कितना भी जोर लगा लो भाजपाइयों, मधुपुर से जीतेगा तो तीर-धनुष छाप ही

आखिर कौन जीतेगा मधुपुर विधानसभा का उपचुनाव – झामुमो या भाजपा? यह प्रश्न पूरे झारखण्ड में इन दिनों हर व्यक्ति के मन में उमड़-घुमड़ रहा हैं और लोगों को परेशान भी कर रहा है। भाजपा को लगता है कि बंगाल व असम में हो रहे विधानसभा चुनाव का इस मधुपुर उपचुनाव पर भी असर पड़ेगा, पर ऐसा दिख नहीं रहा, अगर ऐसा होता तो भाजपा पिछली बार आजसू से चुनाव लड़ चुके और तीसरे स्थान पर रहे आयातित प्रत्याशी गंगा नारायण सिंह को आनन-फानन में भाजपा की सदस्यता नहीं दिलाती और न ही उसे मधुपुर से खड़ा करती।

चूंकि भाजपा की दिव्य सोच है कि गंगा नारायण सिंह आजसू से खड़ा होकर पिछली बार के विधानसभा चुनाव में अच्छी खासी वोट लाये और तीसरे स्थान पर रहे, ऐसे में भाजपा का वोट और गंगा का वोट को मिला दिया जाये, तो भाजपा की यह सीट पर आसान जीत हो जायेगी, पर भाजपा को नहीं मालूम कि भाजपा के कार्यकर्ताओं के माथे चढ़कर कितना भी गंगा जोर लगा लें, मधुपुर से उनकी जीत आसान नहीं है, तब ऐसे हालात में कौन जीतेगा, तो निश्चय ही उसका सही उत्तर है, दिवंगत हाजी हुसैन अंसारी के बेटे मंत्री हफीजुल अंसारी।

वह इसलिए नहीं, कि वे कोई तीसमार खां हैं, बल्कि भाजपा ने एक ऐसे व्यक्ति को हफीजुल अंसारी के सामने खड़ा कर दिया कि भाजपा में ही भूचाल है, और यही भूचाल भाजपा को हराने के लिए काफी है और यह तब तक रहेगा, जब तक मधुपुर में विधानसभा चुनाव नहीं संपन्न हो जाता। ऐसे भाजपा को भी मालूम हो चुका है कि उसने जिस सोच के साथ गंगा को खड़ा किया है, अब उस गंगा को जीत दिलाने में उनके ही क्षेत्रीय व स्थानीय नेताओं के तेल निकलने शुरु हो चुके हैं।

इसलिए वे ऐसे-ऐसे बयान दे रहे है कि उनकी बयान ही, उन्हें हंसी का पात्र बना दे रही है, जैसा कि एक बयान सर्वविदित है –  “मधुपुर सीट भाजपा को दें, 10 मई तक नई सरकार” यह बयान है- बाबू लाल मरांडी का, जिसे उन्होंने शेखपुरा के रामलीला मैदान में दिया। अब ये बात उन्होंने किस शोध के अनुसार कह दिया, ये वही जाने। नेताओं का क्या है – वे बोलते कुछ और करते कुछ है, इस बात को जनता भी जानती है, इसलिए वह इन नेताओं के भाषणों व वक्तव्यों को भाव नहीं देती।

क्योंकि वह जानती है कि कोई भी जीते, जीतने के बाद वे वहीं करेंगे, जो उन्हें करना है, जैसे अपने लोगों को सही जगह पहुंचाना, उनको मजबूत करना तथा सात पुश्तों के लिए एक बेहतर इन्तजाम कर देना, ताकि उन्हें किसी चीज की कोई कमी न हो, चाहे वे सांसद-विधायक रहे या नहीं रहे। हमारे देश में तो जो विधायक व सांसदों के कोटे हैं, उसमें तो किसी नेता को कुछ बोलने की जरुरत ही नहीं होती, स्वयं ही उनका फिक्सड जो कमीशन होता है, उन्हें प्राप्त हो जाता है, इसलिए इनसे देश-सेवा की बात करना ही बेमानी है।

अब बात झामुमो की। झामुमो यहां से अवश्य जीतेगी, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं। ऐसा भी नहीं कि झामुमो के आने से राज्य में एक बेहतर माहौल बन गया है या राज्य प्रगति के रास्ते चल चुका है। हां, सरकार बनने के बाद कोरोनाकाल में जो हेमन्त सरकार ने काम किये, उसकी जितनी ही प्रशंसा की जाय कम है, पर सच्चाई यह है कि 2021 की शुरुआत के बाद से राज्य का खास्ताहाल है।

अब आप यह भी कह नहीं सकते कि इसके लिए पिछली सरकार जिम्मेवार है, क्योंकि आपको जनता ने पूर्ण बहुमत दिया है, पर कांग्रेस व राजद के मंत्रियों पर तो इनकी पकड़ ही नहीं है, और जो इनके विधायक है वे भी इनके नाक में दम कर रखे हैं, जो उनका हक भी बनता है, क्योंकि जो दावे उन्होंने पूर्व में कर रखे हैं, जनता से, तो जनता तो पूछेगी ही कि आप कर क्या रहे हो? विधानसभा में उसकी झलक देखने को भी मिली, जब विपक्षी विधायकों के साथ-साथ सत्तारुढ़ दल के विधायकों ने भी सरकार में शामिल मंत्रियों की नकेल कस दी।

राज्य में कानून-व्यवस्था तो खत्म है ही। अगर आप सत्तारुढ़ दल से जुड़े हैं तो घबराइये नहीं, रघुवर शासनकाल की तरह ही आप किसी को भी फंसा सकते हैं, सीएमओ में बैठे लोगों की तरफ से आपको हरी झंडी भी मिल जायेगी और घर बैठे अच्छे-अच्छे लोगों को पानी पिला सकते हैं, कोई बोलनेवाला नहीं। अगर लड़कियां हैं तो उनके साथ कब और कहां गलत हो जायेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं। पांच लाख लोगों को रोजगार मिल ही गया, वो तो बेरोजगार ही जानते हैं।

आदिवासी-आदिवासी चिल्लानेवाले लोगों के राज्य में डीके तिवारी और अमिताभ चौधरी जैसे लोगों की लॉटरी निकल चुकी है, अमिताभ चौधरी को तो जानते ही होंगे, जो कभी कंघी तो कभी कमल और अब तीर-धनुष की सहायता से सीधे जेपीएससी के अध्यक्ष तक बन गये। अतः ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं, कोई किसी से कम नहीं है, भाजपा और झामुमो दोनों में समानता है, पर लड़ तो दोनों रहे हैं, इसलिए जीतेंगे दोनों में से एक। पर जनता ने तो निर्णय कर लिया है – इस बार जीता दो, हफीजुल को, लेकिन जब विधानसभा के जब कभी मध्यावधि चुनाव के आसार नजर आये तो नई सरकार बनायेंगे और वो नई सरकार कौन होगी, निश्चय है कि वो झामुमो की नहीं होगी।

क्योंकि जहां सरकारी महिला अधिकारी का सम्मान ही सुरक्षित नहीं, वो सरकार या सरकार में शामिल लोग किस का सम्मान सुरक्षित करेंगे, फिलहाल वे तो उन लोगों के साथ मिलकर अपना सेहत सुधार रहे हैं, जिन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव में इनके लोगों को टेटुआ पकड़कर, रघुवर के कदमों से ताल से ताल मिलाते हुए गाना गा रहे थे – ताल से ताल मिला…ताल से ताल मिला…।

अतः इस बार फिर तीर-धनुष, लेकिन उसके बाद तीर-धनुष नहीं, यह भी शाश्वत सत्य है, क्योंकि तीर-धनुष वालों ने खुद ही अपने कामों से अपनी पार्टी के भविष्य के लिए गड्ढा खोद कर रख दिया है, वे जो आज कर या करा रहे हैं, उन्हें पता ही नहीं कि इसका दुष्परिणाम उनके भविष्य के लिए कितना खतरनाक होता जा रहा है, खैर, अंतिम बधाई हम हेमन्त सोरेन को दे रहे हैं, लेकिन इसके बाद की बधाई देने में हम दस बार सोचेंगे, क्योंकि हम देख रहे हैं, सीएमओ में बैठे लोगों ने हेमन्त सोरेन के आगे इतनी बड़ी खाई खोद दी है कि इस सरकार का उस खाई में गिरना तय है, और इसके लिए जिम्मेवार सिर्फ दो ही व्यक्ति है, अगर सीएम हेमन्त जानना चाहेंगे तो बता देंगे, नहीं तो मुझे क्या पड़ी है… कोई भी राजा बने, हमें कौन सा लाभ होनेवाला है?

हां, सुनने में आया है कि मधुपुर सीट पर फिर से कब्जा करने के लिए, झामुमो ने अपने केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति व विधायक दल की बैठक तीन अप्रैल को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के आवास पर बुलाई है, जिसमें मधुपुर सीट को लेकर विशेष चर्चाएं होंगी। यानी एक दिन का पुरा मेला मुख्यमंत्री आवास पर लगेगा, जहां बड़े-बड़े अखबारों-चैनलों व पोर्टलों की भारी भीड़ जुटेगी, पर उस भीड़ में आपका विद्रोही24 नहीं होगा, क्योंकि वो जानता है कि उक्त दिन वहां क्या होगा?