अपनी बात

पटना को मेट्रो रेल और इधर रांची की जनता को न मेट्रो- न मोनो, सिर्फ हाथ आया ठन-ठन गोपाल

याद करिये अपने होनहार सीएम रघुवर दास की हवाबाजी, दिसम्बर 2014 के अंतिम सप्ताह में नयेनये मुख्यमंत्री बने थे, और जनवरी 2015 आतेआते इन्होंने रांची में मोनो रेल प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी। इसके लिए आइडीएफसी को परामर्शी नियुक्त किया गया। शहर में जल्दी ही मोनो रेल चलाने के प्रस्ताव को पथ निर्माण विभाग की मंजूरी भी मिल गई। विधि विभाग का सहमति भी प्राप्त हो गया।

पहले फेज में रांची शहर के दस किलोमीटर की एरिया में मोनो रेल चलाने की योजना बनाई गई। रातू रोड, मेन रोड, लालपुर, कांटा टोली, बिरसा चौक जैसे व्यस्त इलाकों में मोनो रेल चलाना था, पर आज सच्चाई क्या है?

मोनो रेल चलाने की योजना की हवा निकल चुकी है और उधर पटना में मेट्रो रेल को जमीन पर उतारने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने हरी झंडी भी दिखा दी। छह महीने के अंदर वहां मेट्रो पर काम भी शुरु हो जायेगा, पर झारखण्ड में खुद को बारबार डबल इंजन की सरकार कहनेवाली रघुवर सरकार ने झारखण्ड की जनता के साथ मेट्रो मोनो रेल चलाने के नाम पर बराबर छल किया।

सच्चाई भी यही है कि केन्द्र ने कभी भी झारखण्ड सरकार के इस मांग को तवज्जो नहीं दिया और उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए, पटना को वो चीजे दिला दी, जिसकी पटनावासियों को बहुत वर्षों से इंतजार था, पर झारखण्ड को क्या मिला?

आज भी झारखण्ड की राजधानी रांची यातायात की समस्या से जूझ रही है। कोई ऐसा सड़क नहीं हैं, जहां जाम नहीं लगता हो। कोई ऐसा इलाका नहीं, जहां एम्बूलेंस अगर फंस गया, तो आराम से वह अस्पताल तक समय पर पहुंच जाये।

रघुवर सरकार में इनके होनहार भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों ने लामकाम तो बहुत बांधा, पर इनके लामकाम ने रांची को परेशानी में ही डाला, जिसका सबसे सुंदर उदाहरण हरमू नदी हैं, जिसे इस सरकार ने नदी को नाले में परिवर्तित कर दिया, अगर आप इस हरमू नदी से होकर भूलकर भी गुजर गये तो मेरा दावा है कि आप यहां एक सेकेंड भी नहीं ठहर पायेंगे, क्योंकि गंदगी और बदबू आपको एक पल टिकने नहीं  देगी और सौंदर्यीकरण तो भूल ही जाइये।

कमाल है, बिहार से अलग हुए झारखण्ड में, राज्य निर्माण के बाद रांची में मात्र एक ही ओवरब्रिज बना, वह भी रघुवर दास के कार्यकाल में नहीं, हालांकि दावे तो पांचपांच ओवरब्रिज के किये गये थे, और उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना को ओवरब्रिजों से पाट दिया, कोई भी व्यक्ति पटना जाकर देख सकता है कि वहां की क्या स्थिति हैं, जबकि रांची की स्थिति यह है कि जो पुराना ओवरब्रिज मौजूद हैं, वह कब दरक कर गिर जाये, कुछ कहा भी नहीं जा सकता।

अब सवाल उठता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा और मोदी मान गये, रघुवर दास की बात, मोदी क्यों नहीं मानते? क्या सीएम रघुवर ने जनता के हित में ये बातें केन्द्र के समक्ष रखी या ये जनता के सामने हवाबाजी दिखाते रहे, क्योंकि हमें नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी जनता के वाजिब मांगों को ठुकरा दें।

आज का दिन ऐतिहासिक रहेगा, बिहार के लोगों के लिए कि उन्हें मेट्रो रेल की सुविधा मिल गई और झारखण्ड के लोगों के लिए हमेशा से निराशात्मक दुखद, कि यहां ऐसी सरकार आई, जो सपने तो दिखाई पर उन सपनों को पूरा करने में रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि इस सरकार को तो यहां की जनता से  ज्यादा अपने कनफूंकवों पर विश्वास था, हाथी उड़ाने में ज्यादा दिलचस्पी थी, भला मेट्रो या मोनो रेल चलाने पर कब इसका ध्यान था? जिसकी मांग पर केन्द्र ध्यान भी देती।