जनता के साथ धोखा, एफडीआई प्रकरण पर पीएम मोदी ने अपना असली चेहरा दिखाया

याद करिये, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वह चेहरा, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, थोड़ा अपने मस्तिष्क पर जोर दीजिये, जब केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने एफडीआई लाने की बात की थी, तब उन्होंने ट्विट कर क्या कहा था – Congress is giving nation to foreigners. Most parties opposed FDI but due to sword of CBI, some didn’t vote & Cong won through back door!  आज वहीं व्यक्ति बजट से ठीक पहले एफडीआई को लेकर एक बड़ा एलान करता है, वह सिंगल ब्रांड रिटेल में 100% और एयर इंडिया में 49% एफडीआई की मंजूरी दे देता है।

कभी आज के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने प्रेस को बयान दिया था – Will oppose FDI till our last breath.

कभी एफडीआई मुद्दे पर ही लोकसभा में उस वक्त प्रतिपक्ष की नेता रही सुषमा स्वराज ने कांग्रेस सरकार को घेरते हुए कहा था – मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विकास की सीढ़ी नहीं, बल्कि विनाश का गड्ढा है। उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित दुनिया के कई देशों में इसके खिलाफ आंदोलन हो रहे है, और वहां की सरकारों ने छोटे कारोबारियों के हितों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन यूपीए सरकार एकदम उलट फैसला करने पर आमदा है, साथ ही सवाल किया था कि कहीं एफडीआई का फैसला भ्रष्टाचार की उपज तो नहीं है।

राज्यसभा में उन्होंने मत विभाजन के प्रावधानवाले नियम 184 के तहत एफडीआई मुददे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा था कि पूरी दुनिया का अनुभव है कि जहां-जहां पर भी मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई आया, खुदरा बाजार समाप्त हो गया।

कांग्रेस के सुरजेवाला का इस पर बयान कि क्या जेटली का एफडीआई मुद्दे पर आखिरी सांस वाला बयान भी जुमला साबित हुआ, मोदी ने मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडर्स को नुकसान की बात स्वीकार की थी, क्या वह भी जुमला था? गलत नहीं है, कांग्रेस और पूरे देश की जनता को यह पूछने का हक है कि एक ही मुददे पर विपक्ष में रहने पर दूसरे बयान और सत्ता में आते ही जिसका विरोध कर रहे थे, उस पर मुहर लगाने की प्रथा, क्या जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा नहीं है।

कभी संघ के लोगों ने, स्वदेशी जागरण मंच ने भी उस वक्त एफडीआई का जोर-शोर से विरोध किया था, पर आज उनकी बोलती बंद है, क्योंकि आज एफडीआई को लागू करने का बीड़ा उन्हीं के प्रिय नेता नरेन्द्र मोदी ने उठाया है, ऐसे भी जनता तो अपने नरेन्द्र मोदी पर वाड़ी जा रही है, ऐसे में नरेन्द्र मोदी को कौन बोलेगा? कमाल है, लोगों का चरित्र कैसे बदलता है? उसकी बानगी देखिये, व्यक्ति वहीं है, पर जब वह स्वयंसेवक रहता है, प्रचारक रहता है तो अभावों में जीवन व्यतीत करता है, वह दूसरों को प्रेरणा देता है कि कम कपड़ों, कम भोजन, छोटे से कमरे में भी जीवन आराम से व्यतीत किया जा सकता है, पर जैसे ही वह सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर पहुंचता है, वह भूल जाता है कि कभी वह स्वयंसेवक था। कभी उसने गाया था –

परं वैभवं नेतुमेतत् राष्ट्रम्

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्

आज वह इस प्रार्थना के अंतिम दो पंक्तियों को भूल चुका है। वह भूल चुका है कि हेडगेवार, वीर सावरकर ने देश को संवारने के लिए, क्या कल्पना की थी, उसे तो सिर्फ ये चिंता है कि पूरे देश व विश्व में उसके इमेज के प्रति लोग कितने संवेदनशील है। वह खुद को ऐसा नेता घोषित करने पर लगा है, जिसे लोग आजीवन याद रखे, पर वह भूल चुका है, कि यह प्रचार-प्रसार से नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति समर्पण से होता है। वह कितना समर्पित है, एफडीआई को लागू करने के उसके फैसले ने सारी जनता के समक्ष उसकी पोल खोलकर रख दी है।

सुप्रसिद्ध लेखक एवं कवि मुकुटधारी अग्रवाल ने सोशल साइट पर ठीक ही लिखा कि झटके पर झटका, एक झटके से उबरे नहीं, कि दुसरा झटका। नोटबंदी और फिर जीएसटी और अब एफडीआई, कहां बचकर जाओगे, तुम छोटे-छोटे व्यापारी और उद्योगपति? तुम्हारे समर्थन से बनी यह मोदी सरकार बड़े औद्योगिक घरानों के दबाव से प्रभावित होकर क्या तुम्हारे ऐहसान को भूल रही है? अगर ऐसा नहीं हैं तो एफडीआई लागू कराने के पहले इस पर क्या आम चर्चा कर आपलोगों की राय ली गई? गंभीरता से सोचो, कि यह सब क्या तुम्हें खत्म करने की साजिश तो नहीं हैं?  इसे कहते है कि जिस पत्तल में खाया, उसी में छेद कर दिया