राजनीति

जिस लालू पर बिहार को नाज था, आज उसी ने बिहारवासियों को बहुत बड़ा दर्द दे दिया

लालू प्रसाद यादव को रांची की सीबीआई की विशेष अदालत ने आखिरकार सजा सुना ही दी। लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा और पांच लाख रुपये जुर्माना सुनाई गई है। यह सजा लालू प्रसाद यादव को अंदर तक बेचैन कर दी है। ऐसा बेचैन शायद लालू प्रसाद यादव अपनी जिंदगी में कभी नहीं हुए होंगे। एक तरफ उनके परिवार के कई सदस्यों पर विभिन्न राष्ट्रीय जांच एजेंसियों की नजर और दूसरी ओर उनको सजा सुना दिया जाना, लालू प्रसाद यादव के मन को बहुत बड़ा धक्का पहुंचाया। ये धक्का उनके चाहनेवालों को भी लगा है। शायद यहीं कारण है कि उधर रांची की सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें सजा सुनाई और दूसरी ओर उनकी बिहारवासियों के नाम संदेश ट्विटर पर देखने को मिला।

इस संदेश में लालू प्रसाद यादव ने अपनी जिंदगी के कुछ क्षणों को याद करते हुए, बिहारवासियों को बताया है कि उन्होंने कैसे अपनी पूरी जिंदगी दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के लिए लगा दी? पर वे यह लिखना भूल गये कि वहीं बिहार की जनता ने उन्हें बहुत प्यार भी दिया, माथे पर बिठाया, और नाना प्रकार के यातना सहने के बावजूद, उन्हें अपना हीरो माना। ये सही है कि सामाजिक न्याय के पुरोधा के रुप में वे उभरे, पर यह भी सच्चाई है कि वे भ्रष्टाचार में भी अच्छे-अच्छों को मात दी। वे भूल गये कि जिस परिवारवाद के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन छेड़ा, जिन जय प्रकाश नारायण का नाम लेना वे नहीं भूलते, उन जयप्रकाश को भी उन्होंने धोखा दिया और वे परिवारवाद की सारी गरिमाओं को लांघ गये और जब वे पहली बार जेल पहुंचे तब अपनी पत्नी रावड़ी देवी को बिहार के सिंहासन पर बैठा दिया।

पूरा बिहार जातिवाद की भीषण लड़ाई को झेलता रहा। जब तक सत्ता में रहे गांधी मैदान में जातिवादी रैलियां ही होती रही, यहीं नहीं जिस जनता दल और वीपी सिंह की ये दुहाई दे रहे हैं। उस जनता दल को भी उन्होंने विदा कर दिया और अपनी नई पार्टी बना ली, जिसका नाम रखा – राष्ट्रीय जनता दल। इस राष्ट्रीय जनता दल में भी परिवारवाद ही हावी रहा, क्योंकि मकसद भी परिवार को संरक्षित करना था। जरा लालू प्रसाद यादव बताये कि बिहार में उनके परिवार ने पन्द्रह वर्षों तक शासन किया, बिहार के लोगों को क्या दिया? बिहार की सत्ता जब हाथ से फिसलने का खतरा देखा तो बिहार तक को बंटवा दिया।

आज भी जो लालू प्रसाद यादव के नाम पर संदेश जारी हुआ है, हालांकि हमें पता है कि ये लालू प्रसाद यादव ने नहीं लिखा, पर जिसने भी लिखा, वह बताये कि लालू के इस संदेश में वीपी सिंह तक आ चुके हैं, पर महात्मा गांधी क्यों नहीं?  सरदार पटेल क्यों नहीं?  जवाहर लाल नेहरु क्यों नहीं, लाल बहादुर शास्त्री क्यों नहीं?  दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, अतिपिछडों की बात करते हो, उनकी बाते क्यों नहीं करते, जो सवर्ण होकर भी दलितों से बदतर जिंदगी जी रहे है, उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?  आप इतने संकुचित क्यों हो? आप ये क्यों नही समझने की कोशिश कर रहे कि तुम्हे जो सजा मिली है, उस सजा से वह भी उतना ही हैरान है कि जिस चारा घोटाला में आपको सजा मिली, वह चारा घोटाला तो कुछ लाखों या करोड़ों का हैं, पर जिसने अरबों-खरबों डकार लिये, वे अदालत के चौखटों से बाइज्जत कैसे बरी हो जाते है?

लालू प्रसाद यादव, अभी भी वक्त है, ये आपको डिसाइड करना है, कि आप किस वर्ग का नेता बनना चाहते है, पूरे बिहार का या एक खास जाति का। अगर पूरे बिहार का नेता बनना है, तो आपको सभी को गले लगाना होगा, चालाकी छोड़नी होगी, परिवारवाद से उपर उठना होगा, भ्रष्टाचार से मुक्ति पानी होगी और अपने बच्चों को भी कहना होगा, कि ईमानदारी से दो रोटी कमाओ, ठीक उसी प्रकार जैसे एक वंचित परिवार का बच्चा रोटी कमाता है, फिर देखिये कि वहीं बिहार आपको कहां पहुंचाता है, नहीं तो जो नतीजा सामने आ रहा हैं, वे सभी देख रहे हैं, आप रोते रहिये, वक्त किसी का नहीं होता, पर वक्त सभी पर मेहरबान होता है, जब वक्त आप पर मेहरबान था, तब आपने वक्त की कदर नहीं की, अब पछताने से क्या होगा?

हां, आपने कुछ बाते अपने संदेश में ऐसी लिखी है, जो सभी को चौका रहा है, उस सवाल में दम भी हैं, आपने भाजपा को चुनौती दी है, अच्छा लगा, क्योंकि भाजपा कोई दुध की धूली पार्टी नहीं है। लोकतंत्र में आपका मजबूत होना बहुत ही जरुरी है, क्योंकि बिहार के एक नेता नीतीश कुमार ने भाजपा के शरण में जाकर अपनी इतिश्री कर ली है, और मैं इसके लिए भी आपको जिम्मेवार मानता हूं क्योंकि कोई भी व्यक्ति या नेता आपके कारण भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबकी लगाकर अपना कैरियर जेल में समाप्त करना नही चाहेगा।

अभी भी वक्त हैं चिन्तन करिये, क्योंकि मैं जानता हूं कि आप क्या है? आप में ताकत हैं कि आप बिहार की जनता का मार्गदर्शन कर सकते हैं, पर इसके लिए आपको अपने परिवार से उपर उठना होगा, पूरे बिहार के लोगों को अपना परिवार मानना होगा,  जो गलत हैं, उन्हें गलत कहना होगा। ये नहीं कि उसकी जाति पूछकर, उसे बेइज्जत करना आप शुरु करें, जैसा कि आपने पूर्व में किया? इधर आपके ट्विटर संदेश का क्या असर पड़ेगा, ये वक्त बतायेगा पर आप इसे समझने की कोशिश करिये कि आप बिहार और बिहार के वंचितों के लिए खासमखास है, आप स्वयं पर ध्यान रखिये, आप बिहार ही नहीं, आप उन सब के नेता है, जिन्होंने सचमुच में गरीबी देखी और गरीबी से संघर्ष करते हुए ऊंचाई को पाया।