नेताओं के चरणोदक पीनेवाले और खुद को चॉकलेटी कहलवानेवालों के इस युग में अच्छे पत्रकारों का अभाव

एक घटना – एक बार एक राज्य के मुख्यमंत्री ने एक चॉकलेटी पत्रकार को अपने बांहों में भर लिया, उस चॉकलेटी पत्रकार ने बड़े ही गर्व से उस पल की एक सेल्फी ले ली, और आकर हमें दिखाया, देखिये सर, मुख्यमंत्री ने मुझे अपने बांहों में भर लिया, जब मैंने उस सेल्फी ली गई फोटो को देखा, तो आश्चर्य से भर गया, और कहा कि यह फोटो हमें दिखा दिया तो दिखा दिया, और किसी अन्य को मत ही दिखाना, नहीं तो लोग क्या समझेंगे? वो तुम नहीं समझ सकते।

उस पत्रकार की उस वक्त के सीएम से खूब पटती थी, इतनी पटती थी कि पूछिये मत, वह इस बात को लेकर खुब इतराता था कि उसकी उस सीएम के साथ खुब पटती हैं, सीएम के आगे-पीछे करनेवाले अधिकारियों से भी उसके मधुर संबंध हो चुके थे, वह जहां उन अधिकारियों से मिलता, वे अधिकारी उस पर बड़ा ही प्रेम लूटाते, पर जो अधिकारी उस पत्रकार पर प्रेम लूटाते, वह हमें देखते ही भाग खड़े होते या अगल-बगल देखने लगते, फिलहाल वो पत्रकार आज भी एक अच्छे पोजीशन पर हैं, वह खुद को आज भी तीस मारखां से कम नहीं समझता, और उसे सभी मुख्यमंत्रियों से अच्छी पटी, कारण स्पष्ट हैं, चॉकलेट किसे पसन्द नहीं,  मतलब समझते रहिये।

दूसरी घटना – बिहार में एक नये-नये पत्रकार बने एक रिपोर्टर को मैंने देखा कि वह राज्य के एक दबंग मुख्यमंत्री से जब भी मिलता, तो उसका चरण छूना नहीं भूलता, बिना चरण छूए तो वह हिलता ही नहीं था, जब उसकी शादी हुई तो हमने देखा कि उसकी शादी में वह मुख्यमंत्री उसके घर गया, फोटो खिंचाया, उक्त पत्रकार ने शादी में भी उनके साथ सेल्फी ली, और अलग से अपने फोटोग्राफरों को विभिन्न मुद्रा में फोटो खींचने को भी कहा।

तीसरी घटना – जब मैं धनबाद में था, तो कई पत्रकारों को देखा, जो कोयला माफियाओं के यहां जाकर, उनका चरण दबाते, उनकी जी-हुजूरी करते, आज भी करते हैं, और उसका फायदा उठाते हैं, आज भी रांची में कई पत्रकार हैं, जो विभिन्न नेताओं के यहां जाकर उनसे समय-समय पर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते तथा अपने अखबारों व चैनलों पर कृपा रखने की प्रार्थना करना नहीं भूलते, इन पत्रकारों के घरों में होनेवाली शादी-ब्याह में कैसे आइएएस-आइपीएस और नेताओं का समूह पधारें, अब तो इसके लिए भी तिकड़म लगाये जाने लगे हैं, ताकि उस पत्रकार का स्टेटस पता चल सकें।

एक संपादक को मैं जानता हूं, उनके यहां एक कार्यक्रम था, और जब कोई नेता या आइएएस और आइपीएस नहीं पहुंचा ( वो संपादक किसी को अपने यहां बुलाया भी नहीं था), तब उसके मालिक ने संकल्प कर लिया कि उसे अपने यहां संपादक नहीं रहने देना हैं, वह मालिक तुरन्त एक अखबार के संपादक के यहां गया, बातचीत की, और उसे वहां से हटाकर एक नये अनफिट को अपने यहां फिट कर दिया।

आप कहेंगे कि मैं ये सब क्यों लिख रहां हू, जनाब लिखना जरुरी हैं, अपना चेहरा देखना बहुत ही जरुरी हैं, जब तक देखेंगे नहीं आपके चेहरे पर कितनी कालिख पुती हैं, वह कैसे पता चलेगा? हाल ही में रांची प्रेस क्लब में कांग्रेस के झारखण्ड प्रभारी आरपीएन सिंह पहुंचे थे, वे संवाददाता सम्मेलन कर रहे थे, संवाददाता सम्मेलन हो चुकने के बाद कई लोग, अपने बूम लेकर गणेश परिक्रमा कर रहे थे, पर किसी के पास ऐसे सवाल नहीं कि वह आरपीएन सिंह को अपने प्रश्न से प्रभावित कर सकें अथवा उन्हें अपने प्रश्नों के मकड़जाल में फंसा सकें।

उस दिन रांची प्रेस क्लब में इतनी भीड़ थी कि पूछिये मत, पर उस पत्रकारों की भीड़ में एक ही दो पत्रकार हमें ऐसे मिले, जो भीड़ से अलग थे, कहां भी जाता है कि जो भीड़ से अलग दिखे, वहीं पत्रकार हैं, जो भीड़ का एक हिस्सा बन गया, वो पत्रकार कहां? मैंने देखा कि एक-दो युवा हंसमुख और प्रतिभावान युवा पत्रकार आनेवाले भविष्य के धरोहर के रुप में दिखे, जिन पर विश्वास किया जा सकता हैं, खूब हमसे मिले, बातचीत की, आनन्द उठाया तथा उनके पत्रकारीय जीवन के अनछूए पहलूओं पर चर्चा की।

आज भी कई जगहों पर दाढ़ीवाले बाबा पत्रकार जूटे, खूब अपने स्वाभावानुसार भाषण दिये, ये दाढ़ीवाले बाबा पत्रकार सरकारी चैनलों व सरकारी वाणियों में खूब दिखते हैं, क्योंकि इन सरकारी चैनलों व वाणियों वालों के कार्यक्रमों में नये युवाओं का स्थान नहीं होता, और न ही ये दूसरे को भाव देते हैं, क्योंकि ले-दे की संस्कृति से ओत-प्रोत इन वाणियों व चैनलों में वह सब कुछ होता है, जिसे आप भ्रष्टाचार कह सकते हैं।

कमाल है, जैसे गांवों मे कहा जाता है कि जितना बड़ा दाढ़ी, जितना बड़ा टीका, उतने बड़े पंडित, ठीक उसी प्रकार पत्रकारिता में भी जितना बड़ा दाढ़ी, उतने बड़े पत्रकार, फिर देखिये आपकी कितनी चलती हैं, लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आप कितना भी चालाकी कर लीजिये, कितना भी विभिन्न सभाओं में अपने झूठे पांडित्य से लोगों को बरगला लीजिये, जनता की नजरों में आप क्या हैं, आपकी कीर्तियां बता चुकी हैं।

भारतीय प्रेस दिवस के दिन आज एक ही युवा पत्रकार ने हमें फोन किया, उसने हमें बधाई दी, मैंने भी दिल खोलकर उसे आशीर्वाद से सिंचित किया, मैं जानता हूं कि वह कभी अपने पत्रकारीय जीवन में विष नहीं घोलेगा, वह हमेशा देश और राज्य तथा जनहित में पत्रकारिता करेगा, जिससे देश व राज्य की जनता खुशहाल होगी। सचमुच उन सारे लोगों को बधाई, जिन्होंने पत्रकारीय जीवन को अपनाया और बिना किसी लाग-लपेट के पत्रकारिता की, तथा डंके की चोट पर सत्य को सत्य कहा तथा अनैतिक कार्यों में लिप्त लोगों को बढ़ाने का काम नहीं किया।

ऐसे भी हरिजन पत्रिका का संपादन करनेवाले गांधी तथा मूकनायक का संपादन करनेवाले अंबेडकर की तरह जो अपने कार्यों को आगे बढ़ाये, जो पत्रकारिता रुपी जीवन मूल्य को सच करने के लिए, कदम बढ़ाएं, वहीं पत्रकार है, तथा उसे ही भारतीय प्रेस दिवस के कार्यक्रमों में जाने का हक हैं, उसे ही बधाई लेने तथा देने का विशेष अधिकार हैं, बाकी लोग क्या हैं, वह खुद समझ लें।