राजनीति

ढाई साल बीत गये, जनाब कठिनाइयों व प्राथमिकताओं का अवलोकन ही कर रहे है, काम कब करेंगे?

ढाई साल बीत गये, और अभी भी मुख्यमंत्री रघुवर दास कठिनाइयों और प्राथमिकताओं का अवलोकन ही कर रहे है, तो फिर काम कब करेंगे? हर बार यहीं रोना रोते है, वह भी ढोल पीटकर कि 70 सालों में झारखण्ड का विकास अपेक्षित नहीं रहा, 14 वर्षों तक राजनीतिक अस्थिरता के कारण भी राज्य का विकास प्रभावित रहा, ये डॉयलॉगबाजी कब बंद होगी?  राज्य की जनता जानना चाहती है, अब तो आपकी सरकार है, स्थिर सरकार है, केन्द्र में भी आपकी सरकार है और फिर भी नीति आयोग को यह कहना पड़े कि झारखण्ड बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई में राष्ट्रीय औसत से पीछे चल रहा है, तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है?  क्या इसके लिए भी आप विपक्ष को ही जिम्मेदार मानेंगे या स्वयं को ईमानदारी से कटघरे में रखने का प्रयास करेंगे?

सरकार के पास विजन का अभाव

इस राज्य का दुर्भाग्य है कि सत्ता के शिखर पर ऐसा व्यक्ति बैठा है, जिसके पास विजन ही नहीं है, और जो उसके कान फूंकनेवाले, कनफूंकवे है, उनका प्रथम और अंतिम लक्ष्य है – पैसे बनाना, पैसे इकट्ठे करना और अपने आनेवाले सात पुश्तों के लिए ऐसा प्रबंध कर लेना, ताकि यहां से हटने के बाद कुछ करने की आवश्यकता ही न पड़े और देश में रहने की आवश्यकता पड़े तो अपने मित्रों के साथ मुंबई या गोवा का टूर हमेशा करते रहे और नहीं तो विदेश यात्रा किसने रोका है।  जिस राज्य में ऐसी मानसिकता वाले लोग हो, वहां विकास की बात करना, राज्य की जनता को शिखर तक पहुंचाने का सपना देखना, बेमानी है।

नीति आयोग ने कहा श्वेत पत्र तैयार करें सरकार

स्थिति ऐसी है कि नीति आयोग ने राज्य सरकार को आधारभूत संरचना ठीक करने के लिए समेकित योजना बनाकर काम करने का सुझाव दिया है। नीति आयोग ने तो यहां तक कह दिया कि जिस क्षेत्र में कमी हो रही है, उस पर श्वेत पत्र तैयार करें तथा प्रति व्यक्ति आय के आकड़ें को राष्ट्रीय औसत के अनुरुप लाने के लिए इंटीग्रेटेड डेवलेपमेंट प्रोग्राम बनाएं। नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने ठीक ही कहा कि केवल कोयला, लोहा या अन्य खनिजों के खनन पर ही ध्यान देने की जरुरत नहीं, बल्कि अन्य वैल्यू एड पर जोर देना होगा, हालांकि इस अवसर पर मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके इर्द-गिर्द रहनेवाले अधिकारियों ने जमकर झारखण्ड को बेहतर बनाने के लिए राज्य में उठाये गये कदम को नीति आयोग के समक्ष रखा, पर नीति आयोग को यह पता लगते देर नहीं लगा कि यहां सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा।