अपनी बात

एग्जिट पोल में भाजपा की वापसी का समाचार सुन बौराए भाजपा समर्थकों ने अपने विरोधियों को शुरु किया गरियाना

एग्जिट पोल की महिमा भगवान जाने पर पूरे देश में एग्जिट पोल में केन्द्र में एक बार फिर भाजपा गठबंधन की वापसी के समाचार आने के बाद भाजपा समर्थकों व कार्यकर्ताओं में गजब का जोश हैं, ये जोश उन्हें जमीन पर नहीं रख रहा, ये जमीन से सीधे आकाश की ओर चले गये हैं, और वहां से अपने विरोधियों को नापने का काम शुरु कर दिया हैं। ये अपने विरोधियों के लिए ऐसी-ऐसी भाषाओं को प्रयोग कर रहे हैं, जिससे एक संभ्रांत व्यक्ति कहीं उल्लेख भी नहीं कर सकता।

राजनैतिक पंडितों की माने, तो वे साफ कहते है कि जिनके नेता ही अपने प्रतिपक्ष के नेता के लिए भद्दी-भद्दी भाषाओं व एक जाति विशेष के लोगों के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करता हो, तो उसके कार्यकर्ता या समर्थक इस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं तो उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हो रहा।

भाजपाइयों द्वारा अपने विरोधियों के खिलाफ किये जा रहे आपत्तिजनक भाषाओं के प्रयोग से खफा एक टीवी एंकर अपने सोशल साइट पर लिखती है कि “सारी पत्रकारिता एक तरफ, चैनल का नाम एक तरफ, अगर मैं प्रधानमंत्री जी का इंटरव्यू लेती तो मेरा पहला सवाल यही होता, आपके भक्त इतने गैरसंस्कारी क्यों हैं?” वह गुस्से में यह भी लिखती है कि “आएगा तो मोदी ही, लेकिन भक्तों को अक्ल-इज्जत, तहजीब-तमीज कभी नहीं आएगी।”

एक सज्जन तो अपने सोशल साइट फेसबुक के माध्यम से नागफणी के कांटे और बरनॉल से भरा ट्रक अपने विरोधियों को भेजने का काम शुरु कर दिया हैं, हमने भी उनसे एक ट्रक तो नहीं पर एक बरनॉल का पैकेट मांग लिया हैं, उन्होंने बरनॉल शीघ्र भेजने का वायदा भी किया हैं, भला 23 मई को उनके हिसाब से कुछ अगर मेरे साथ अहित हो गया तो ये बरनॉल बाद में काम आ जाये।

कमाल है, पता नहीं इस प्रकार की सोच कहां से लोगों में आ जा रही हैं, जबकि ये जनाब स्वयं बड़े ही सज्जन व्यक्ति हैं, पशुओं से भी ये बहुत प्यार करते हैं, पर अपने विरोधियों के लिए बरनॉल और कांटे वाले पौधे का प्रयोग करने की क्यों सोच रखे हैं, समझ नहीं आ रहा।यहीं नहीं उन्होंने एक और पोस्ट डाला है, जिसमें वे लिखते है कि “जिन-जिन लोगों को मोदी से समस्या है, और बरनॉल से आराम नहीं हो पा रहा, कृपया तुरन्त सम्पर्क करें, आराम मिलने की पूरी गारंटी हैं।”

सवाल साफ है, कि इस प्रकार की सोच हमें कहां ले जायेगी, क्या इन कटुता भरे भावों से समाज व देश का भला होगा, क्या मैले से कभी मैला साफ हुआ हैं, लोकतंत्र इसके लिए तो नहीं बना, जनता ने वोट दिया, जिसको सर्वाधिक सीटे मिली वो देश की सेवा करें और जिन्हें कम मिले, वो विपक्ष में बैठकर सत्ता पक्ष के द्वारा की जा रही गड़बड़ियों पर अंकुश लगाये, ये तो नहीं कि आप किसी को जी भरकर गाली दें।

जानिये, ये सब के लिए हैं। संस्कृत साहित्य में एक श्लोक हैं, संपत्तौ च विपत्तौ च महतां एकरुपता। उदेति सविता ताम्र,ताम्र एवास्तमेति च।। अर्थात्, सम्पत्ति आये या सम्पत्ति चली जाये, दोनों अवस्थाओं में विद्वान व सज्जन पुरुष एक ही तरह दीखते हैं, जैसे सूर्य उदय हो या अस्त दोनों अवस्थाओं में वो उसका रंग ताम्बे के रंग के समान ही होता है।