अपनी बात

लालू जी, अभी राजनीति का समय नहीं, बिहार को बचाने का समय हैं, जनता का दर्द समझिये…

लालू जी अभी राजनीति का नहीं, बिहार को बचाने का समय हैं, बिहार की जनता के दर्द को समझिये, जिन्होंने आपको वोट देकर आज आपको इस लायक बनाया कि आप गरज रहे हैं, वे संकट में हैं, अभी राजनीति नहीं, केवल बाढ़ पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने का समय हैं, अगर आपने अभी इस दर्द को नहीं समझा तो जान लीजिये 27 अगस्त की रैली में जुटी भीड़ भी, आपको आनेवाले समय में सशक्त नहीं कर पायेंगी, क्योंकि तब यहीं बिहार की जनता बोलेगी कि जब हम दर्द में थे, जब हमारा परिवार बाढ़ से मर रहा था, हमारे सपने टूट रहे थे, और लालू 27 अगस्त की रैली की तैयारी में जूटा था। आपको जो लोग फिलहाल गलत सलाह दे रहे हैं, उनसे बचने की कोशिश करिये, क्योंकि ये आपको डूबा देंगे।


बिहार में बाढ़ ने सैकड़ों जिंदगियां लील ली हैं। कई इलाके ऐसे हैं, जहां बाढ़ की विभीषिका ने ऐसा प्राकृतिक ताडंव किया है, कि लोग दाने-दाने को तरस रहे हैं। कई जिंदगियां अभी भी तबाही के कगार पर हैं। हर दिन लोगों के मरने की खबर, मकान ढहने की खबर, फसलों की तबाही के खबर अखबारों और विभिन्न चैनलों की सुर्खियां बन रही हैं, पर बिहार की प्रमुख राजनीतिक दल राजद को अभी भी 27 अगस्त को पटना में आयोजित होनेवाली उसकी प्रमुख रैली की ही चिंता सता रही हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद जहां एक ओर पटना-रांची कोर्ट का चक्कर लगा रहे है, वहीं दूसरी ओर बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव यानी लालू प्रसाद यादव के होनहार पुत्र अपनी रैली को बेहतर बनाने के लिए एड़ी-चोटी एक किये हुए है।

कमाल हैं, एक ओर जहां बिहार में तबाही का आलम हैं, तो दूसरी ओर राज्य की प्रमुख पार्टी को सत्ता जाने और 27 अगस्त को पटना में आयोजित रैली में कैसे भीड़ जुटान हो? उसकी चिंता सत्ता रही हैं, होना तो यह चाहिये था कि ये बिहार में बाढ़ की विभीषिका को देखते हुए, अपनी रैली को फिलहाल स्थगित करते और अपने सारे कार्यकर्ताओं को बाढ़-पीड़ितों की सेवा में जुट जाने के लिए कहते, पर यहां बाढ़-पीड़ितों की सेवा गौण और राजनीति चमकाना ही इनकी प्राथमिकता हैं, जबकि सच्चाई यह है कि अगर ये बिहार के बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लग जाते तो इन्हें राजनीतिक माइलेज ज्यादा मिलता, पर शायद इन्हें किसी ने कह दिया कि चाहे बिहार में कितनी भी जानें क्यों नहीं चली जाये? पटना में 27 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिखा देना है कि जनता किसके साथ हैं।

मुजफ्फरपुर, सहरसा, पूर्णिया, गोपालगंज, कटिहार तबाह हैं। कटिहार में बाढ़ का आलम यह हैं कि इस रेल मंडल से असम, बंगाल जानेवाली सारी ट्रेनें रद्द कर दी गयी है, नार्थ ईस्ट से शेष भारत का रेल संपर्क पूरी तरह टूट चुका है, पर राजद को इसकी चिंता नहीं। इस इलाके के सारे लोग सड़कों पर जैसे-तैसे रह रहे हैं, वृक्षों व विद्यालयों को अपना आश्रय बनाया है, पर स्वयं को जनता का नेता कहलानेवाले लोगों को फुर्सत नही कि जाकर उनके पास कुछ समय बिताये, उनके दुख और पीड़ा को कम करने का प्रयास करें। राज्य और केन्द्र सरकार अपने दायित्वों का निर्वहण कर रही है, पर ऐसे समय में अगर विपक्ष अपनी जिम्मेदारी निर्वहण करें तो बाढ़ पीड़ितों को राहत मिलने में तेजी आ जाती हैं। कम से कम लालू प्रसाद की पार्टी को चाहिए था कि वे राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मदद का जायजा लेते, सारे अपमान भूल कर केवल बाढ़ पीड़ितों की सेवा को ही ध्यान में रखते तो कम से कम उन सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों पर भी नजर रहती, जो इस विभीषिका में भी अनैतिक लाभ उठाने से नहीं चूकते।

सवाल सिर्फ बाढ़पीड़ितों की सेवा की हैं और कुछ नहीं। उसके बाद जितना ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद को गरियाते रहिये, कौन आपको बोलने से रोक रहा हैं?  लेकिन जो फिलहाल आपको वोट देकर, इस लायक बनाया कि आप गरज रहे हैं, उनके लिए तो कुछ करिये, कि केवल बतकुचन ही करेंगे।

खुशी इस बात की है कि बाढ़ पीड़ितों की सेवा के लिए सेना ने कमान संभाल ली हैं। एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीमें राहत कार्य में जुटी गई है, हालांकि फिर भी जितने इलाकों में बाढ़ का पानी तेजी से फैल रहा हैं, उसमें कठिनाई आना स्वाभाविक है, पर जब हम सारे राजनीतिक स्वार्थ भूलकर केवल सेवा भाव से आगे बढ़ेंगे, तो ये कठिनाइयां भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी, हम लाखों बाढ़-पीड़ितों को बचा लेंगे। खुशी इस बात की भी है कि सरकार ने मिड डे मील जो बच्चों को खिलाया जाता था, उसे बाढ़ पीड़ितों को खिलाने का आदेश दे दिया हैं, पर फिर वहीं बात है कि कही बाढ़-पीड़ितों के नाम पर मिड-डे मील परोसनेवाले गलत बिलिंग न कर दें, क्योंकि बिहार हमारा है, हम बिहार के हैं, बिहार को बनाना, बचाना हम सबकी जिम्मेवारी है।

याद करिये बाढ़ राहत घोटाला बिहार में ही हुआ था। ये घोटाला तभी होता हैं, जब हम अपनी जिम्मेवारी सही समय पर नहीं निभाते, और बाद में सरकार और उनके अधिकारियों पर दोष मढ़ देते हैं। हमें एक मौका मिला है, सेवा का, आइये सभी मिलकर चले बेतिया, दरभंगा, मोतिहारी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज व कटिहार और जो सेना व जवान बाढ़-पीड़ितों की मदद में लगे हैं, उन्हें अपना सहयोग दें, डूबते हुए को हाथ बढ़ाकर बचाने की कोशिश करें, अभी किसी को गाली देने या अपमानित करने का वक्त नहीं, अभी केवल बचाने का काम हैं, बाढ़-पीड़ितों को सेवा देने का काम हैं, बाद में जब सब कुछ सामान्य हो जायेगा तो हमें जिससे लड़ना हैं, लडेंगे और जनता भी सहयोग करेंगी कि हां किसने उन्हें विपरीत परिस्थितियों में सही मदद किया।

हमारा मानना है कि जो बिहार के लोग बिहार या बिहार के बाहर हैं, जो आर्थिक रुप से समृद्ध हैं या आर्थिक रुप से समृद्ध नहीं होने के बावजूद जिनके हृदय में बिहार का दर्द विद्यमान हैं, वे उदारतापूर्वक बिहार बाढ़ राहत कोष में खुलकर दान करें ताकि राज्य सरकार, उन तक सेवा पहुंचा सकें, जिन तक अब तक सेवा नहीं पहुंचाई गई हैं, इस समय हम सभी बिहारियों को एक होकर, बिहार के लिए कुछ करना चाहिए, बस अभी इतना ही याद रखने की जरुरत हैं।