जरा दिमाग पर जोर डालिये और सोचिए, अगर राहुल कोई IPS या भाजपा नेता होता तो क्या फैसला आता?

जनता बहुत भोली होती है, और झारखण्ड के पुलिसवाले उससे भी ज्यादा भोले होते हैं, जरा देखिये न कल अदालत ने इंजीनियरिंग छात्रा से दुष्कर्म व हत्या के एक मामले में दोषी राहुल को फांसी की सजा क्या सुना दी? सभी खुश है, पर ये भूल गये कि इसके ठीक एक दिन पहले निचली अदालत ने सुचित्रा मिश्रा हत्याकांड के मुख्य आरोपी भाजपा नेता शशिभूषण मेहता को और इस कांड में संलग्न छः लोगों को बाइज्जत बरी कर दिया, वह भी साक्ष्य के अभाव में।

जबकि यह भाजपा नेता खुद संवाददाता सम्मेलन में यही के तत्कालीन एसएसपी साकेत कुमार सिंह से जूते खाने के बाद धुर्वा थाना में कहा था कि हां सुचित्रा मिश्रा की हत्या कराने में उसी की प्रमुख भूमिका है। कमाल है 16 दिसम्बर 2016 की घटना राहुल को सजा मिल गई और इस घटना से संबंधित पीड़ित परिवार को न्याय भी मिल गया, पर सुचित्रा मिश्रा के परिवारवालों का क्या अपराध था?

यही न कि वो आर्थिक व राजनीतिक रुप से कमजोर परिवार था और जिससे उसका परिवार लड़ रहा था, वह आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरफ से मजबूत था, जिसके कारण उसने सिस्टम को जैसे पाया, वैसे नचाया और अदालत से बरी हो गया, जो होना ही था, सबको पता है, क्योंकि जिसको साक्ष्य जुटाना था, वह साक्ष्य को मिटाने, साक्ष्य को अदालत में रखने से बच रहा था, आखिर किसके कहने या किसके इशारे पर ऐसा हुआ?

ये तो यहां के पुलिस महानिदेशक, एसएसपी और धुर्वा थाना के महान ईमानदार कहे जानेवाले पुलिस पदाधिकारी ही बतायेंगे, पर इस दोनों कांडों की साक्ष्य के कारनामें ने झारखण्ड पुलिस के मुंह पर कालिख पोत दी, क्योंकि राहुल को सजा झारखण्ड पुलिस ने नहीं, सीबीआई पुलिस ने दिलवाई, अगर झारखण्ड पुलिस के पास यह जिम्मा होता तो राहुल भी अब तक बच चुका होता, क्योंकि झारखण्ड पुलिस कितनी अक्लमंद हैं, वो झारखण्ड का बच्चा-बच्चा जानता हैं, बकोरिया कांड के प्रभावित परिवार के लोग जानते है और सुचित्रा मिश्रा हत्याकांड का परिणाम से तो यह जगजाहिर हो गया।

यौन-शोषण, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, या महिलाओं के साथ अगर आप कोई भी यहां अत्याचार करते हैं, तो यकीन मानिये, आप आर्थिक रुप से मजबूत रहिये या सत्ता के निकट रहिये या आइपीएस रहिये, आप बेदाग बच जायेंगे, चाहे वह केस कितना भी लंबा क्यों न चलें, चाहे आप उस कांड में संलिप्तता ही क्यों न स्वीकार कर ली हो, झारखण्ड पुलिस के पास आपको बचाने के लिए एक से एक हथियार है। वह अगर आप पर चार्ज फ्रेम भी कर दी हैं, तो घबराने की जरुरत नहीं, आप बचा लिये जायेंगे, लेकिन अगर आप विपक्ष में हैं तो उसकी गारंटी वो नहीं ले सकता।

जरा देखिये बाघमारा की कमला को वह यौन शोषण का आरोप लगाती हैं, भाजपा के एक नेता ढुलू महतो (सीएम रघुवर का चहेता) पर, एक साल हो जाते हैं, पर उसकी प्राथमिकी दर्ज नहीं होती, वह प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाती हैं, तब जाकर एक साल के बाद प्राथमिकी दर्ज होती हैं, और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद क्या एक्शन लिया गया, कहां तक जांच पहुंची, ये जानने के लिए भी हाईकोर्ट को राज्य सरकार को नोटिस जारी करना पड़ता हैं, है न आठवां आश्चर्य?

धनबाद की ही सुषमा बड़ाईक प्रकरण आपको याद होगा, दो चैनलों ने उस वक्त इस समाचार को बखूबी दिखाया था, उस वक्त बड़े आंदोलन भी हुए और बाद में इस कांड का मुख्य आरोपी एक आइपीएस बाइज्जत बरी हो गया, है न आठवां आश्चर्य। इसलिए सुचित्रा मिश्रा के साथ भी हो गया तो क्या हुआ? तुलसीदास ने तो पहले ही लिख दिया कि “समरथ के नहिं दोष गोसाई।” इसलिए बड़े गर्व के साथ इस तुलसी के चौपाई को कंठाग्र कर झारखण्ड पुलिस सत्ता से जुड़े लोगों का सम्मान करने में लगी है, इसलिए ऐसे पुलिसकर्मियों का अभिनन्दन करिये। हो सके तो ऐसे पुलिसकर्मियों को मैग्सेसे पुरस्कार भी दिलवाइये, ऐसा पुरुषार्थी पुलिस कहां मिलेगा भाई?

और अब हम आपको बता देते है, कि जिस पैटर्न को झारखण्ड पुलिस ने अपना रखा हैं, अगर उस पैटर्न पर राहुल अगर फिट होता तो, इसे फांसी की सजा नहीं होती, हो सकता हैं इसे उम्र कैद मिलती, या इसे भी साक्ष्य के अभाव में शशिभूषण की तरह छोड़ दिया जाता, चूंकि इस मामले को सीबीआई देख रही थी, फिलहाल सीबीआई पर केन्द्र का पहरा है। राहुल कोई आइपीएस या भाजपा का नेता नहीं हैं, इसलिए फांसी पर चढ़ गया, नहीं तो उन्हें फांसी क्यों नहीं? जिन्होंने महिलाओं का जीना हराम कर दिया? ये क्या जो सत्ता से जुड़ा नहीं, उसे लटका दो और जो सत्ता से जुड़ा हैं, उसे बचा लो, चाहे हाईकोर्ट कितना भी सम्मन क्यों न जारी कर दें?

वाह रे भाई, गजब का झारखण्ड बना रखा हैं तुमलोगों ने। जो लोग ये सोच रहे है कि राहुल को फांसी पर लटका देने से दुष्कर्म या महिलाओं पर अत्याचार रुक जायेंगे, वे भूल रहे हैं कि जब तक सत्ता या सत्ता के संरक्षण में बैठे कामपिपासु, वासनाओं से युक्त तथा यौन-कुंठाओं से ग्रसित लोगों को बिना किसी भेद-भाव के फांसी पर नहीं लटकाया जायेगा, तब तक ये सब बंद नहीं होनेवाला और रही बात रांची के निर्भया को न्याय मिलने की बात।

तो हमें लगता कि उसकी आत्मा को शांति तब तक नहीं मिलेगी, जब तक बिना भेद-भाव के महिलाओं-बेटियों के साथ गलत करनेवालों को उलटा नहीं लटकाया जायेगा? ऐसे आपकी मर्जी जो सोचिये, अपने झारखण्ड का क्या सम्मान हैं? वो तो जैसे ही झारखण्ड की सीमा से आप दूसरे राज्य में जाते हैं, लोग आपको शक की निगाहों से देखते हैं। चाहे आप आइपीएस रहे या सत्ता से चिपके नेता।