अपनी बात

आश्चर्य है विदेशी तो भारत को जल्दी समझ जा रहे, पर भारतीय ही समझने की भूल कर रहे हैं, फिर भी…

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि जब भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई होगी, तो कभी किसी भारतीय ने सोचा भी होगा कि उसका सूर्य अस्त भी होगा? और एक दिन ऐसा भी आयेगा कि ब्रिटेन अथवा अमरीका के कई इलाकों में भारतीय मूल के लोग एक राजनीतिक शक्ति के रुप में उभर जायेंगे? भारतीयों का डंका बजेगा?

कभी किसी भारतीय ने ये सोचा होगा कि आनेवाले समय में, वह भी तब जबकि बंधुआ मजदूर के रुप में जिन भारतीयों को फिजी या मॉरिशस ले जाया जा रहा हैं, वे ही भारतीय एक दिन उन देशों में शानदार स्थिति में होंगे? आज सच्चाई है कि मॉरिशस या फिजी ही नहीं, बल्कि विश्व के कई देशों में भारतीयों ने अपनी कार्यप्रणाली से खुद का ही गौरव नहीं बढ़ाया, बल्कि पूरे देश का सर ऊंचा कर दिया है। आज भारतीय पूरे विश्व में सम्मान के प्रतीक बन चुके है।

कुछ दिन पूर्व ही अखबारों में पढ़ने को मिला कि दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में पूर्व आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर ली कार्सेलडाइन और मशहूर टीवी शो ‘सर्वाइवर’ से सुर्खियों में आई टीवी सेलिब्रिटीज एलेना रोलैंड, बिहार के बोधगया में थी। यहां पहुंचने पर उनका कहना था कि उन्हें यहां जिंदगी को हर सवाल का जवाब उन्हें मिल गया। इन दोनों जोड़ियों का कहना था कि भारत विविधताओं का देश है, यहां जिंदगी के हर सवाल का जवाब मिल जाता है।

ली कार्सेलडाइन ने तो साफ कहा कि अगर आपके पास भी जिंदगी को लेकर कुछ सवाल है, आप जिंदगी से सवाल कर रहे हैं, तो भारत आएं और यहां कुछ पल व्यतीत करें। जरा देखिये, ली ने और क्या कहा? “भारत के लोग खुश रहते हैं। उन्हें शायद इस बात से अधिक फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या है?  किसके पास क्या है? उनके पास जो हैं, वे उससे ही खुश रहते हैं। वे हर बात में, हर पल में खुशी का बहाना ढूंढ लेते हैं।”

अब जरा इस पर विचार करिये कि आखिर भारतीयों को हर हाल में खुश रहना किसने सिखाया?  क्या वर्तमान सरकार या उसकी शिक्षा पद्धति ने? उत्तर होगा – नहीं, हमारी सरकार ने तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर, हर हाल में खुश रहने की पद्धति पर ही सदा के लिए ताला लगा दिया, ये तो अपने घर के बुजूर्गों की मेहरबानी है, तथा मिट्टी से जुड़े धर्म-संस्कृति की बहुत बड़ी कृपा है कि हमारे यहां हर घर में एक भजन, हमारी दादी मां या दादाजी, अपने पोते-पोतियों के साथ  गुनगुनाते हैं – “जाहे विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये, सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये।”

और ये संतुष्टि की कला, हर हाल में खुश रहने की कला वंशानुगत चली जा रही हैं, पर ये वंशानुगत कला आनेवाले समय में रहेगी या ये कला भी पश्चिम में शिफ्ट हो जायेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता? क्योंकि मैं देख रहा हूं और महसूस कर रहा है कि पश्चिम से आ रही कुछ बेकार की हवाओं ने, तथा हर बात की अंधानुकरण ने हमारे ही पांवों को उखाड़ना शुरु कर दिया है।

शायद इन्हीं सभी बातों को लेकर कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि “मैं चाहता हूं कि  हमारे घर के खिड़की और दरवाजे सदा के लिए खुले रहे, ताकि दूसरे देश की सभ्यता व संस्कृति का हम साक्षात्कार कर सकें, पर मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि उनके आने से हमारे ही पांव सदा के लिए उखड़ जाये।” डर इसी बात का है।

रांची में एक फादर कामिल बुल्के हुए। वे बेल्जियम से आये थे, पर जब उन्हें गोस्वामी तुलसीदास की एक चौपाई से उनका साक्षात्कार हुआ? चौपाई थी – “परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।” उसके बाद वे भारत की मिट्टी से ऐसे घुल मिल गये, कि वे आजीवन हिन्दी, तुलसी और वाल्मीकि के भक्त हो गये। आखिर क्या कारण है कि भारत के अध्यात्म और योग की आज भी दुनिया दिवानी है। आखिर क्या वजह रही कि परतंत्र भारत में भी भारत के दो आध्यात्मिक महात्माओं जैसे स्वामी विवेकानन्द और स्वामी योगानन्द ने, भारत के धर्म और अध्यात्म को इस प्रकार विदेशों में प्रतिष्ठित किया, कि उस वक्त भी विश्व के कई देश के निवासियों ने इनकी पद-चिन्हों पर चलकर, स्वयं को धन्य किया।

कभी-कभी सोचता हूं कि भारत में धर्म (मेरा मानना है कि धर्म को, कोई भी अंतरित कर ही नहीं सकता, क्योंकि धर्म का दूसरा नाम सत्य हैं, सत्य को कोई चुनौती नहीं दे सकता, उसका नाम बदल सकता हैं, पर वो रहेगा सत्य ही, धर्म ही) के नाम पर जो धर्मान्तरण होता है, उसमें कौन लोग शामिल है? ये वो लोग है, जो धर्म के मूल स्वरुप को नहीं जानते, अगर वे धर्म के मूल स्वरुप को जान जायेंगे, तो फिर वे इस झूठ के धंधे में कभी रहेंगे ही नहीं। भला किसी गरीब, जरुरतमंद को रोटी, कपड़े, रोजगार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर उनके मूल धर्म से उन्हें जूदा करना धर्म है, ये तो महापाप हैं, और हमेशा के लिए महापाप की श्रेणी में ही आयेगा और इस प्रकार का गोरखधंधा ज्यादा दिनों तक चलेगा भी नहीं, क्योंकि जब उन्हें ज्ञान होगा, तो वे इन सबसे दूर होकर अपने मूल स्वरुप में देर-सबेर आ ही जायेंगे, जैसा कि पश्चिमी देशों में आज हो रहा है।

हाल ही में भारत के करीब-करीब सारे समाचार पत्रों में दिसम्बर के महीने में एक समाचार आया कि अमरीका के वर्जीनिया में एक चर्च को मंदिर में परिवर्तित किया जा रहा है, पोर्टसमाउथ स्थित चर्च को स्वामी नारायण हिन्दू मंदिर में तब्दील किया जायेगा। अहमदाबाद में स्वामी नारायण मंदिर से जूड़े भागवतप्रिय दास स्वामी का कहना है कि चूंकि उक्त पुराने चर्च में पिछले तीस सालों से धार्मिक कार्य चलते रहे हैं, इसलिए उसमें ज्यादा बदलाव भी नहीं किये जायेंगे। उनका ये भी कहना है कि वर्जीनिया में हरि के भक्तों के लिए यह पहला मंदिर होगा, क्योंकि वर्जीनिया में करीब दस हजार गुजराती रहते है, जिसमें नार्थ गुजरात, सेंट्रल गुजरात और कच्छ के लोग शामिल है।

आश्चर्य यह भी है कि चर्च से मंदिर होनेवाला यह अमरीका का छठा चर्च है, जबकि दुनिया का यह नौवां चर्च होगा, जो स्वामी नारायण मंदिर में बदला जायेगा, इससे पहले कैलिफोर्निया, लुइसवैली, पैनीसेलिविया, लांस एंजेलिस और ओहियो स्थित चर्च को मंदिर में बदला जा चुका है। इसी प्रकार यूनाइटेड किंगडम के लंदन और मैनचेस्टर स्थित दो चर्चों को मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया था।

जो भारतीय, भारत में ही रहकर, अपने मिट्टी से जुड़े धर्म और संस्कृति की आलोचना करने में दिन-रात लगे रहते हैं और दूसरों में परम आनन्द की प्राप्ति का पाठ पढ़ाते हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि परतंत्र भारत में मैकाले की पीढ़ियों से अनुप्राणित कई परिवारों के अच्छे-खासे घराने के लोगों ने भी अपना धर्म नहीं छोड़ा था और न ही धर्मान्तरण किया। स्वयं बाबा साहेब अम्बेडकर, जिन्होंने घोषणा की थी कि वे हिन्दू धर्म का परित्याग करेंगे, उन्होंने भी हिन्दू धर्म का परित्याग करने के बाद, वैसे धर्म का आश्रय लिया, जो भारत की मिट्टी से निकला था, जो भारत की मिट्टी में रचा-बसा था, इसे कदापि भूलना नहीं चाहिए। बाबा साहेब की यहीं सोच, उन्हें अन्य लोगों से अलग करती है, उन्होंने कभी कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिससे देश कमजोर होता है, समाज कमजोर होता हो, या राष्ट्र को कोई चुनौती देता हो। इसे समझने की जरुरत है।

कभी स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारत कभी मर नहीं सकता, भारत को हमेशा जीवित रहना है, अगर मानवीय मूल्यों को संरक्षित करना है तो, भारत को जीना ही पड़ेगा, पर वो भारत कैसा होगा? उसका भी चित्रण स्वामी विवेकानन्द ने बखूबी किया है, जो विवेकानन्द के साहित्य को पढ़े हैं, वे जानते है। स्वामी योगानन्द ने भी भारत के बारे में कुछ ऐसा ही कहा है, स्वामी योगानन्द का ये कहना कि भारत में गंगा है, हिमालय है, बहुत कुछ बता देता है, बस इसे जानने की जरुरत है।

आखिर भारत को कौन जीवित रखता है? मैंने महसूस किया है कि भारत को उसका धर्म और उसका अध्यात्म ही जीवित रखता है, जिस दिन भारत के शरीर से ये धर्म ओर अध्यात्म रुपी आत्मा निकल गई, भारत नहीं बचेगा?  हालांकि भारत को नष्ट करने के लिए कई प्रकार के हमले हुए, फिर भी भारत कई झंझावातों को झेलता हुआ, अडिग खड़ा है, भारत के नक्शे कालातंराल में कभी बड़े तो कभी छोटे हुए हैं, पर भारत जीवित हैं, एक दिन ऐसा फिर आयेगा कि भारत का नक्शा विशाल होगा, क्योंकि इस देश पर ईश्वरीय कृपा है।

मैंने कई बार कहा है कि इस देश को कोई ये कहता है कि फलां पार्टी चला रही है, या फलां नेता चला रहा हैं, तो वह महामूर्ख है, इस देश को एकमात्र ईश्वर चला रहा है, और वह ईश्वर सबके हृदय में विद्यमान है, कोई देख लेता है, तो कबीर, तुलसी, योगानन्द और विवेकानन्द आदि की श्रेणी में आ जाता है, पर जो नहीं देखता, वह सामान्य की श्रेणी में रहते हुए भी ईश्वरीय कृपा को प्राप्त कर रहा होता है।

ऐसे भी आज एक जनवरी को हमने एक अखबार देखा, संभवतः प्रभात खबर था, जिसने एक नृत्यांगना की तस्वीर प्रथम पृष्ठ पर डालकर कह दिया कि नये वर्ष की धमाकेदार शुरुआत, जबकि मैं आज दावे के साथ कह सकता हूं कि हमने तो गुड़गांव के एक मंदिर में इस आंग्ल वर्ष की धमाकेदार शुरुआत देखी। एक रमनदीप अग्रवाल नामक लड़की, अपने पिता महेन्द्र अग्रवाल के साथ एक मंदिर में गरम-गरम दूध तथा एक नाश्ते का पैकेट प्रसाद के रुप में बांट रही थी। उसके प्रसाद रुपी उक्त दूध और नाश्ते के पैकेट को लेने के लिए हर वर्ग के लोग थे, उसमें धनी भी थे, और निर्धन भी थे, अचानक कुछ लोग ऐसे भी पहुंचे, जो किन्ही कारणों से उक्त स्थान तक नहीं पहुंच पा रहे थे, रमनदीप नामक लड़की की नजर, वैसे लोगों पर पड़ती है, वह दूध से भरे ग्लास तथा नाश्ते का पैकेट लेकर दौड़ती है, और खूब जमकर उन्हें दूध पीलाकर एवं नाश्ता कराकर तृप्त करा रही है, और अपने जीवन को धन्य कर, दूसरे को भी संदेश देकर, नये वर्ष की धमाकेदार शुरुआत कर रही हैं।

इसलिए, अंत में, मैं यहीं कहूंगा कि कोई ये कहता है कि भारत को हमने गुलाम बनाया, तो वह महामूर्ख है, कोई ये कहता है कि उसके लोगों ने भारत को सदियों तक गुलाम बनाये रखा, तो वह महामूर्ख है, भारतीयों के शरीर को गुलाम बनाया जा सकता है, धर्म और अध्यात्म से जकड़ी उनकी आत्मा जो परमात्मा का अंश है, उसे कभी गुलाम नहीं बनाया जा सकता, शायद यहीं कारण था कि भारत 15 अगस्त 1947 तक, कथित परतंत्र होने के बावजूद शान से खड़ा था, पर जैसे ही अपने धर्म से विमुख होकर, धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ा, लड़खड़ा गया, अभी भी लड़खड़ा रहा है, पर रमनदीप जैसी बेटियां बता रही है कि भारत संभल भी रहा हैं, आनेवाला समय भारत का है, भारत का ही रहेगा, क्योंकि हमारे महापुरुषों-ऋषियों के वचन कभी झूठे नहीं हो सकते। 21 वीं सदी के इस किशोरावस्था में उभरते भारत की शुरुआत हो चुकी है, और इसमें हम सब को अपनी आहूति सिर्फ देनी बाकी है।

एक बात और, जो लोग धर्म या संस्कृति के नाम पर किसी का भी विरोध करते हैं, उन्हें मैं यहीं कहूंगा कि कि आप किसी का विरोध न करें, क्योंकि ऐसा नहीं कि आपके विरोध करने से, जो चीजे अभी तेजी से बढ़ रही हैं, वह रुक जायेगी। वह तब तक नहीं रुकेगी, जब तक वह अपना प्रभाव डाल नहीं लेगी, इसलिए इनका विरोध करना भी मूर्खता है। आपके नहीं विरोध करने पर भी, भारत में जन्मदिन पर, शादी के सालगिरह पर केक काटने की नई प्रथा का जो जन्म हुआ हैं।

उसमें कोई अंतर आया हैं क्या? लोग जमकर केक काट करे हैं, उसमें आनन्द ढूंढ रहे हैं, कुछ तो अब डीजे लगाकर खुद भी नाच रहे हैं और अपने घर की महिलाओं को भी नचवा रहे हैं, आप रोक लीजियेगा क्या? नहीं रोक पायेंगे, क्योंकि भारत में अभी तो इसकी शुरुआत हुई है, अभी तो लोगों को इसमें मजा लेना है, और जैसे ही इन्हें इसका प्रतिफल सामने नजर आयेगा, ये धड़ाम से वहीं पहुंचेंगे, जहां इनको पहुंचना है, क्योंकि ये सब ज्यादा दिनों तक नहीं चलनेवाला, क्योंकि सभी के शरीर के अन्दर एक आत्मा है, जिसे दिव्य आनन्द चाहिए, और वह आत्मा अंत में दिव्य आनन्द की प्राप्ति के लिए ही छटपटाती है, इसलिए अभी देखते जाइये, बदलते भारत का तस्वीर आपके सामने हैं, और वह दिन भी आयेगा, जब सचमुच भारत बदलता हुआ नजर आयेगा, वह भी अपने मूल स्वरुप में, क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास ने साफ लिखा है…

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु, जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।।

अर्थात् हे भरत, भावी प्रबल है, हानि हो या लाभ, जीवन हो या मरण, यश हो या अपयश, ये सारी की सारी चीजें मनुष्य के हाथ में नहीं, सब ईश्वर के हाथ में हैं। कर्म करते जाये, जो भी होगा, वह अच्छा होगा, भारत के हित में अच्छा होगा, ज्यादा चिन्ता करने की जरुरत ही नहीं, ये देश ही गजब है, क्योंकि ये देश ऋषियों-महर्षियों का हैं, भला जब इस पर कुछ बाधाएं आयेंगी तो वे चुप थोड़े ही बैठेंगे, या किसी पॉलिटिशियन का इंतजार थोड़े ही करेंगे, वो हिमालय चुप बैठा थोड़े ही रहेगा, किस भ्रांति में हैं आप? याद रखिये, कभी मत भूलिये कि आप भारत में हैं।