गांधी-वाजपेयी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने से अच्छा है कि उनके विचारधारा को आत्मसात् किया जाय

जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने पं. जवाहर लाल नेहरु से संबंधित एक वाकया लोकसभा में सुनाया। उन्होंने बताया कि साउथ ब्लॉक में पं. नेहरु की एक चित्र लगी हुई रहती थी, जब वे उधर से गुजरते थे, तो बराबर देखा करते थे। सदन में नेहरु जी के साथ उनकी एक बार नहीं, कई बार नोक-झोंक हुआ करती थी, कभी –कभी तो उन्हें बोलने के लिए सदन से वॉक आउट भी करना पड़ता था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने जगह बनाई, जब वे विदेश मंत्री बने तो उन्होंने देखा कि साउथ ब्लॉक में नेहरुजी का चित्र जहां लगा हुआ रहता था, वहां से वो चित्र गायब है।

उन्होंने लोगों से पूछा कि नेहरुजी की वो चित्र कहां गई, लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया, पर उन्होंने देखा कि वो चित्र फिर से वहां लगा दिया गया, यह हैं किसी का सम्मान करना, भावनाओं का कद्र करना, क्या ये भावना इस देश में नहीं होनी चाहिए, ऐसा नहीं कि उनका नेहरु जी से मतभेद नहीं था, वे तो भाषण के दौरान एक बार नेहरु जी को कह डाला था कि आपके अंदर चर्चिल और चेंबरलेन भी हैं, वे नाराज नहीं हुए, और जब शाम के समय किसी कार्यक्रम में मुलाकात हुई तो वे हंसकर बोले कि आज तुमने जोरदार भाषण दिया, आजकल ऐसी आलोचना करना दुश्मनी को दावत देना है, लोग बोलना बंद कर देंगे।

अपने जीवन में अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी भी नेहरु परिवार की उस ढंग से आलोचना नहीं की, जिस आलोचना का प्रचलन आज चल पड़ा है, राजीव गांधी के समय में भी अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में कभी कोई कमी नहीं देखी गई, पर आज की स्थिति देखकर जो लगता है, वो बताता है कि देश में एक नई परम्परा की शुरुआत हुई हैं, और अगर ये परम्परा चली तो निश्चय ही राजनीति में कटुता का वह विषवैली तैयार होगा, जिससे राजनीति में प्रेम सदा के लिए समाप्त हो जायेगा और इसका श्रेय निश्चित ही वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जायेगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं।

एक बात और, पीएम नरेन्द्र मोदी को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था “छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता”। अटल बिहारी वाजपेयी के समाधिस्थल पर फूल चढ़ाने या श्रद्धाजलि अर्पित करने से अच्छा है कि उनके बताये मार्गों पर चले और एक ऐसा राजनीतिक वातावरण तैयार करें, जिसमें अपने विरोधियों के लिए भी वही सम्मान हो, जो अपनों के लिए हैं।

आज जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथग्रहण के दिन महात्मा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के समाधिस्थल पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित की और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु और देश के सर्वमान्य नेता लाल बहादुर शास्त्री को नजरंदाज किया, हमें ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि उन्होंने एक छोटी मानसिकता का परिचय दिया, हो सकता है कि पीएम मोदी के चाहनेवाले समर्थक और कार्यकर्ता जो करोड़ों में हैं, उन्हें हमारी बात अच्छी नहीं लगे पर आनेवाले समय में पं.नेहरु को तो लोग याद रखेंगे, पर आप पीएम की भीड़ में कहां खो जायेंगे, पता ही नहीं चलेगा।

ठीक उसी प्रकार जैसे लोग विभिन्न मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों, कई प्रधानमंत्रियों, कई राष्ट्रपतियों, आइएएस व आइपीएस अधिकारियों को भूल जाते हैं, पर जो डा. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, एपीजे अब्दुल कलाम, नेहरु, शास्त्री, इंदिरा जैसी हस्तियों को नहीं भूल पाते, चाहे उन्हें भूलवाने के लिए कोई कितने भी जोर क्यों न लगा लें?

आप और आपके लोग जितना भी जोर लगा लें, आप नेहरु, शास्त्री, इंदिरा, राजीव के कृतियों पर कितना भी कुठाराघात कर लें, उनकी कृतियां जोर-शोर से लोगों के पास स्वतः आ जाया करेंगी, क्योंकि उनकी कृतियां किसी कारपोरेट या मीडिया जगत की मोहताज नहीं, मैंने तो देखा कि हाल ही में पं. नेहरु की पुण्यतिथि थी, आपके प्रिय मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दो लाइन लिखकर, अपनी श्रद्धाजंलि दे दी, उनके इस श्रद्धांजलि के क्रम में पं. नेहरु का फोटो तक नहीं मिला, जबकि आपके यहां एक सामान्य भाजपा नेता का भी फोटो उन्हें बड़े ही आराम से मिल जाता है।

ये सारे कृत्य आपके और आपके अनुगामी नेताओं के चरित्र को प्रकट कर रहे हैं, खुब आप नेहरु, इंदिरा और राजीव को कोसिये, आपको तो फिर मौका मिल गया, खूब कांग्रेस को उसके साठ साल के कार्यों के लिए आलोचना करते रहिये, लेकिन मत भूलिये कि पांच आप और छः आपके अटल जी भी शासन पूरे कर चुके हैं, और जनता जानती है कि आपने और आपके अटलजी ने देश को क्या दिया? फिर भी अन्त में यहीं कहुंगा कि जो देश के लिए मरा, जिसने देश की निस्वार्थ भावना से सेवा की, ऐसे व्यक्ति को पार्टी विचारधारा से मत जोड़ियें, थोड़ा उपर उठिये, क्योंकि छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, कोई बड़ा नहीं होता…