अपनी बात

IPRD MEDIA व्हाट्सअप ग्रुप एक खास IAS वर्ग के लिए तो काम नहीं कर रहा…

आइपीआरडी मीडिया के नाम से बने व्हाट्सअप ग्रुप ने अपनी सार्थकता पर स्वयं ही प्रश्न चिह्न लगा दिया है। आम तौर पर इस प्रकार के व्हाट्सअप ग्रुप का निर्माण इसलिए किया जाता है, ताकि राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न विकासात्मक योजनाओं या सरकार की प्रमुख जनोपयोगी बातों को मीडिया तक आसानी से पहुंचाया जा सके, और फिर मीडिया इन बातों को जनता तक शीघ्रता से पहुंचा दें, क्योंकि मीडिया से समाज का हर वर्ग जुड़ा होता है, जिससे सरकार की बातें भी आसानी से पहुंच जाती है, जो सरकार कहना चाहती है। इससे सरकार, मीडिया और जनता के बीच एक समन्वय भी बना रहता है, पर इन दिनों जिस प्रकार से आइपीआरडी मीडिया का संचालन हो रहा है, उससे साफ लग रहा है कि यह व्हाट्सअप ग्रुप राज्य सरकार का नहीं, बल्कि एक खास आईएएस समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रहा है।

इन दिनों 90 प्रतिशत आइपीआरडी मीडिया व्हाट्सअप ग्रुप पर क्रमशः दुमका, देवघर और रांची का कब्जा है, कभी कभार खूंटी या रामगढ़ जिला के जनसम्पर्क विभाग का दर्शन हो जाता है, वह भी तब जब उधर झारखण्ड के सीएम या सीएस का जाना होता है, अगर ये उधर नहीं गये तो फिर इन जिलों का भी दर्शन बंद हो जाता है। हम आपको बता दें कि झारखण्ड में करीब 24 जिलें है, पर दुमका, देवघर, रांची और कभी कभार खूंटी और रामगढ़ को छोड़कर राज्य का कोई भी जिला इस आइपीआरडी व्हाट्सअप ग्रुप पर नजर नहीं आता, क्या राज्य के अन्य जिलों में सूचना एवं जनसम्पर्क पदाधिकारी नहीं है?  क्या उन जिलों में उपायुक्त नहीं है? क्या उन जिलों में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न विकासात्मक योजनाओं को धरती पर नहीं उतारा जा रहा?  क्या उन्हें अपना नाम चमकाना अच्छा नहीं लगता? आखिर वजह क्या है?

इन दिनों देवघर और दुमका के उपायुक्तों की आइपीआरडी मीडिया में धूम मची है और उसके बाद राज्य की मुख्य सचिव छायी हुई है, पर इनके अलावे आपको आइपीआरडी मीडिया व्हाट्सअप ग्रुप पर कोई दिखाई नहीं देगा। आश्चर्य की बात है कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार, जिन्होंने बहुत ही अच्छे-अच्छे निर्णय लिये, जैसे कल की ही बात है, आज के सारे अखबारों में न्यूज भी छपी है, तम्बाकू निषेध से संबंधित राज्यस्तरीय कार्यशाला हुई, उसकी खबर आइपीआरडी व्हाटसअप ग्रुप पर नहीं प्रसारित की गयी, आखिर क्यों भाई? इसका जवाब कौन देगा?  यहीं नहीं सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में पहली बार यौन उत्पीड़न आंतरिक शिकायत समिति का उन्होंने गठन करवाया,  क्या ये महत्वपूर्ण खबर आइपीआरडी के व्हाट्सअप ग्रुप पर प्रसारित की गयी, उत्तर होगा – नहीं। अब मेरा सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?  देवघर-दुमका-खूंटी की बेसिर-पैर की खबर, सीएस की खबर रोज आयेगी और राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास की खबर को प्राथमिकता नहीं, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव, जो मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रधान सचिव भी है, उन्हें नजरंदाज करने की हिमाकत कौन कर रहा है, और ये सब किसके इशारे पर हो रहा है।

जबकि आइपीआरडी मीडिया के व्हाट्सअप ग्रुप पर नजर दौड़ाये तो बेसिरपैर की खबरें आपको खुब मिलेंगी – जैसे देखिये… 23 जुलाई को देवघर से 440 वोल्ट के चाय की प्याली की दुकान का समाचार प्रसारित किया गया है। बांस से बने मचिया की खरीदारी का समाचार है। 22 जुलाई को जादू का खेल देखा रहे मदारी का समाचार है और उसे हूनर से जोड़ दिया गया है। 18 जुलाई को डीसी की स्तूति है, जिसमें बताया गया है कि वे खाली पांव चल रहे है, अरे भाई मंदिर में भी जूते पहनकर चलने का इरादा है क्या?  17 जुलाई को वासुकिनाथ पहुंचनेवाले लोगों की तुलना सुनामी से कर दी गई है। शायद यहीं कारण है कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के ही कई वरीय अधिकारियों ने इस आइपीआरडी मीडिया व्हाट्सअप ग्रुप से स्वयं को अलग कर लिया है।

आश्चर्य की बात है कि इन बेसिर-पैर की बातों पर कई पत्रकारों ने सवाल भी उठाया, पर कोई सून ही नहीं रहा, उनकी बातों को ये लोग हवा में उड़ा दे रहा है। जैसे देखिये सोनाली दास ने 15 जुलाई को लिखा – I think we are getting an overdose of shrawani mela posts including its pics. Is it really necessary? अंकुर सिन्हा ने 29 जुलाई को लिखा –  क्या झारखण्ड की आइपीआरडी मीडिया सावन में सिर्फ भोलेबाबा की न्यूज देती है? हद हो गयी, व्हाट्सअप खोलिये और मात्र तीन से चार आइएएस की आरती उतारते हुए सिर्फ समाचार देखिये, जितना माइलेज ये लोग, इन्हें दे रहे है, इतना माइलेज सही मायनों में मुख्यमंत्री रघुवर दास को दे देते, तो ऐसे ही सीएम रघुवर दास की लोकप्रियता बढ़ जाती, पर यहां तो नौकरशाहों की आरती उतारने की महान परंपरा को बहाल करने की कोशिश की जा रही है, जो दुर्भाग्य है।