अपनी बात

पत्रकारिता वो नहीं, जो आप करते हैं, पत्रकारिता तो वो हैं जो आनन्द कर रहा हैं, जियो आनन्द, अब ‘चमकी’ जरुर हारेगी

हां भाई, इससे अच्छा, अच्छा दिन और क्या हो सकता हैं? आपके पार्टी के कार्यकर्ता आपको पीएम बनाने के लिए जान उत्सर्ग कर दें, तो आप उनसे अपनी जनसभा के दौरान, अलग से मिले। जब आप पीएम पद की शपथ लें, तो उन्हें विशेष रुप से शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित करें, और जब आपके गरीब वोटर चमकी बीमारी से मरे तो उसके लिए आपके पास समय ही नहीं, आपको 21 जून को रांची में भारी-भड़कम भीड़ के साथ योग के नाम पर सभा करने का समय है, पर मुजफ्फरपुर के गरीबों के बच्चे-बच्चियों के लिए समय नहीं हैं।

आप के गुजरात के सूरत में एक घटना घटती है, जिसमें 24 छात्र-छात्राएं झूलसकर मर जाती है, तो उसके लिए आपकी छाती फट जाती है, आप सारे भव्य कार्यक्रमों को स्थगित कर देते हैं, लेकिन मुजफ्फरपुर में चमकी बिमारी ने सैकड़ों को काल कलवित कर लिया और कई काल कलवित होने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े हैं, लेकिन आपके पास उनसे मिलने के लिए समय तक नहीं हैं।

मैं उन तमाम नेताओं की कड़ी भर्त्सना करता हूं जो ऐसी हृदय विदारक घटना पर राजनीति करने से नहीं चूके। जो प्रेस कांफ्रेस के दौरान भारत का स्कोर पूछ रहे थे। जो प्रेस कांफ्रेस के दौरान उंघने में ज्यादा आनन्द ले रहे थे। जो अपने ही पूर्व के बयानों को जमीन पर उतारने में असफल रहे। सर्वाधिक गुनहगार तो मैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मानता हूं कि आप पिछले पन्द्रह सालों से बिहार में सत्ता संभाल रहे हैं, और आपके पास इतनी भी संसाधन नहीं कि आप इन गरीबों को बेहतर सुविधा उपलब्ध करा सकें।

काहे का आयुष्मान योजना, किसका आयुष्मान योजना, जब आपके सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं, दवाएं नहीं, संसाधन नहीं, आवश्यक चिकित्सीय उपकरण नहीं, नर्सें नहीं और पर्याप्त मात्रा में डाक्टर नहीं, बंद करो ये ढपोरी योजनाएं, मुजफ्फरपुर की घटना ने आपकी सारी कारगुजारियों की पोल खोलकर रख दी है।

बधाई उन सारे डाक्टरों को, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं छोड़ा और उनके पास जो भी संसाधन रहे, उसी से गरीबों की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसमें भी तब, जब मीडिया और नेताओं तथा एसी में बैठकर सोशल साइट चलानेवालों ने उन्हें पिटवाने का कोई कसर नहीं छोड़ रखा था, बड़ी ही सावधानी से सभी की सेवा में लगे रहे।

धिक्कार उन पत्रकारों और उन चैनलों को जिन्होंने टीआरपी के चक्कर में गैर-कानूनी ढंग से आइसीयू में अपनी पत्रकारिता की धौंस दिखा दी, और धिक्कार उन प्रशासनिक अधिकारियों को जिन्होंने इस गैर-कानूनी कार्यों को होता देखा। जरा बताइये, जो डाक्टर इलाजरत हैं, उसे रोककर बाइट लेना, उसे काम करने नहीं देना, समाचार का संकलन और अपनी हवा-हवाई बातों में बेसिरपैर की बातों को रख, डाक्टरों और नर्सों को अपना काम करने नहीं देना, क्या यह सही है? इससे किसका भला हो रहा था।

अरे इन बेगैरत पत्रकारों और नेताओं से, वे पत्रकार और छात्र कही अच्छे हैं, जिन्होंने गरीबों के आंसू पोछने के लिए, उनके पास जो भी था, उसी से सेवा के लिए निकल पड़े, अभिनन्दन आनन्द तुम्हें और तुम्हारे साथ जुड़े उन सारे युवाओं से जिन्होंने एक बहुत बड़ी लंबी लाइन खींच दी।

आनन्द दत्ता से रांची में मिला हूं, वो एक बेहतर पत्रकार और साथ ही साथ बेहतर इन्सान है। मेरा तो मानना है कि एक बेहतर इन्सान ही, एक बेहतर पत्रकार हो सकता है। इस आनन्द ने अपनी टीम के साथ उन डाक्टरों का मनोबल बढ़ाया जो विपरीत परिस्थितियों में भी बिना खाये, बिना सोये अपनी सेवा दे रहे थे, साथ ही उन निर्लज्ज पत्रकारों का कोपभाजन बन रहे थे, जो उनके कामों में दखलंदाजी कर रहे थे, जो गैर-कानूनी ढंग से आइसीयू में प्रवेश कर अपनी पत्रकारिता का धौंस दिखा रहे थे।

कमाल है, यह कैसा देश है, जहां एक चिरकूट टाइप का नेता भी मरता हैं तो संसद में दो मिनट का मौन रखा जाता है, और यहां तो 150 से भी ज्यादा बच्चे काल-कलवित हो गये, पर संसद में दो मिनट का मौन तो दूर ठहाके लग रहे थे, कोई जयश्रीराम, कोई हर-हर महादेव, कोई जय बंगाली, जय काली, तो कोई अल्लाह हो अकबर तो कोई वंदे मातरम् नहीं बोलेंगे, इस पर प्रवचन दिये जा रहा था। ये हमारे नेता है, जो हमारी लाशों पर भी अट्टहास करते हैं, इसे हमने ही चुना है, इसके लिए गुनहगार भी हम भी है। पर मैंने कहा कि इन्हीं निर्लज्ज नेताओं व पत्रकारों में से कोई आनन्द भी है जो लगा हुआ है, कुछ करने के लिए। वो एक-एक चीजों पर नजर रख रहा हैं, वो नेताओं की गंदी हरकतों पर चोट करता है, पर मर्यादा के अंदर।

कमाल हैं, जो संस्थाएं प्राकृतिक आपदाओं के आने पर, डाक्टरों की टीम, खाद्यान्न और दवाओं के साथ विभिन्न स्थानों पर पहुंचती है, इतनी बड़ी संकट आने पर ऐसी संस्थाओं का कहीं कोई अता-पता नहीं हैं। कमाल तो यह भी है कि हमारे देश में न्यायालय हैं, सुना है कि वह जनहित में खुद कभी-कभी स्वतः संज्ञान लेती है, पर इस मामले में संज्ञान लेना उचित नहीं समझी है, जबकि बड़े-बड़े लोगों के लिए तो ये कोर्ट रात में भी खुल जाया करते हैं।

इधर आनन्द दत्ता ने लोगों से आर्थिक मदद की अपील की और लीजिये कुछ पत्रकारों और युवाओं की टीम सेवा भाव से मुजफ्फरपुर के इन गरीबों की सुध लेनी शुरु की। वे ग्लूकॉन डी, थर्मामीटर, पानी, दवाएं लेकर गांव-गांव की ओर निकल पड़े ताकि जहां तक संभव हो सके, लोगों की मदद की जा सकें। आनन्द ने ताल ठोककर, लोगों से आर्थिक मदद मांगी और ताल ठोककर पाई-पाई का हिसाब देने का भी ऐलान कर दिया।

कल की ही बात है आनन्द ने बताया है कि उसके पास 68,770 रुपये और सत्यम के पास 56000 रुपये जमा हुए है। कुल 124770 रुपये हो गये, खर्च भी हुए है। अस्पताल परिसर के आसपास परिजनों के लिए दोपहर और शाम को भोजन का इन्तजाम किया गया है। दूसरा वहां पीने के पानी की समस्या को देखते हुए वाटर प्यूरीफर और वाटर कूलर लगाने की बात सोची गई हैं, अस्पताल प्रबंधन से अनुमति मिलते ही उसे लगा दिया जायेगा।

पंकज झा, सोमू आनन्द, पुष्यमित्र ही नहीं बहुत सारे युवा और पत्रकार सेवाभाव से निकल पड़े हैं, मुजफ्फरपुर में चमकी बीमारी से पीड़ित गरीबों के बच्चों के लिए जो हो रहा हैं, कर रहे हैं, मैं दावे के साथ कहता हूं कि जब निर्मल भाव से पत्रकारिता के ये सही मायनों में धुरंधर निकल पड़े हैं तो चमकी जरुर हारेगी, जो बच्चे मर गये, उन्हें पुनः पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता , उनके माता-पिता के दर्द को कम नहीं किया जा सकता, पर जो बचे हैं, उन्हें तो जरुर ही बचाया जा सकता है।

मैं तो कहूंगा कि जिन चैनलों और मीडिया के लोगों ने मर्यादाएं तोड़ी हैं, कम से कम उनके पास अभी भी वक्त है कि वे अपने संस्थानों से कहें कि वे उदारता दिखाएं, वे अपनी ओर से एक मेडिकल टीम, पर्याप्त दवाओं और अन्य संसाधनों के साथ वहां भेजे, ताकि आपके हृदय की विशालता भी देश देखे, नहीं तो जनता तो सिर्फ आपको चीखते और चिल्लाते ही देखी है। कहनेवाले तो यह भी कह रहे है कि कुछ बच्चे तो मीडिया की चीख-चिल्लाहटों के कारण, डाक्टरों को उनके काम नहीं कर देने के कारण भी काल-कलवित हो गये, ऐसे में इन सबका पाप किसके मत्थे चढ़ेगा। आप खुद चिन्तन करिये, पर आप चिन्तन करेंगे, कैसे आप तो स्वयं को महान बन बैठे हैं।