प्रभात खबर को गलतफहमी, वो है तो हेमन्त की सत्ता है, वो संतुष्ट नहीं तो सरकार भी नहीं, CM हेमन्त से जुड़ी खबरों को अपने अखबार में नहीं दी जगह

रांची से प्रकाशित प्रभात खबर को लगता है कि वो मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से जुड़ी समाचारों को अपने अखबारों में स्थान नहीं देगा, तो हेमन्त सोरेन की लोकप्रियता पूरे राज्य में धीरे-धीरे खत्म हो जायेगी और फिर राज्य में ऐसी पार्टी की सरकार आ जायेगी, ऐसा मुख्यमंत्री आ जायेगा, जो उनके इशारों पर काम करेगा, उसे मुंहमांगी विज्ञापन से नहला देगा और फिर जब तक सरकार है, उसी की चलेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसी सोच केवल प्रभात खबर की ही नहीं, ऐसे रांची से प्रकाशित और भी कई अखबार हैं, जिसे राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन इन दिनों फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं और ईडी की आड़ में जमकर उनके खिलाफ अपनी दिल की भड़ास निकाल रहे हैं, जबकि इसके विपरीत सारी स्थितियों व परिस्थितियों को समझते हुए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन अपना काम किये जा रहे हैं।

जो लोग 2019 का विधानसभा चुनाव देखे हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि विधानसभा चुनाव के दौरान उस वक्त विपक्ष में रह रहे हेमन्त सोरेन को प्रभात खबर या अन्य अखबारों व चैनलों में कितना स्थान मिलता था और उस वक्त मुख्यमंत्री के पद पर बैठे रघुवर दास को कितना स्थान मिलता था? कैसे उस वक्त राज्य के सभी अखबार, चैनल व पोर्टल “हर हर रघुवर, घर-घर रघुवर” का मंत्र जाप करते थे और जहां इन्हें मौका मिलता, वहां यह बोलने से गुरेज नहीं किया करते कि फिर से रघुवर ही आ रहे हैं। ऐसा करने के लिए सारे अखबारों को दो-दो पृष्ठों का खुलकर विज्ञापन भी मिलता था, पर बेचारे हेमन्त के पास इतने उस वक्त पैसे कहां थे कि वो इन सबकी मांग पूरी करता, फिर भी जनता का आशीर्वाद हेमन्त को मिला और हेमन्त मुख्यमंत्री बने।

आज भी कमोबेश हालत यही है। जब से ईडी, सीबीआई, चुनाव आयोग, केन्द्र सरकार और भाजपा के मूर्धन्य नेताओं द्वारा हेमन्त पर हमले शुरु हुए हैं, इन सारे के सारे अखबारों ने मान लिया कि हेमन्त अब चले गये। एक अखबार के संवाददाता जो कभी रांची प्रेस क्लब का चुनाव भी लड़े थे, उन्होंने हमसे बाजी लगा ली और कह दिया कि एक महीने के अंदर हेमन्त गये, जबकि हमने कहा कि हेमन्त रहेंगे और अब जब भी मैं उन्हें फोन लगाता हूं कि वो इधर-उधर की बातों में उलझा देते हैं, हम आपको बता दे कि ये बाजी लगाये हुए पांच महीने से भी अधिक बीत चुके हैं।

अब बात प्रभात खबर की। प्रभात खबर की धृष्टता देखिये। कल राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन झारखण्ड प्रशासनिक सेवा संघ की वार्षिक आम सभा में शामिल हुए। इससे जुड़ी समाचार को रांची से प्रकाशित होनेवाले सभी अखबारों ने प्रमुखता से लिया और उसे अच्छी जगह प्रदान की, पर प्रभात खबर में जब हमने इस समाचार को ढुंढने की कोशिश की, तो इस अखबार में यह न्यूज ही नहीं था।

अब दुसरा उदाहरण देखिये। दो दिसम्बर को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा। यह समाचार वन-कानून से संबंधित था। तीन दिसम्बर को रांची से प्रकाशित सभी अखबारों ने यथोचित स्थान दिया, पर प्रभात खबर ने भीतर के पृष्ठों पर वो भी सिंगल कॉलम में जैसे-तैसे देकर निबटा दिया, जैसे लगता हो कि वो समाचार किसी दल के छुटभैये नेताओं से जुड़ा था। ये मुख्यमंत्री से संबंधित न्यूज की प्रभात खबर की ट्रीटमेंट थी। एक मुख्यमंत्री के प्रति एक अखबार की कैसी सोच हैं, ये दो समाचार से आप इसका आकलन कर सकते हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की कोई इज्जत नहीं, जब मुख्यमंत्री विज्ञापन देंगे तब उनका समाचार छपेगा। अखबार नहीं आंदोलन खुद को कहने वाले को राज्य सरकार की ओर से थोड़ा विज्ञापन क्या रुक गया, अपना चेहरा दिखा दिया कि आप हमें विज्ञापन नहीं देंगे तो हम आपको अपने यहां स्थान नहीं देंगे। क्या ये जनता के साथ अन्याय नहीं। जनता को समाचार से वंचित करना क्या अपराध नहीं? ये तो प्रभात खबर के संपादकों को सोचना चाहिए।

क्या विज्ञापन प्राप्त करना अखबारों/चैनलों का जन्मसिद्ध अधिकार है या विज्ञापन राज्य सरकार अपनी जनता के हितों को ध्यान में रखकर प्रकाशित करवायेगी। इसका जवाब अखबार वाले ही दें तो अच्छा हैं या अखबार विज्ञापन के लिए ही प्रकाशित होते हैं, इसका भी जवाब अखबार वाले दें तो बेहतर होगा।

सूत्र बता रहे हैं और सुनने में भी आ रहा है कि प्रभात खबर को आज से विज्ञापन मिलना शुरु हो जायेगा। आईपीआरडी के लोगों को मानना है कि कल से मुख्यमंत्री का समाचार भी प्रभात खबर में देखने को मिल जायेगा। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि दोनों ओर से कोई समझौता हुआ है। इसमें कौन जीता और कौन हारा? मैं ये जनता पर छोड़ता हूं कि वो निर्णय करें कि इसमें जीत किसकी हुई? पर जब मुझसे पूछा जायेगा तो मैं यहीं कहूंगा कि ये पत्रकारिता की हार है।

सूत्र यह भी बता रहे है कि सत्तापक्ष की ओर से शायद प्रभात खबर पर दबाव था कि वो बाबूलाल मरांडी की खबरों को उतना स्थान नहीं दे, जितना वो दे रहा हैं, पर इसमें कितनी सच्चाई है ये तो प्रभात खबर ही बेहतर बता सकता है। कुल मिलाकर अगर ऐसी स्थितियां राज्य में बनती है, तो यह इस राज्य के लिए दुर्भाग्य है। आनेवाले समय में कई अखबारों को ये गलतफहमियां हो जायेगी कि वो हैं तो कोई सत्ता में है, इस गलतफहमियों को दूर करना भी जरुरी है और इस गलतफहमी को झारखण्ड की जनता अवश्य दूर करेगी, जैसा कि 2019 के विधानसभा चुनाव में किया। आशा है कि वर्तमान में एक को यह गलतफहमी हुई है, वो भी आनेवाले समय में दूर हो जायेगी।