अपनी बात

बहुत वर्षों बाद दीखे लाल बहादुर शास्त्री केन्द्र सरकार के विज्ञापनों में अपने पुण्य तिथि पर

11 जनवरी 1966, आज ही के दिन हमारे देश के प्रिय पूर्व प्रधानमंत्री, भारत मां के लाल, सही मायनों  में भारत रत्न, लाल बहादुर शास्त्री का निधन रुस के ताशकंद में हो गया था। उनकी सादगी, उनकी देशभक्ति, उनकी गांधीवादी मनोवृत्ति पर भला कौन दल अंगूली उठा सकता है। मैं इक्यावन साल में हूं। कई अखबारों व चैनलों में काम किया हूं। बचपन से जब से मैने होश संभाला, आज तक मैंने कभी लाल बहादुर शास्त्री का उनके पुण्य तिथि के दिन सरकारी विज्ञापन अखबारों में नहीं देखा।

आज पहली बार जब केन्द्र सरकार द्वारा जारी विज्ञापन एक अखबार में देखा हूं, मन प्रसन्न हो गया, ये जानकर की, इस कृतज्ञ राष्ट्र ने अपने महान सपूत को उनके पुण्य तिथि के दिन याद तो किया। आम तौर पर लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवस के दिन तो लोग सिर्फ महात्मा गांधी को ही याद कर इतिश्री कर लेते है, शायद ही देश का कोई कोना उस दिन लाल बहादुर शास्त्री को याद करता है, और अगर याद करता भी होगा, तो उनकी संख्या अंगुलियों में गिनने लायक ही होगी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार उनके पुण्य तिथि पर जो विभिन्न अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवा कर लाल बहादुर शास्त्री को भावभीनी श्रद्धाजंलि देने का काम किया है, उससे यह फायदा जरुर हुआ कि आज के युवा इस विज्ञापन के माध्यम से लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने की कोशिश अवश्य करेंगे कि आखिर रुस के ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत कैसे हो गई?  वे अपने महापुरुषों को इस माध्यम से जरुर याद करेंगे, तथा उनके जैसे बनने का प्रयास अवश्य करेंगे, ऐसे भी जरुरत है इसी प्रकार के प्रयास को आगे बढ़ाने की, क्योंकि देश में अगर सर्वाधिक किसी चीज का संकट है, तो वह हैं – चरित्र का, जो धीरे-धीरे पूरे देश से समाप्त होता जा रहा हैं और इसे समाप्त करने में लोकतंत्र के सभी स्तंभ लगे हुए हैं।