भला गोविंदा, कान्हा की मटकी क्यों फोड़ेंगे?

अरे भाई कान्हा कब से मटकी लेकर इठलाने लगे? कि गोविंदाओं को कान्हा की मटकी फोड़ने की जरुरत पड़ गई। क्या गोविंदा और कान्हा, अलग-अलग हैं, सुबह से माथा खराब हो गया हैं मेरा। एक अखबार है, आंदोलनवाला। इसमें गजब की होनहारों की टीम हैं, जो बेसिर-पैर की हेडिंग लगा देती है और जनता कन्फ्यूज्ड।

हमें लगता है कि शायद इन्हीं कारणों से अपने शर्मा जी बार-बार मुझसे कहते हैं कि भाई, मैं अखबार अब पढ़ने के लिए नहीं लेता हूं, पढ़ने के अलावे और जितने भी काम इससे हो सकते हैं, सफाई के। उसमें इसका इस्तेमाल कर लेता हूं, क्योंकि इसके पढ़ने से अपना दिमाग खराब करने से अच्छा है कि अखबार का सकारात्मक सदुपयोग कर लिया जाय। शर्मा जी की ये बाते कभी-कभी मेरे लिए दवा का काम कर देती है और फिर मैं मुस्कुरा देता हूं।

चूंकि भारत पूर्णतः भौतिकता युग में प्रवेश कर, पूरे विश्व में अपना अलग पहचान बनाता जा रहा हैं। अब यहां के लोगों की प्राथमिकता त्याग, मर्यादा, गुण और कर्म नहीं, बल्कि पूर्णतः आरामदायक और विलासिता संबंधी आवश्यकताओं में आजीवन डूबोये रखना हैं, इसलिए ये हमारी परंपराओं, संस्कृतियों और विरासत आदि में भी भौतिकता को स्थापित कर रहे हैं, जिसका नतीजा है कि अब इन्हें गोविंदाओं और कान्हा में भी अंतर नजर आने लगा हैं।

इसका प्रभाव यह हैं कि राधा की मटकी और गोपिकाओं की मटकियों में इन्हें कान्हा की मटकी नजर आ रही है, कहने को तो ये थोथी दलील भी दे सकते है कि कान्हा, राधा और गोविंद सभी एक हैं, पर जब उनकी थोथी दलीलों का जवाब देते हुए आप ये कहे कि तुमने फिर ये क्यों नहीं लिखा कि कान्हा ने कान्हा की मटकी फोड़ी, तो फिर ये बगलें झांकने लगेंगे।

सवाल यह हैं कि इन दिनों हमारी प्राचीन परंपराओं व संस्कृतियों को अधकचरे लोगों ने बर्बाद करना शुरु कर दिया है, जिससे हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ी दोनों प्रभावित हो रही हैं, और इससे बचाना हम सब का फर्ज बन जाता है, इसलिए अपने बच्चों को ऐसे अधकचरे समाचारों अथवा अखबारों से दूर रखें ताकि उनका बाल मन प्रभावित न हो सकें और वे सत्य में अपने महान पूर्वजों के सत्य रुप का भान कर सकें।

One thought on “भला गोविंदा, कान्हा की मटकी क्यों फोड़ेंगे?

  • August 17, 2017 at 1:22 pm
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    बहुत सही..
    अर्धज्ञान का प्रचार समाज को विषपान कराने जैसा है..
    सार्थक लेख.
    प्रणाम।

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