जरा सोचिये, अगर पत्थलगड़ी समर्थक कड़िया मुंडा को अगवा कर लेते तो क्या होता?

जो पत्थलगड़ी समर्थक भाजपा सांसद कड़िया मुंडा के तीन अंगरक्षकों को अगवा कर सकते हैं, क्या वे भाजपा सांसद एवं पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा को अगवा नहीं कर सकते थे, जो राज्य सरकार के समान्नांतर सत्ता चला रहे हैं, जो अपने इलाकों में किसी को भी प्रवेश करने नहीं देते, जहां पुलिस को जाने में जद्दोजहद करनी पड़ती है, जिस पुलिस को यहां तक नहीं पता कि उनके अगवा हुए तीन जवान कहां रखे गये हैं, उन पत्थलगड़ी समर्थकों की ताकत का अंदाजा आप लगाइये।

आखिर उनकी ये ताकत कैसे बढ़ी? उन्हें इस स्थिति में कौन लाया? जो आज सरकारी बैंकों की जगह अपना बैंक, अपने विद्यालय, अपनी व्यवस्था तक की बात कर रहे हैं और लगातार राज्य व केन्द्र सरकार को चुनौती दे रहे हैं, इसका जवाब खुद कड़िया मुंडा ने दिया है कि जब आप फुंसी को फोड़ा बनने देंगे तो यहीं होगा, जो आप देख रहे हैं, जब पत्थलगड़ी समर्थक अपने छुपे हुए एजेंडे को बड़ी ही सुनियोजित ढंग से लागू कर रहे थे, तो सरकार की पुलिस और उनके लोग सोए हुए थे, और जब पत्थलगड़ी समर्थकों ने अपना असली रुप दिखाया तो लीजिये, अब लेने के देने पड़ गये।

जहां पांच महिलाओं के साथ अमानवीय हरकतें हुई, दुष्कर्म हुआ, वहां आज तक पुलिस नहीं पहुंची, उलटे आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास की तर्ज पर दुष्कर्मियों को न खोजकर, अपने अपहृत जवानों को खोजने में लग गई और ग्राम सभा के सदस्यों के आगे नाक रगड़ती नजर आई। इधर पुलिस की लाठी चार्ज और एक की मौत के बाद भी खूंटी में पत्थलगड़ी समर्थकों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा, वे आज भी डंके की चोट पर पुलिस से उलझने को तैयार है, तथा नये-नये पैतरे बनाने में लगे हैं, और पुलिस को उलझा कर रख दिये हैं।

सूत्र बताते है कि पत्थलगड़ी समर्थकों के हौसले बुलंद होने का मूल कारण, प्रशासन में बहुत बड़ा छेद होना है। सच्चाई यह है कि झारखण्ड पुलिस के लिए काम कर रहे आइपीएस हो या साधारण दारोगा या अन्य जवान, कोई भी नक्सलियों के बेल्ट में काम करना नहीं चाहता, क्योंकि सब को जान के लाले पड़े रहते हैं, इसलिए जिसके पास जो भी पैरवी रहता है, वह उस पैरवी का इस्तमाल करता हैं और नेताओं के साथ मिलकर, वह उन शहरी क्षेत्रों में रहना पसंद करता हैं, जहां वह मस्ती में रह सकें, अगर किसी का परिवार का व्यक्ति बहुत बड़े पद पर हैं, तो वह बड़े ही घमंड में रहकर, अपना जीवन आराम से चला रहा होता है, तथा मलाईदार पद को सुशोभित करता रहता है, जिसका उदाहरण आज भी यहां देखा जा सकता है, आज भी झारखण्ड में सर्वौच्च पद पर बैठे एक पुलिस पदाधिकारी के परिवार के एक सदस्य को रांची में पूरे घमंड के साथ मस्ती में डूबा हुआ, आप देख सकते हैं। कहने का मतलब हैं कि  जहां ऐसे रणबाकुंड़े पुलिस में भर्ती होंगे, वे पत्थलगड़ी समर्थकों से क्या लड़ेंगे और उन पर क्या विजय पायेंगे? आप सोच सकते हैं।

यहीं नहीं, जिस आइएएस या आइपीएस का बदली खूंटी के इलाके में हुआ, उसे आप देखेंगे कि वह अपने परिवार को रांची में रखेगा तथा स्वयं अपनी सुविधानुसार रांची से खूंटी या खूंटी से रांची आया जाया करेगा, यानी इन आइएएस और आइपीएस बने लोगों को खूंटी की जनता से कितना खौफ रहता है, वह समझा जा सकता हैं, जबकि वहीं का ग्रामीण बहुत ही आराम से इधर से उधर, यत्र-तत्र-सर्वत्र घूमते हुए देखा जा सकता हैं। आखिर इसकी वजह क्या हैं? वहीं पुलिस रांची में शान बघार रहा हैं और वहीं पुलिस खूंटी जैसे इलाकों में मिमिया क्यों रहा हैं?  क्या राज्य की जनता इतनी बेवकूफ हैं?

सच्चाई यह है कि पूरे राज्य की स्थिति बहुत ही खतरनाक हैं, बोलने को तो हमारे नेता खुब बोलेंगे कि हमने नक्सलियों के कमर तोड़ दिये हैं, पर बूढ़ा पहाड़ में नक्सलियों ने जिस प्रकार माइन विस्फोट कर छः जवानों को शहीद कर डाला, वह बताने के लिए काफी है कि नक्सलियों के कमर टूटे हैं या मजबूत हैं। पूरे राज्य में नक्सलियों, पत्थलगड़ियों और असामाजिक तत्वों का बोलबाला हैं, कहीं पर भी, इन पुलिसकर्मियों का दबदबा नहीं दिखता। पुलिस का दबदबा फिलहाल सीएम के खिलाफ लिखनेवालों पर दिखता हैं, वे ऐसे युवाओं को झूठे मुकदमे में फंसाने में ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं,  निर्दोषों को फंसाने में ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं, और इसमें सीएमओ, वरीय पुलिस पदाधिकारी तथा अखबारों-चैनलों के पत्रकारों का एक नापाक गठजोड़ भी शामिल हैं। जो ऐसे लोगों को बेवजह तबाह करने में लगे हैं।

फिलहाल इधर पत्थलगड़ियों की नई फौज ने सभी के नाक में दम कर दिया हैं, जिन पर पत्थलगड़ी एवं दुष्कर्म का आरोप हैं, उन्हें पकड़ना तो दूर, अपने जवानों को सकुशल बरामद करने में, झारखण्ड पुलिस के बदन के पसीने छूट रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाये, तो राज्य की स्थिति बद से बदतर हो गई। हाथी उड़ानेवाले लोगों को अब जनता स्वयं उड़ने को बाध्य करने में अब लग गई हैं, बस अब ज्यादा दिन दूर नहीं, क्योंकि 2019 नजदीक ही हैं।