजार का मतलब नहीं समझ आता है तो कभी कुछ सामान खरीदने के लिए बाजार निकल जाओ, पता लग जायेगा, कि बाजार क्या होता है?