रांची में राजद नेताओं ने फिर वहीं नारा दोहराया, जेल का ताला टूटेगा, लालू यादव छूटेगा

जैसे जेल जाते वक्त नेताओं को न्यायालय पर भरोसा होता है, वैसे जनता को भी न्यायालय पर भरोसा हो चुका है कि देर-सबेर लालू जी जेल से अवश्य छूटेंगे, क्योकि इतिहास गवाह हैं, जैसे ब्रिटिश शासन के दौरान किसी अंग्रेज को उसके किये गुनाह की सजा यहां नहीं मिली, उसी प्रकार आजादी के बाद किसी भी भ्रष्ट नेताओं को भारत में सजा नहीं हुई, तो ऐसे में भला लालू प्रसाद को सजा कैसे हो जायेगी? अभी तो सीबीआई की विशेष अदालत ने इन्हें सजा सुनाई है। इसके बाद हाई कोर्ट जायेंगे, अगर यहां भी न्याय नहीं मिला तो सुप्रीम कोर्ट जायेंगे और फिर वहीं होगा, जो भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा है –

आजादी के पूर्व दोषी अंग्रेजो को सजा नहीं

आजादी के बाद किसी दोषी नेता को सजा नहीं

कल ही की बात है, चारा घोटाले में कौन-कौन दोषी है? रांची स्थित  सीबीआई की विशेष अदालत में बताया जा रहा था, जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के कानों में उनके दोष मुक्त होने की बात सुनाई पड़ी, वे आनन्दित हो गये, भाई आनन्दित होने की खबर है। एक नेता हाईकोर्ट जाने के पहले ही दोषमुक्त हो जाये तो ये आनन्द का विषय है, और इधर बेचारे फंस गये लालू, क्योंकि ये लालू है, इन्हें थोड़ा अभी और कष्ट उठाना है, लेकिन ऐसा नहीं कि इन्हें सजा हो ही जायेगी, क्योंकि हमें पता है कि हम भारत में रहते हैं, नेता तो नेता होता है, भला वह गलत कैसे हो सकता है?

हम तो उत्तर से लेकर दक्षिण यानी सुखराम से लेकर जयाललिता तक को देखा, एक से एक आरोपों में फंसे पर जब दिवंगत हुए तो उनके सामने बड़ी-बड़ी हस्तियों ने सर झुकाए, जनता तो इन नेताओं के आगे पागल हो उठती है, क्योंकि वह नेता है। अजब भारत है, गजब भारत है।

अब जबकि लालू प्रसाद को सजा मिलना तय है, जगन्नाथ मिश्र बाहर जा चुके है, ऐसे में हमें मुंशी प्रेमचंद याद आ रहे हैं, उनकी अमर कहानी ‘नमक का दारोगा’ में लिखा है कि जब पं. अलोपीदीन को मुंशी वंशीधर ने भ्रष्टाचार के आरोप में, नमक के अवैध व्यापार में संलिप्त होने के कारण गिरफ्तार किया, तो गजब की स्थिति थी। जिन्होंने ‘नमक का दारोगा’ पढ़ा है, उन्हें समझते देर नहीं लगेगी, पर जो नहीं पढ़े हैं, वे ध्यान पूर्वक इन निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़े, समझ में आ जायेगा।

‘जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकडियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गर्दन झुकाए अदालत की तरफ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित ऑंखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।
किंतु अदालत में पहुँचने की देर थी। पं. अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, अमले उनके सेवक, वकील-मुख्तार उनके आज्ञा पालक और अरदली चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बिना मोल के गुलाम थे।
उन्हें देखते ही लोग चारों तरफ से दौडे। सभी लोग विस्मित हो रहे थे, इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने यह कर्म किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए? ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए?’

जल्द ही अदालत पं. अलोपीदीन को मुंशी वंशीधर द्वारा लगाये गये आरोप से उन्हें मुक्त कर बाइज्जत बरी कर देती है। बस ये कहानी का थोड़ा सा अंश ये बताने के लिए काफी है कि देश की वर्तमान हालात को मुंशी वंशीधर ने कई वर्षों पहले एक कहानी के माध्यम से बता दिया था। आज भी ‘नमक का दारोगा’ कहानी की तरह लोग आश्चर्य कर रहे है कि एक ओर जहां जगन्नाथ मिश्र चारा घोटाले से मुक्त हो गये तो भला लालू प्रसाद यादव अभी इसमें फंसे हुए कैसे है? और जब कोई उपाय सूझ नहीं रहा तो एक ही जवाब उनके मन को संतोष देता है कि गुलाम भारत में जैसे अंग्रेजों को सजा नहीं मिली, जैसे स्वतंत्र भारत में किसी नेता को सजा नहीं मिली तो भला लालू प्रसाद को कैसे सजा मिल जायेगी? भारतीय अदालत में जहां निचली, उच्च और सर्वोच्च न्यायालय हैं, उसके घर देर हैं अंधेर नहीं। लालू समर्थक एक बार फिर वहीं नारा बुलंद कर रहे हैं, जो कभी लालू के जेल जाने पर लगाते थे, वो नारा था। ‘जेल का ताला टूटेगा, लालू यादव छूटेगा’

एक बात और, जो लोग ये समझते है कि लालू यादव के जेल जाने से उनकी राजनीतिक लौ बूझ जायेगी, वे मुगालते में है, क्योंकि लालू के जो समर्थक है, लालू के जो वोटर है, वे न तो इधर जा सकते हैं और न उधर जा सकते हैं, बिहार में उन्होने ऐसी लाठी भांज कर रख दी है कि उनके आगे किसी की नहीं चल सकती। एक वर्ग तो आज भी लालू का मुरीद हैं, वो तो साफ कहता है कि मोदी ने लालू को फंसा दिया है और जगन्नाथ मिश्रा को निकाल दिया है। राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने तो साफ कह दिया कि जगन्नाथ मिश्रा को बेल और लालू को जेल, ये बहुत ही नाइंसाफी है, जो हुआ है, सब नरेन्द्र मोदी का खेल है, हमलोग निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे। हमारी कानूनी लड़ाई जारी रहेगी।